Read Time1 Minute, 35 Second
धूप
न आसमां
मेरा है,
न ये सूरज
ही मेरा है….
है बदलियां ही
मयस्सर मुझे…
कि तू ही बता,
धूप का
वो टुकड़ा
कहां से लाऊँ
मैं….?
ढलती हुई-सी
शाम में
सांसें दगा
कर रही हैं….,
फिसल रही है
दामन से….
थोड़ी-सी
छोर में
उलझ रही है….,
देखो वो धूप
ढल रही है
चेहरे से
मेरे…..,
तुम ही बताओ
कैसे
मैं रोक लूँ इसे….॥
#शिरीन भावसार
परिचय:शिरीन भावसार का जन्म नवम्बर १९७५ में तथा जन्मस्थान-इंदौर (म.प्र.) हैl आपने एम.एस-सी. (वनस्पति विज्ञान) की शिक्षा रायपुर (छग) में ली है,और शादी के बाद वर्तमान में वहीँ निवासरत हैंl कार्यक्षेत्र की बात करें तो आप कला-शिल्प तथा लेखन में सक्रिय होकर सामाजिक क्षेत्र में दृष्टि बाधित संस्था और विशेष बच्चों की संस्था से जुड़ी हुए हैंl लेखन में आपकी विधा-नई कविता,छंदमुक्त कविता,मुक्तक एवं ग़ज़ल हैl कई समाचार पत्र-पत्रिकाओं सहित वेबपत्रिका में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैंl आपके लेखन का उद्देश्य-अपने विचारों को दृढ़ता से रखना,सामाजिक मुद्दों को उठाना,मनोभाव की अभिव्यक्ति और आत्मसंतुष्टि हैl
Post Views:
590
Sat Dec 2 , 2017
है अविरल-सी तू कोमल बोली, गठित पाट की जैसे सुंदर डोली। सरल सौम्य की सुता वास्तविक, नित्य जीविका गद् पद्य सात्विक। है यथार्थ का विश्वास मनोरथ, कई मंतव्यों से गंतव्यों तक। जैसे गमन विहार में युक्ति सूचक, वैसे युद्ध प्रहार से मुक्ति बोधक। कष्ट निवारक दिव्य परिणामक, है विश्लेषक विभक्त […]