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ऐसा नव वर्ष मनाएं क्यों,
ऐसी संस्कृति बनाएं क्यों ?
जब मदिरालय की मदहोशी का
मातम फैला रहता हो,
सोने की चिड़िया का यौवन
धुआं नशे में जकड़ा हो,
जब आधुनिकता में आकर
अश्लील तराने बजते हों,
जब तोड़ के सारी मर्यादा
तन के श्रृंगार बरसते हों,
पश्चिम की धुन पे आकर के
अपना संगीत भुलायें क्यों…
ऐसा नव वर्ष मनाएं क्यों।
ऐसी संस्कृति बनाएं क्यों ?
इतिहास हमारा कहता न
संस्कृति हमारी कहती न,
ठिठुरी प्रकृति की भौगोलिक
कोहरामय सृष्टि कहती न,
मौसम विज्ञान भी कहता न
सामाजिक जीवन कहता न,
हिंदी के चैत को हाँ बोलो
अंग्रेजी नव वर्ष को बोलो न,
‘पूष’ की भीषण सर्दी में
जब रातें गहरी-गहरी हों,
गर अपने ईश्वर परमेश्वर का
गुरुओं का हम ध्यान करें,
गर अपने मंदिर जाकर के
पूजन-पाठ विधान करें,
पुत्र श्रवण गर न बन पाएं
तो भी इतना ध्यान करें,
धरती पर भगवान मिले
उनका पूरा सम्मान करें,
गर मात-पिता के चरणों की…
सेवा का नियम बनाओ तो,
तब ही सार्थक होगा।
ऐसा नव वर्ष मनाओ तो॥
#पुष्पेन्द्र जैन ‘नैनधरा’
परिचय : पुष्पेन्द्र जैन ‘नैनधरा’ का सागर(मध्यप्रदेश) के गोपालगंज में निवास है। आप यहीं पर टाइल्स- मार्बल और सेनेटरी का व्यवसाय करते हैं। साथ ही कविताएं और लेख लिखने का शौक भी रखते हैं। कविता लेखन में विशेष रुचि है। १००० से अधिक रचनाएं लिख चुके हैं,जो कई संचार माध्यमों से प्रकाशित भी हुई हैं।
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Tue Jan 2 , 2018
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