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शफ़क़ में सफ़ेद ….
समंदर नमक का
चमचमाते पुखराज के टुकड़ों-सा,
लोगों का हुज़ूम
फिर भी जाने क्यों,तन्हा
छोटे-छोटे गड्ढों पर पड़ा पानी
लगते उसके आँसू
क्या लोगों के पैरों तले रौंदे जाने का दर्द ?
या अकेलापन,उपेक्षा
कोई खोदता,मुट्ठी में भरता
उछालता,चखता फेंककर चला जाता
खोदे जाने का ज़ख्म
मुट्ठी में घुटती साँसें
उछलकर गिरने की चोट,
पर उसके आँसूओं को न पोंछता कोई
बचकर निकल जाता
कि उनका दामन न गीला हो जाए,
बस ऐसा ही है सब-कुछ
हमारे जीवन में भी।
#डॉ.ज्योति मिश्रा
परिचय: डॉ.ज्योति मिश्रा वर्तमान में बिलासपुर(छत्तीसगढ़) में कर्बला रोड क्षेत्र में रहती हैं। आपकी उम्र करीब ५८ वर्ष और शिक्षा स्नातकोत्तर है। पूर्व प्राचार्या होकर लेखन से सतत जुड़ी हुई हैं। प्रकाशन विवरण में आपके नाम साझा काव्य संग्रह ‘महकते लफ्ज़’ और ‘कविता अनवरत’ है तो,एकल संग्रह ‘मनमीत’ एवं ‘दर्द के फ़लक’ से है। कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में कविताएं छप चुकी हैं।आपको युग सुरभि,हिन्दी रत्न सहित विक्रम-शिला हिन्दी विद्यापीठ (उज्जैन,२०१६),तथागत सृजन सम्मान,विद्या-वाचस्पति,शब्द सुगंध,श्रेष्ठ कवियित्री (मध्यप्रदेश),हिन्दीसेवी सम्मान भी मिल चुका है। आप मंच पर काव्य पाठ भी करती रहती हैं। आपके लेखन का उद्देश्य अपनी भाषा से प्रेम और राष्ट्र का गौरव बनाना है।
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