गज़ल

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sunita upadhyay
किसी ने स्याह चश्मी से निहारा है।
यही तो बस मुहब्बत का इशारा है।
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जबीं आया नज़र जो काकुलें बिखरीं।
मेरे महबूब का प्यारा ……नज़ारा है।
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लटें खुलती लगे के छा रहे बादल।
दिखे मुस्कान तो लगता बहारा है।
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तुझे उपमा भला क्या दूँ बता मुझको।
कि हरसू हुस्न का तेरे ….. शरारा है।
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तेरा चलना लचक खाके गिरे बिजली।
पिया है जाम नज़रों का पियारा है।
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तेरा वो देखना कनखी से मुझको यूँ।
लगाके इश्क ने मुझको पुकारा है।
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भले ही लालिमा छाती हो सुबहा की।
दिखे आफताब भी बनके सितारा है।
#सुनीता उपाध्याय `असीम`
परिचय : सुनीता उपाध्याय का साहित्यिक उपनाम-‘असीम’ है। आपकी जन्मतिथि- ७ जुलाई १९६८ तथा जन्म स्थान-आगरा है। वर्तमान में सिकन्दरा(आगरा-उत्तर प्रदेश) में निवास है। शिक्षा-एम.ए.(संस्कृत)है। लेखन में विधा-गजल, मुक्तक,कविता,दोहे है। ब्लॉग पर भी लेखन में सक्रिय सुनीता उपाध्याय ‘असीम’ की उपलब्धि-हिन्दी भाषा में  विशेषज्ञता है। आपके लेखन का उद्देश्य-हिन्दी का प्रसार करना है। 

matruadmin

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