आसमान पर ड़ाला ड़ेरा
गाँव-शहर सबको आ घेरा
बड़ी दूर से चलकर आये
जाने कहाँ-कहाँ से आये
तरह-तरह के रुप बनाकर
बरसाते हैं मस्त फुहार
आ गये बादल लेके उपहार
समीर गा रही मीठी मल्हार
सौंधी-सौंधी खुशबू आती
कृषक मायूसी छटती जाती
करे प्रतीक्षा सजनी चिट्ठी की
भूले सजन सुध मिट्टी की
मेघ बरसते-मन तरसते
नयनों से नित झरने झरते
कौन सुने प्यासी पुकार
तपती धरती करे मनुहार
रे बादल मनभर बरसना
गरज-गरज कर बरसना
रह न जाये अधूरी आस
उढाये न कोई उपहास
तेरा अंश-अंश धरती के अंग
धरती के यौवन में उठे तरंग
तेरा बरसना, बरस कर जाना
श्रृष्टि का नव निर्माण करना
#मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
परिचय : मुकेश कुमार ऋषि वर्मा का जन्म-५ अगस्त १९९३ को हुआ हैl आपकी शिक्षा-एम.ए. हैl आपका निवास उत्तर प्रदेश के गाँव रिहावली (डाक तारौली गुर्जर-फतेहाबाद)में हैl प्रकाशन में `आजादी को खोना ना` और `संघर्ष पथ`(काव्य संग्रह) हैंl लेखन,अभिनय, पत्रकारिता तथा चित्रकारी में आपकी बहुत रूचि हैl आप सदस्य और पदाधिकारी के रूप में मीडिया सहित कई महासंघ और दल तथा साहित्य की स्थानीय अकादमी से भी जुड़े हुए हैं तो मुंबई में फिल्मस एण्ड टेलीविजन संस्थान में साझेदार भी हैंl ऐसे ही ऋषि वैदिक साहित्य पुस्तकालय का संचालन भी करते हैंl आपकी आजीविका का साधन कृषि और अन्य हैl