अग्निकुञ्ज

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shreeman
एक पक्ष भाव से,लिखा नहीं सु ग्रंथ को,
धर्म-कर्म  से अभी,रखा नया सुपंथ को।
सस्य श्यामला बने,धरा प्रकीर्ति गुंज से,
पाप ताप है मिटे विराट अग्निकुञ्ज से॥
देश काल मान का,समृद्ध सार अंक है,
हार-जीत जो हुआ,समस्त तार अंक है।
नित्य गंध व्याप्त हो,सनेह पुष्प कुंज से,
शुद्धता बने रखे,विराट अग्निकुञ्ज से॥
अधर्म रंग लेखनी,प्रवाहती धरा अभी,
समाज की कुरीतियां,पले नहीं मिटे सभी।
प्रसून छांव हो यहाँ,सुसाहिती निकुंज से,
प्रमोद भाव जागती,विराट अग्निकुञ्ज से॥
नैतिकत्व हो यहाँ, सुसाहिती प्रधानता,
मूल्यहीन लेखनी,नहीं बने महानता।
आज देश  है बड़ा,स्वतंत्र मत्त लुंज से,
ज्ञान पा बने पुनः,विराट अग्निकुञ्ज से॥
नित्य चेतना भरे,उदास चाहती सदा,
जीव वेदना लखे,सुवास वाहती सदा।
आज देश  है घिरा,प्रदेश द्रोह धुंज से,
प्रेरणा प्रदीप्त हो,विराट अग्निकुञ्ज से॥
धरे युवा मशाल को,मदांध नित्य तारते,
स्वराष्ट्र भाव हृदय हो,विजात को प्रहारते।                                                              प्रशस्त पंथ में चले,विवेक दिव्य पुंज से,
उजास चाहती सदा,विराट अग्निकुञ्ज से॥
#श्रीमन्नारायणाचार्य ‘विराट’

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