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मन की तुष्टि कर्म किया जो
वही कहलाता आराधन,
आत्म तुष्टि से कर्म भी
कहलाता है बस आराधन।
निज कर्तव्य हित करना ही
कहलाता है एक आराधन,
इसीलिए तो कण-कण देखा
बस करता हुआ आराधन।
फूलों की है हँसी आराधन
और सरिता गति आराधन,
इक-दूजे की देखभाल भी
लगती है मुझको आराधन।
सूरज का तपना आराधन
मेघो का बनना आराधन,
शिलाखण्ड होना आराधन
हिम पिघलना भी आराधन।
ठाकुर की सेवा आराधन
राधिका प्यार आराधन,
माँ की वत्सलता आराधन
पंछी का कलरव आराधन।
सृष्टा-सृष्टि नेह आराधन
जीव आकर्षण है आराधन
सबको बांटना नेह आराधन
किसी चाह की चाह आराधन॥
#सुशीला जोशी
परिचय: नगरीय पब्लिक स्कूल में प्रशासनिक नौकरी करने वाली सुशीला जोशी का जन्म १९४१ में हुआ है। हिन्दी-अंग्रेजी में एमए के साथ ही आपने बीएड भी किया है। आप संगीत प्रभाकर (गायन, तबला, सहित सितार व कथक( प्रयाग संगीत समिति-इलाहाबाद) में भी निपुण हैं। लेखन में आप सभी विधाओं में बचपन से आज तक सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों का प्रकाशन सहित अप्रकाशित साहित्य में १५ पांडुलिपियां तैयार हैं। अन्य पुरस्कारों के साथ आपको उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य संस्थान द्वारा ‘अज्ञेय’ पुरस्कार दिया गया है। आकाशवाणी (दिल्ली)से ध्वन्यात्मक नाटकों में ध्वनि प्रसारण और १९६९ तथा २०१० में नाटक में अभिनय,सितार व कथक की मंच प्रस्तुति दी है। अंग्रेजी स्कूलों में शिक्षण और प्राचार्या भी रही हैं। आप मुज़फ्फरनगर में निवासी हैं|
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Wed Dec 13 , 2017
अश्रू नयन के मोती हैं, नाहक नहीं गिरा लेना। गहन वेदना के मरहम हैं, काम है मन सहला देना॥ ये पीड़ा के नहीं पक्षधर, हैं पीड़ित के बेबस हथियार। निकले नयन से मन मथकर, आँसू व्यथित हृदय के भार॥ हृदय-घाव पर उठे फफोले, वाष्पीकरण होकर गिरते। निकले जहाँ दर्द वही […]