भूख की पीड़ा को सहता गया, कर्म के मर्म को स्पर्श करता गया, मैं हूँ `किसान`.. अन्नदाता की पदवी को ढोता गया, क्षुधित बेटी को पुचकारता गया, मैं हूँ `किसान`l आधुनिकीरण की बलि चढ़ता गया, जमीन में सीमेंट के जंगल बोता गया, मैं हूँ `किसान`.. दामाद को खरीदता गया, बेटे […]