तड़प

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sonu
तुम्हें भी हो गई नफ़रत,छुपाओ मत बहानों में,
मेरा भी दिल नहीं लगता है,अब ऊँचे मक़ानों में।
तुम्हारा साथ जब तक था,ग़रीबी में भी हँसते थे,
जुदा होकर ख़ुशी मिलती नहीं हमको ख़ज़ानों में।
तुम्हारे दूर जाने से मज़ा आता नहीं हमको,
दीवाली के पटाख़ों में,मिठाई में,मखानों में।
तुम्हारा ईद वाली शीर-ख़ुर्मा का खिलाना भी,
अभी तक गुनगुनाता हूँ,मेरे सारे तरानों में।
समझ में ये नहीं आता,वो आख़िर कौन इंसां थे,
जो दुनिया बाँट बैठे जात और धर्मों के ख़ानों में।
न हिन्दू में,न मुस्लिम में,ईसाई में न सिख में ही,
ये हिन्दुस्तान बसता है,मनुजता के दीवानों में।
अभी ख़ुदग़र्ज़ दुनिया से हिफ़ाज़त कर रहे हैं वो,
जिन्हें शामिल नहीं करते थे,चाहत के फ़सानों में।
क़लम काग़ज़ ख़िलाफ़त में गवाही दे रहे हैं अब,
बचाने आ भी जाओ इन बग़ावत के तूफ़ानों में।
तुम्हारी असलियत से मैं अगर वाकिफ़ नहीं होता,
तुम्हें ही ढूँढता रहता ख़ुदाई के निशानों में।
बहुत बीमार हूँ लेकिन पता लेने नहीं आते,
क्या ऐसा ही हुआ करता है सारे ख़ानदानों में।
जिन्होंने महफ़िलों में आज अपनापन जताया है,
हमेशा से उन्हें आराम मिलता है बेगानों में।
बड़ी दहशत के आलम में दुवाओं का असर देखो,
दवाएँ अब भी बनती हैं,हमारे कारख़ानों में।
हमेशा काम करते हैं,नहीं आराम करते हैं,
ऐ दुनिया ताक़तें देखों,जवानों में,किसानों में।
कभी पैसे या शुहरत से किसी को मिल नहीं पाया,
बहुत ढूँढा सुकूँ सबने,ख़ुदा तेरे जहानों में।
उन्हें भी तो ये दुनिया छोड़कर जाना पड़ा आख़िर,
जिन्हें सब लोग गिनते थे,बड़े अच्छे घरानों में।
जिन्हें लूटा लुटेरों ने अँधेरों से उजालों तक,
कोई सामान बाक़ी है क्या अब भी उन दुकानों में।
हमें दुश्मन के हमलों का कोई ख़तरा नहीं होता,
अगर हम शक नहीं भरते हमारे ही ठिकानों में।
कोई भूखा नज़र आया तो मुझको याद ये आया,
बड़ी तकलीफ़ में रहता था मैं गुज़रे ज़मानों में।
न मंदिर में न मस्जिद में,न गुरुद्वारे न गिरजाघर,
ख़ुदा रहता है,पूजा-प्रार्थना में और अज़ानों में।
सुनो ‘सोनू’ अगर दिल में ख़ुदा का नाम बाक़ी है,
कोई भी क्या बिगाड़ेगा ज़मीं और आसमानों में॥
          #सोनू कुमार जैन
परिचय : १९८६ में जन्मे सोनू कुमार जैन,सहारनपुर के रामपुर मनिहारान (उत्तरप्रदेश) के निवासी हैं। सहारनपुर जिले में सरकारी अध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। इन्होंने बीएससी के पश्चात बीएड,एमए(अंग्रेजी साहित्य)किया और अब हिन्दी साहित्य से एमए कर रहे हैं। मुक्तक,कविता,गीत, ग़ज़ल,नज़्म इत्यादि लिखते हैं। योग विधा से भी वर्षों से जुड़े हुए हैं और मंचों से योग प्रशिक्षण एवं योग शिविर इत्यादि संचालित करते हैं। 

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।