माहताब हो गई…

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krishn modak
रोज तुम मेरा अधूरी ख़्वाब हो गई,
धुंधली जिंदगी में,माहताब हो गई।
शराबी कहते हैं मुझे आजकल सभी,
होंठ तुम्हारे नशीली शराब हो गई।
सुलझे मेरे सारे पेंचीदा सवाल,
जब आंखें तुम्हारी जवाब हो गई।
बागों के पुष्प भी न भाते अब मुझे,
सूरत तुम्हारी फूल गुलाब हो गई।
जरा सरकाना दुपट्टा चेहरे से तुम,
दुपट्टा तुम्हारा सनम नक़ाब हो गई।
बहकना तो वाजिब था मेरा इन दिनों,
तुम देखते ही देखते शबाब हो गई।
मेरा तुझसे जुड़ना तुम्हारा मुझसे,
लगता हैं मोहब्बत बेहिसाब हो गई।
रोजाना आदत है तुम्हें पढ़ने की,
नर्म हथेली तुम्हारी किताब हो गई।
है चल पड़ती कलम तुम्हें देखते ही,
तुम पे लिखी जो ग़ज़ल लाजवाब हो गई॥
#कृष्णा कुमार मोदक
परिचय: कृष्णा कुमार मोदक की जन्मतिथि-१२ जून १९९५ और शहर-धनबाद है। आपका निवास झारखंड राज्य के धनबाद शहर में है। शिक्षा-यांत्रिक अभियांत्रिकी में डिप्लोमा एवं कार्यक्षेत्र-रेलवे में कार्यरत है। आपके लेखन का उद्देश्य-सीखते रहना है।

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