Read Time12 Minute, 17 Second
यूँ तो हमारे जीवन में छोटे-बड़े हादसे होते रहते हैं,जिन्हें हम भूल भी जाते हैं, और यदा-कदा याद भी कर लेते हैं, लेकिन,कुछ हादसे ऐसे होते हैं, जो संस्मरण बनकर हमारी स्मृतियों में गहरे पैठ जाते हैं। मेरे जीवन के स्मृति पटलसे ऐसा ही एक संस्मरण..
बात २५ जून १९९३ की है। मेरे छोटे बहनोई ऑफ़िशियल काम से मुंबई आए हुए थे, जिसका हमें पता न था। वह प्रभादेवी में ट्विन टावर में ठहरे हुए थे। हमें सुबह-सुबह किसी के फोन द्वारा सूचना मिली कि वह हमें मिलने आना चाहते हैं। हमने उन्हें घर आने के लिए कहा, तो दूरी के हिसाब से पहुँचने के मेरे दिए गए समयानुसार वह ठीक सवा आठ बजे हमारे घर, अणुशक्तिनगर पहुँच गए। नाश्ता-चाय और बातचीत होने के बाद उन्हें वापस जाना था, क्योंकि दादर से दोपहर साढ़े बारह बजे उनको ट्रेन पकड़नी थी।
मेरी बड़ी बेटी संगीत कक्षा में गई हुई थी, और छोटी बेटी स्कूल में थी। मैंने उन्हें दोनों बेटियों से भी मिलाना चाहा, तो हमारी ईमारत से तीन ईमारत की दूरी पर मैं अपनी बड़ी बेटी को लेने चली गई। हो रही बारिश ज़रा-तेज़ हो गई थी,तो मैंने कार की गति बढ़ाई। बेटी ने तुरंत कहा और उतनी-सी दूरी पर तीन -चार बार कह दिया कि मम्मी,कार तेज़ मत चलाओ, एक्सीडेंट हो जाएगा।
घर पहुँचने पर कार मेरे पति ने सँभाली और हम छोटी बेटी के पास बहनोई को मिलाने उसके स्कूल गए।उसके बाद दादर जाने के लिए जैसे ही मेन गेट से बाहर निकले, तो वर्षा ने अपना मूसलधार रूप धारण कर लिया। तब कार अस्सी की गति से चल रही थी। चूना भट्टी फ़्लाईओवर से पहले ही हमारी कार फिसली.. , ‘अरे रे’ कहते हुए पति ने ब्रेक लगाने की कोशिश की, तो ब्रेक लगा ही नहीं। कार तेज़ी से आगे सरकते-फिसलते हुए खाली खूब चौड़े रोड पर दो बार गोल-गोल घूमती हुई बाईं ओर की काॅलोनी के सामने बस स्टाॅप के आगे जाकर नाले पर पलट कर नाले की बाईं ओर अटक गई। उसी से सटी हुई काॅलोनी की दीवार है। वो तो अच्छा हुआ कि बारिश के कारण कोई कार के आगे या नीचे नहीं आ गया। कार की छत नीचे और पहिए ऊपर थे। हमें दूर- से आवाज़ें आती हुई सुनायी दे रही थीं। हम अंदर पलटी हुई कार की छत पर सीधे ही बैठे थे,आश्चर्य !कि, कार का इंजन चालू ही था। पति ने पीछे पलट कर बेटी को आवाज़ लगाई, यह जानने के लिए कि वह ठीक है तो देखा कि इतनी देर में तो वह पीछे की डिक्की की खिड़की के टूटे काँच से बाहर से निकल कर हाथ बाँधे खड़ी थी,और बहनोई भी वहीं से बाहर निकल रहे थे। मैंने अपनी दाईं ओर का दरवाज़ा खोला और बैठी हुई ही बाहर निकली। पति भी इसी ओर से बाहर निकले। मैंने फिर अंदर झुककर कार का इंजन बंद करके चाबी निकाल कर हाथ में ली। मज़े की बात यह कि उसी समय मूसलधार बारिश बंद हो गई। तभी मैंने देखा कि सामने काॅलोनी के घर में से बालकनी में खड़ी दो लड़कियाँ हमें देख रही थीं। वहाँ से और लोगों ने भी देखा होगा, इतनी भयंकर दुर्घटना और हमारा इस तरह इतने बड़े ख़तरे से बचना।
तब तक तो वहाँ बहुत भीड़ इकट्ठी हो गई थी। लोगों ने कहा कि आपने नेक काम किए होंगे, आप लोगों के सिर पर भगवान का हाथ है, तभी आप सभी बच गए हैं।
सच है। मुझे याद आया कि किसी काम से जाते-आते हुए मैं काॅलोनी में अक्सर लोगों को रिक्शा न मिलने पर, लिफ़्ट माँगने पर उनके गन्तव्य स्थल पर पर छोड़ दिया करती थी। यह काम तो मुझसे साईं भगवान ही करवाते थे, जिससे मुझे आत्मिक संतुष्टि प्राप्त होती थी। पति कहते थे कि किसी दिन तुझे कोई मारकर कार छीन कर ले जाएगा, ऐसा काम मत किया कर। मैं कहती कि मौत तो एक दिन आनी ही है,आज नहीं , तो कल। जिस समय की मौत लिखी है, उस समय कोई मुझे नहीं बचा पाएगा, तो चिन्ता किस बात की ? बस, इस तरह मैं जब-तब अपने काम में लगी रहती। हूँ ,तो sssss ,अब साईं भगवान ने ही हमें बचाया है। हमें ज़रा-सी खरोंच तक भी नहीं आई थी। कार ने सारी चोटें अपने ऊपर ले ली थीं। लोगों ने यह भी बताया कि कुछ समय पूर्व वहीं पर एक मारुति के एक्सीडेंट में सभी लोगों की मृत्यु हो गयी थी। कार तो हमारी भी मारुति ही है।
लोगों ने मिलकर कार को सीधा किया। कार पर कई चिराटे पड़ गए थे और पिछली खिड़की का काँच टूट चुका था। सामने वाले बॉक्स में से सारा सामान और सामने रखा सौ का नोट भी नाले में गिर गया था। बहनोई की अटैची भी नाले में गिर गई थी। किसी ने अटैची बाहर निकाली। बहनोई तो वहीं से दादर स्टेशन चले गए थे।
मैं और मेरी बेटी वहाँ से हटकर बस स्टॉप के पास ही खड़ी हो गई। हम दोनों को एक्सीडेंट का सोच-सोचकर खूब हँसी आई। इस तरह कोई फ़िल्म के लिए शूटिंग भी करता, तो शायद ही कोई बचता, जिस तरह हम बचे थे। हम चारों को हमारी अच्छी किस्मत ने बचा लिया था। मैं सोचने लगी कि यदि मैं मर जाती या हम माता-पिता मर जाते, तो हमारी बेटियों का क्या होता ? हमने भगवान का शुक्रिया अदा किया कि वह हमारी बच्चियों के लिए हमारे रखवाले बने।
अब तो कार के बीमे की भी चिंता पड़ी। घर जाकर देखा, तो बीमे की तिथि 27 जुलाई तक थी। कार पलटी हो जाने का कोई प्रकरण नहीं बना, क्योंकि कोई हताहत नहीं हुआ था। बीमा कार्यालय में भी कोई जवाब तलब नहीं हुआ? क्योंकि वहाँ भी भगवान की दया से पति का एक विद्यार्थीे काम करता था, जिसने सब सँभाल लिया। उसके बाद हमारी कार आठ महीने तक गैरेज में पड़ी रही बेचारी,पर बिलकुल नई जैसी होकर घर आई थी।
जब हम घर पहुँचे, तो देखा कि घर में बहनोई भी आकर बैठे थे। इंद्रावती नदी के आपूर होने के कारण वह रेल निरस्त हो गई थी। घर आने के लिए वापस आते समय रेल में चढ़ते समय हाथ छूटने से बहनोई प्लेटफ़ार्म पर गिर गए थे। हाथ से अटैची व पानी की बोतल दूर जा गिरी थी, पर वह बाल -बाल बच गये थे। बाद में मेरी छोटी बेटी ने भी बताया कि, ठीक दुर्घटना के समय उसे स्कूल में कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। वह डेस्क पर माथा टिका कर काफी देर यूँ ही बैठी रही।
मैं आधा दिन नौकरी पर गई थी , सबको दुर्घटना के बारे में बताया तो मिठाई बाँटी। एक टीचर ने तो यहाँ तक कह दिया कि-ऐसा कैसे हो सकता है कि इतना भयंकर एक्सीडेंट हो जाए, कार पलट जाए और हर कोई बच जाए। मैंने कहा कि हम ही उदाहरण हैं इसके। यक़ीन न हो, तो दुर्घटना- स्थल पर जाकर जानकारी ले लो। हमें कोई चोट नहीं लगी थी, लेकिन कार में लगे झटकों के कारण दो-ढाई घंटों के बाद पसलियों में दर्द होने लगा था।
एक्सीडेण्ट के बाद जब हम बस स्टाॅप के पास खड़े थे, तो उसी समय सामने की काॅलोनी से एक भद्र महिला हमारे पास आई, और पंजाबी में पूछने लगीं-‘किते ज़ियादा सट्ट तां नहीं लग्गी ? ज़रा सेक ले लओ। ( कहीं ज़्यादा चोट तो नहीं लगी ? सिकाई कर लो।) घर चलो , चा पी के जाओ।’
मैंने उन्हें हार्दिक धन्यवाद दिया। हम एक-दूसरे के लिए एकदम अनजान थे, लेकिन उनके स्नेहिल प्यार,अपनत्व , आवभगत व सांत्वना के मीठे बोल दिल को बहुत सुकून दे गए। मैं भीगी पलकों से यह सोचने लगी कि लोग अभी भी किसी के दुख के समय संवेदनशील हो जाते हैं। धन्यवाद, हे ईश्वर ! मानवता अभी भी बची है इस दुनिया में।(खुद के साथ घटित )
#रवि रश्मि ‘अनुभूति’
परिचय : दिल्ली में जन्मी रवि रश्मि ‘अनुभूति’ ने एमए और बीएड की शिक्षा ली है तथा इंस्टीट्यूट आॅफ़ जर्नलिज्म(नई दिल्ली) सहित अंबाला छावनी से पत्रकारिता कोर्स भी किया है। आपको महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी पुरस्कार,पं. दीनदयाल पुरस्कार,मेलवीन पुरस्कार,पत्र लेखिका पुरस्कार,श्रेष्ठ काव्य एवं निबंध लेखन हेतु उत्तर भारतीय सर्वोदय मंडल के अतिरिक्त भारत जैन महामंडल योगदान संघ द्वारा भी पुरस्कृत-सम्मानित किया गया है। संपादन-लेखन से आपका गहरा नाता है।१९७१-७२ में पत्रिका का संपादन किया तो,देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में गीत,ग़ज़ल,कविताएँ, नाटक,लेख,विचार और समीक्षा आदि निरंतर प्रकाशित होती रही हैं। आपने दूरदर्शन के लिए (निर्देशित नाटक ‘जागे बालक सारे’ का प्रसारण)भी कार्य किया है। इसी केन्द्र पर काव्य पाठ भी कर चुकी हैं। साक्षात्कार सहित रेडियो श्रीलंका के कार्यक्रमों में कहानी ‘चाँदनी जो रूठ गई, ‘कविताओं की कीमत’ और ‘मुस्कुराहटें'(प्रथम पुरस्कार) तथा अन्य लेखों का प्रसारण भी आपके नाम है। समस्तीपुर से ‘साहित्य शिरोमणि’ और प्रतापगढ़ से ‘साहित्य श्री’ की उपाधि भी मिली है। अमेरिकन बायोग्राफिकल इंस्टीट्यूट द्वारा ‘वुमन आॅफ़ दी इयर’ की भी उपाधि मिली है। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में प्राचीरों के पार तथा धुन प्रमुख है। आप गृहिणी के साथ ही अच्छी मंच संचालक और कई खेलों की बहुत अच्छी खिलाड़ी भी रही हैं।
Post Views:
528
बहुत अच्छे