मानव मात्र का धर्मशास्त्र-यथार्थ गीता

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rajesh sharma
श्रीमद्भगवतगीता की अद्वितीय व्याख्या यथार्थ गीता मानव मात्र का धर्मशास्त्र है। भारत में प्रकट हुई गीता विश्व मनीषा की धरोहर है। भारत सरकार को चाहिए कि,यथार्थ गीता को भारत का राष्ट्रीय धर्मशास्त्र घोषित कर दिया जाए।
यथार्थ गीता को राष्ट्रीय शास्त्र का मान देकर ऊँच-नीच, भेदभाव तथा कलह परम्परा से पीड़ित विश्व की सम्पूर्ण जनता को शांति देने के प्रयास की आज आवश्यकता है।यथार्थ गीता पढ़ने से सुख-शांति मिलती है,साथ ही यह अक्षय अनामय पद भी देती है।
यथार्थ गीता में ईश्वरीय साधना ईश्वर तक की दूरी तय करने की सांगोपांग क्रमबद्ध विधि लिखी गई है। परमहंस आश्रम(शक्तेशगढ़,उत्तर प्रदेश) के परमहंस स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज द्वारा व्याख्या की गई इस यथार्थ गीता कृति का निशुल्क वितरण उज्जैन महाकुम्भ के अवसर पर लाखों भक्तों को किया गया था।
सारे वेदों के प्राण उपनिषदों का भी सार यथार्थ गीता है। अशांत जीव को परमात्मा के दर्शन और साधना की स्थिति शाश्वत शांति की स्थिति तक पहुंचाने का कार्य सुगम तरीके से करती है यथार्थ गीता। यथार्थ गीता की इस टीका को विश्व में सबसे ज्यादा संख्या में लोग पढ़ रहे हैं।
यथार्थ गीता एकतामूलक धर्मशास्त्र है। विश्व में भाईचारा व एकता यदि कोई धर्मशास्त्र स्थापित कर सकता है,तो वह है यथार्थ गीता। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि,चार वेद ब्रह्मसूत्र महाभारत भागवत एवं गीता जैसे ग्रंथों में पूर्व सिंचित भौतिक और आध्यात्मिक ज्ञान राशि को संकलित कर निर्णय दिया कि,गीता ही भली प्रकार मनन करने योग्य ह्रदय में धारण करने योग्य है। यथार्थ गीता उसी गीता की व्याख्या है,जो भगवान श्रीकृष्ण के श्री मुख का सीधा प्रसारण है।
अतः शास्त्र एक है यथार्थ गीता,यह निर्णय स्वयं भगवान ने दिया है। यथार्थ गीता की तीन आवर्तियाँ करना चाहिए। मनन करें क्योंकि,यह क्रियात्मक साधना है। ५२०० वर्षों के लंबे अंतराल के बाद गीता की इस व्याख्या को श्री काशी विद्वत परिषद,विश्व धर्म संसद ने स्वीकारा। लेखक विश्व गुरु,भारत गौरव विश्व गौरव की उपाधियों से सम्मानित गीता भाषी हैं।
यथार्थ गीता बारह भारतीय भाषाओं में प्रकाशित है हिंदी मराठी,पंजाबी,गुजराती,संस्कृत,उड़िया,बंगला,तमिल,तेलगू, मलयालम और कन्नड़ भाषाओं में उपलब्ध है। साथ ही यथार्थ गीता विदेशी भाषाओं में भी प्रकाशित हैl अंग्रेजी, जर्मन,फ्रेंच,नेपाली,स्पेनिश,नार्वेजियन,चायनीज,चेक इटालियन तथा रूसी के साथ अनेक भाषाओं में उपलब्ध है। विश्व के सभी देशों में आज यथार्थ गीता पढ़ी जा रही है।
महाराज ने विपुल साहित्य लिखा है,जिनमें यथार्थ गीता सबसे ज्यादा पसंद की जा रही है।
हम अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देना चाहते हैं,उसे कर्मपथ पर चलना सिखाना चाहते हैं,तो उसे बचपन से ही यथार्थ गीता पढ़ाने में लगाएं।
कर्म-धर्म,यज्ञ जैसे प्रश्नों का सरल उत्तर यथार्थ गीता देती है। आज ईश्वर प्राप्ति के लिए महापुरुषों के मठ आश्रम तीर्थ मंदिर वहीं बना लेते है,जहां वो महापुरुष एकांत भजन किया करते थे। वहाँ भोग विलास के साधन इकठ्ठे करना शुरू कर देते हैं। फिर गद्दी के लिए झगड़े होते हैं,जबकि धर्म तो सदा से ही प्रत्यक्षदर्शी महापुरुष के क्षेत्र की वस्तु रहा है।
परामश्रेय व समृद्धि के संस्कारों का बीजारोपण भी यथार्थ गीता करती है। आज की भागदौड़ की जिंदगी में शांति-सुख के लिए यथार्थ गीता प्रतिदिन पढ़ने की आवश्यकता है। ७०० श्लोक की व्याख्या की गई है यथार्थ गीता में। वर्तमान में गीता की कई टीकाएँ है परंतु सभी अपनी सत्यता का उदघोष करती है,किंतु गीता के शुद्ध अर्थ से वह दूर है। कुछ लेखकों ने सत्य का स्पर्श किया,किंतु किन्हीं कारणों से वे समाज के संजसग प्रस्तुत नहीं कर सके।
श्रीकृष्ण के आशय को ह्रदयंगम न कर पाने का मूल कारण यह था,कि वे एक योगी थे। वे जिस स्तर की बात करते हैं उसे एक योगी ही समझ पाएगा। जिस समय भगवान कृष्ण ने उपदेश दिया,उस समय उनके मनोगत भाव क्या है। यथार्थ गीता के लेखक के गुरुजी पूज्य महाराज उसी स्तर के महापुरुष थेl उनकी वाणी तथा अंतःप्रेरणा से जो अर्थ मिला,वही सब लिखा गया यथार्थ गीता में। यथा अर्थ अथार्थ जैसे का जैसा ही,इसलिए इस कृति का नाम
यथार्थ गीता है।
मानव धर्म शास्त्र यथार्थ गीता में विश्व में प्रचलित सम्पूर्ण धार्मिक विचारों के आदि उदगम स्थल भारत के समस्त आध्यात्म औऱ आत्मस्थिति दिलाने वाली सम्पूर्ण शोध के साधनक्रम का स्पष्ट वर्णन इसमें है। इसमें बताया कि,ईश्वर एक पाने की क्रिया पथ में अनुकम्पा एक तथा परिणाम एक है। वह है प्रभु का दर्शन,भगवत स्वरुप की प्राप्ति और काल से अतीत अनंत जीवन।
आज यथार्थ गीता राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री,समस्त सांसदों, मंत्रियों,राज्यों के मुख्यमंत्रियों,विधायकों,समस्त सामाजिक व धार्मिक संघटनों,संस्थाओं तक को भेंट की गई है।
राजस्थान के सभी राजकीय विद्यालयों के पुस्तकालयों में यथार्थ गीता उपलब्ध है। `घर-घर गीता,हर घर गीताl`
 #राजेश कुमार शर्मा ‘पुरोहित’
परिचय: राजेश कुमार शर्मा ‘पुरोहित’ की जन्मतिथि-५ अगस्त १९७० तथा जन्म स्थान-ओसाव(जिला झालावाड़) है। आप राज्य राजस्थान के भवानीमंडी शहर में रहते हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है और पेशे से शिक्षक(सूलिया)हैं। विधा-गद्य व पद्य दोनों ही है। प्रकाशन में काव्य संकलन आपके नाम है तो,करीब ५० से अधिक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा आपको सम्मानित किया जा चुका है। अन्य उपलब्धियों में नशा मुक्ति,जीवदया, पशु कल्याण पखवाड़ों का आयोजन, शाकाहार का प्रचार करने के साथ ही सैकड़ों लोगों को नशामुक्त किया है। आपकी कलम का उद्देश्य-देशसेवा,समाज सुधार तथा सरकारी योजनाओं का प्रचार करना है।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।