राखी

0 0
Read Time5 Minute, 27 Second
rajeshwari
८ साल का भव्य और ५ साल की अनन्या भाई-बहन है। दोनों ही खूब झगड़ा करते थे। भव्य  सीधा-सादा था जबकि अनन्या शैतान थी। वो भव्य को नोंचती-मारती, और कभी-कभी तो काट खाती। भव्य बड़ा होने के कारण सब सहन कर लेता  था,पर कभी तो वो बदला ले ही लेता था। उन सबके वावजूद दोनों एक-दूसरे को बहुत प्यार करते थे। अनन्या,भव्य को रोता हुआ नहीं देख सकती थी,तो भव्य अनन्या का पूरा ख्याल रखता  था। एक बार उन दोनों की जबरदस्त लड़ाई हो गई। खूब मारा-कूटी,काटना,नोंचना,हाथ-लात सब चल गए। दोनों खूब रोए और और कट्टी हो गए।
अब एक-दूसरे से बात नहीं करे,एक-दूसरे को देखे भी नहीं। दोनों का झगड़ा और रुठना बड़ा ही दिल छूने वाला था। २-४
दिन यूं ही निकल गए। राखी का दिन पास आ रहा था। जब भव्य को ये ध्यान आया,तो अब उसको लगा कि,मेरे को राखी कौन बांधेगा? अनन्या तो नाराज है। अब तो बड़ी मुश्किल हो गई,क्योंकि उसको राखी और टीके का बहुत शौक था। उसने सोचा-मान लो,उस दिन अनन्या ने मेरे को राखी बांध दी,तो मैं उसको क्या दूंगा! सोचने के बाद राखी के एक दिन पहले उसने इसका भी हल निकाल लिया। अपनी गुल्लक निकाली, जिसमे वो अपने खर्चे के पैसे हमेशा बचाकर रखता था। उसके पास १५० रुपए की जमा पूंजी मिली। वो सबसे छिपकर दुकान पर गया और अनन्या की पसंद का खिलौना उपहार में ले आया। इसे छिपाकर रख दिया और इंतजार करने लगा राखी का,कि अनन्या मेरे को राखी बांधेगी या नहीं। इधर अनन्या को भी जब पता लगा कि,कल राखी है और भैया को राखी बांधनी है तो वो सोच में पड़ गई। भैया तो नाराज है,मुझसे राखी बंधवाएगा कि नहीं! अब वो क्या करे ? छोटी थी तो मम्मी के पास गई,पर बात नहीं बनी। तब उसने भी अपनी गुल्लक संभाली तो 100 रुपए की राशि मिली। वो पास की दुकान पर गई,बोली-अंकल मुझे सुंदर-सी राखी दे दो,भैया को बांधनी है। दुकानदार उस मासूम की बात पर इतना मोहित हो गया। उसे गोदी में उठा लिया और पूछा-कौन-सी राखी चाहिए? उसको जो सबसे सुंदर लगी,वो बता दी। दुकानदार राखी देकर बोला-और कुछ चाहिए ? बोली-हां। क्या चाहिए ? बोली-बड़ी वाली टॉफी। ओह। राखी और टॉफी लेकर अनन्या घर आई ,तथा बैग में छिपाकर रख दी।
दूसरे दिन राखी थी,इसलिए घर में चहल- पहल थी। बुआ आदि आई हुई थी,पर दोनों भाई-बहन सुस्त थे। शंका थी कि, अनन्या राखी बांधेगी या नहीं..भाई राखी बंधवाएगा कि नहीं! फिर राखी बांधने  का समय भी आ गया। बुआ राखी बांधने लगी थी। भव्य इधर आओ,राखी  बँधवाओ-बुआ ने कहा। ये सुनकर भव्य तो छिप गया। उसको पहली राखी बहन से बंधवानी थी,इधर अनन्या भी बुआ से राखी नही बंधवा  रही थी। बुआ ने जब दुबारा पुकारा तो भव्य को लगा कि,अब बुआ नहीं मानेगी। जब बहुत देर हो गई तो भव्य से रहा नहीं गया। वो अनन्या के
सामने जाकर शर्ट की बांह ऊँची कर हाथ आगे बढ़ाकर खड़ा हो गया,और अनन्या से कलाई की तरफ इशारा करने लगा कि,मुझे राखी बांध। पहले तो अनन्या समझी नहीं,पर जब अनन्या को समझ आया तो वो ख़ुशी से भागी और बैग से राखी और टॉफी निकालकर ले आई। बड़े ही प्यार से खुद की लाई राखी बांधने लगी। पहले रोली का टीका  लगाया,फिर चावल लगाए,फिर टॉफी खिलाई और राखी बाँधी। अब उससे  रहा नहीं गया,और वो भाई के गले लग के रो पड़ी। दोनों भाई-बहन गले मिल रहे थे,रो रहे थे। ‘सॉरी भैया,अब नहीं मारुँगी, माफ़ कर दो।’ ‘मैं भी नहीं मारुंगा,हम कभी नहीं लड़ेंगे।’ ऐसा मार्मिक दृश्य देख सभी की आँखों मे आंसू आ गए थे। तभी भव्य को याद आया और वो छिपाकर रखा गिफ्ट लेकर आया और अनन्या को दिया। उसे लेकर तो वो बहुत खुश हो गई। ये देखकर घरवाले सोच रहे थे कि,  दोनों ने ये सब कैसे और कब किया ?
एेसा होता है भाई-बहन का प्यार….।

                                                                  #श्रीमती राजेश्वरी जोशी

परिचय : श्रीमती राजेश्वरी जोशी का निवास अजमेर (राजस्थान) में है। आप लेखन में मन के भावों को अधिक उकेरती हैं,और तनुश्री नाम से लिखती हैं।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

तेरा-मेरा साथ

Fri Nov 10 , 2017
तेरी जुल्फों की छांव में तपती कड़क धूप भी, झिलमिल-सी लगती है। साथ तेरा जो हर पल बना रहे, तो तन्हाई भी महफ़िल-सी लगती हैll हाथों में हाथ थाम तेरा राह चलूँ, तो राह भी मंजिल-सी लगती है। रंगत रंगों की तुझसे ही तो है, रंगों में तू तो शामिल-सी […]

पसंदीदा साहित्य

नया नया

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, ख़बर हलचल न्यूज़, मातृभाषा डॉट कॉम व साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। साथ ही लगभग दो दशकों से हिन्दी पत्रकारिता में सक्रिय डॉ. जैन के नेतृत्व में पत्रकारिता के उन्नयन के लिए भी कई अभियान चलाए गए। आप 29 अप्रैल को जन्में तथा कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की। डॉ. अर्पण जैन ने 30 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण आपको विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2020 के अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से डॉ. अर्पण जैन पुरस्कृत हुए हैं। साथ ही, आपको वर्ष 2023 में जम्मू कश्मीर साहित्य एवं कला अकादमी व वादीज़ हिन्दी शिक्षा समिति ने अक्षर सम्मान व वर्ष 2024 में प्रभासाक्षी द्वारा हिन्दी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं, साथ ही लगातार समाज सेवा कार्यों में भी सक्रिय सहभागिता रखते हैं। कई दैनिक, साप्ताहिक समाचार पत्रों व न्यूज़ चैनल में आपने सेवाएँ दी है। साथ ही, भारतभर में आपने हज़ारों पत्रकारों को संगठित कर पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को लेकर आंदोलन भी चलाया है।