Read Time3 Minute, 21 Second
हाथ पकड़ कर थाम के दामन,
मुझको पार लगा दिया..
प्यार-व्यार क्या जानूं मैं
मुझको प्यार सिखा दिया।
कितने रिश्ते आए,
किसी को न भाया..
वजह केवल इतनी-सी थी
दुबला-पतला ठहरा मैं,
दुबली-पतली काया..
या
फिर गरीब था मैं,
पास नहीं थी माया
धन्य-धन्य हो तुम प्रिये,
साथ तुम्हारे नाम मेरा,
देखो तुमने जुड़ा लिया
हाथ पकड़ कर थाम के दामन,
मुझको प्यार….।
पल-पल,हर पल,
तुम नजरो में रखती
अवाक रह जाता मैं,
देख तुम्हारी भक्ति,
मैं कमजोर भले ही हूँ
पर तुम हो मेरी शक्ति
ज्योति के बिन,
अधूरा होता देखो एक दिया ,
हाथ पकड़ कर थाम के दामन,
मुझको पार लगा दिया।
कोयल कूक रही,
भँवरे गुंजन करते
हरी भरी धरती पर,
मयूरा नृत्य करते,
हंस-हंसिनी इतराते
मुझको खूब चिढ़ाते,
रह-रहकर आते वर्षा के-
देखो सेरे,
सब कोई है आज यहाँ,
पर साथ नहीं वे मेरे,
हार गया है मेरा मन
कैसे उसको जीतूं,
मन को ठंडक दे न पाई
देखो वर्षा ऋतु,
खूब भिगोया वर्षा ने,
पर मन को हिला दिया।
हाथ पकड़ कर थाम के दामन,
मुझको पार लगा दिया..
प्यार-व्यार क्या जानूं..
मुझको प्यार सिखा दिया।
#सुनील चौरे ‘उपमन्यु’
परिचय : कक्षा 8 वीं से ही लेखन कर रहे सुनील चौरे साहित्यिक जगत में ‘उपमन्यु’ नाम से पहचान रखते हैं। इस अनवरत यात्रा में ‘मेरी परछाईयां सच की’ काव्य संग्रह हिन्दी में अलीगढ़ से और व्यंग्य संग्रह ‘गधा जब बोल उठा’ जयपुर से,बाल कहानी संग्रह ‘राख का दारोगा’ जयपुर से तथा
बाल कविता संग्रह भी जयपुर से ही प्रकाशित हुआ है। एक कविता संग्रह हिन्दी में ही प्रकाशन की तैयारी में है।
लोकभाषा निमाड़ी में ‘बेताल का प्रश्न’ व्यंग्य संग्रह आ चुका है तो,निमाड़ी काव्य काव्य संग्रह स्थानीय स्तर पर प्रकाशित है। आप खंडवा में रहते हैं। आडियो कैसेट,विभिन्न टी.वी. चैनल पर आपके कार्यक्रम प्रसारित होते रहते हैं। साथ ही अखिल भारतीय मंचों पर भी काव्य पाठ के अनुभवी हैं। परिचर्चा भी आयोजित कराते रहे हैं तो अभिनय में नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से साक्षरता अभियान हेतु कार्य किया है। आप वैवाहिक जीवन के बाद अपने लेखन के मुकाम की वजह अपनी पत्नी को ही मानते हैं। जीवन संगिनी को ब्रेस्ट केन्सर से खो चुके श्री चौरे को साहित्य-सांस्कृतिक कार्यक्रमों में वे ही अग्रणी करती थी।
Post Views:
470
Mon Jun 26 , 2017
अंकों की पगडंडी पर उम्र भले तमाम हुई हो, तुम-तो बचपन की गिनती का पाठ नया शुरु करना॥ चेहरे पर बलखाई सलवटें जब नजर आने लगें, कांच के मर्तबान में सुर्ख गुलाब लगा लेना॥ हर आंधी में टूटा पत्ता भी तो कभी हरा था, बस उन यादों के सहारे सावन-सा […]