मैं हूँ प्राणी बिल्कुल सीधा-साधा,
न झूठी क़समें,न झूठा वादा।
मेहनतकश,आम आदमी-सा मैं,
काम-से-काम,न धोखे का इरादा।
हमेशा सीधेपन पर,मुझे गया ठगा,
पर मालिकों से,किया न कभी दगा।
जिंदगी गुज़ारी साधारण-सी,
पेट मेरा भरा रहा सदा आधा।
अब मुझे बनाया चुनावी हथियार,
जैसे बनता है हर बार आदमी सीधा।
भूख,धर्म,जातिवाद के नाम पर,
गरीबी के नाम से भी हमें ठगा।
आरक्षण,मंदिर-मस्जिद के नाम पर,
कोई वोट नहीं मांगे अच्छे काम का।
क्षुब्ध,विचलित,व्यग्र हूँ,उग्र भी,
महसूस होता है,नहीं हूँ मैं गधा।
गधा तो बना रहे हर किसी को रोज़,
तुच्छ स्वार्थों हेतु ज्यादा-से-ज्यादा।
#शशांक दुबे
लेखक परिचय : शशांक दुबे पेशे से उप अभियंता (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना), छिंदवाड़ा ( मध्यप्रदेश) में पदस्थ हैं| साथ ही विगत वर्षों से कविता लेखन में भी सक्रिय हैं |