जब मानव ही मानव का दुश्मन हो जाए,
जीत पाने को इंसान किसी भी हद तक गिर जाएl
और न मिले मनोवांछित फल,तो पल में आक्रोशित हो जाए,
तब सोचिए,अखिर जीवन कौन-सा राज खोल रहा हैl
हे मानव ! तब मनुष्य का अहंकार ही बोल रहा हैll
जब पुत्र की निष्ठा माता-पिता में घटने लगे,
आपसी प्रेम की बजाय स्व-अभिमान उपर चढ़ने लगेl और परिवार में अपनों के बीच दूरियां बढ़ने लगे, तब सोचिए,इंसान के सिर पर कौन डोल रहा हैl हे मानव ! तब मनुष्य का अहंकार ही बोल रहा हैll
जब पति-पत्नी एक-दूसरे को हीन खुद से समझने लगें, एक-दूसरे के लिए श्रद्धा-आदर मन में घटने लगेl
और बजाय परस्पर निर्णय के,केवल अपने मन की सुनने लगे,
तब सोचिए,इंसान रिश्तों को किस तराजू पर तौल रहा हैl
हे मानव ! तब मनुष्य का अहंकार ही बोल रहा हैll
(ध्यानार्थ :प्रथम छंद-समाज के,दूसरा छंद-परिवार के और
तीसरा छंद-वैवाहिक जीवन के परिपेक्ष्य में)
#विवेकानंद विमल ‘विमर्या’
परिचय:विवेकानंद विमल का साहित्यिक उपनाम-विमर्या
हैl आपकी जन्मतिथि-१६ जनवरी १९९७ तथा जन्म स्थान-ग्राम माधोपुर(पोस्ट-पाथरौल,जिला-देवघर,झारखंड) हैl वर्तमान में भी झारखंड राज्य के पाथरौल(शहर मधुपुर) में बसे हुए हैंl गिरिडीह से फिलहाल एम.ए.(अंग्रेजी) में अध्ययनरत हैंl बतौर विद्यार्थी विमर्या की लेखन विधा-कविता व लेख हैl इनकी उपलब्धि यही है कि,अनेक समाचार पत्र-पत्रिकाओं में नवीन कविताओं व समसामयिक विषयों पर लिखे आलेख का नियमित प्रकाशन होता रहता हैl काव्य पाठ के लिए झारखण्ड में ‘सारस्वत सम्मान’ से सम्मानित किए गए हैंl ब्लॉग पर भी सक्रिय विमर्या के लेखन का उद्देश्य-निराशा से निकलकर समाज में आशावाद की ज्योति जलाना हैl