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जीवन के अनजाने पथ पर,उम्मीदों की गठरी लादे।
हर कोई बस ढूँढ रहा है,अपने सपनों की मंजिल को॥
जीवन के अथाह सागर से
तर जाने की चाह लिए सब।
तूफानों से टकराते हैं
घर जाने की चाह लिए सब॥
लेकिन कहाँ सभी पाते हैं,बाधाएँ तर कर साहिल को…,
हर कोई बस ढूँढ रहा है,अपने सपनों की मंजिल को…॥
कितनी आशा कितने सपने
कितने ही अरमान लिए हम।
एक अंश के वंशज लेकिन
अलग-अलग पहचान लिए हम॥
सब हासिल करने को तत्पर,भूल ज़िन्दगी के हासिल को…,
हर कोई बस ढूँढ रहा है,अपने सपनों की मंजिल को…॥
जाने कौन किसे इस जग से
कब-किस घड़ी विदा होना है।
यही सत्य है इक दिन सबको
सब से यहाँ जुदा होना है॥
तनहा छोड़ चले जाना है,सबको अपनों की महफिल को…,
हर कोई बस ढूँढ रहा है,अपने सपनों की मंजिल को…॥
#सतीश बंसल
परिचय : सतीश बंसल देहरादून (उत्तराखंड) से हैं। आपकी जन्म तिथि २ सितम्बर १९६८ है।प्रकाशित पुस्तकों में ‘गुनगुनाने लगीं खामोशियाँ (कविता संग्रह)’,’कवि नहीं हूँ मैं(क.सं.)’,’चलो गुनगुनाएं (गीत संग्रह)’ तथा ‘संस्कार के दीप( दोहा संग्रह)’आदि हैं। विभिन्न विधाओं में ७ पुस्तकें प्रकाशन प्रक्रिया में हैं। आपको साहित्य सागर सम्मान २०१६ सहारनपुर तथा रचनाकार सम्मान २०१५ आदि मिले हैं। देहरादून के पंडितवाडी में रहने वाले श्री बंसल की शिक्षा स्नातक है। निजी संस्थान में आप प्रबंधक के रुप में कार्यरत हैं।
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