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ईर्ष्या की आँधी आडम्बर,के तूफां से टकराना है।
हम दीपक हैं काम हमारा,तो उजियारा फैलाना है॥
स्वार्थपरकता के बादल जब,सच के सूरज पर छाते हैं।
लालच के अँधियारे मिलकर,सच्चाई को खा जाते हैं॥
तब अचेत जन साधारण को,सच्चाई से मिलवाना है…,
हम दीपक हैं काम हमारा,तो उजियारा फैलाना है…॥
पतझर के मौसम से बगिया,के माली की मिली भगत हो।
संस्कारों के आँगन में जब,दुराचारियों का स्वागत हो॥
काम हमारा तब आँगन की,पावनता को लौटाना है…,
हम दीपक हैं काम हमारा,तो उजियारा फैलाना है…॥
कर्तव्यों से विमुख हुए जो,सच्चाई के पथ से भटके।
राह ढ़ूँढते हैं जीवन की,जो मर्यादाओं से हट के॥
मानवता का मूल्य उन्हें फिर,हर हालत में समझाना है…,
हम दीपक हैं काम हमारा, तो उजियारा फैलाना है…॥
#सतीश बंसल
परिचय : सतीश बंसल देहरादून (उत्तराखंड) से हैं। आपकी जन्म तिथि २ सितम्बर १९६८ है।प्रकाशित पुस्तकों में ‘गुनगुनाने लगीं खामोशियाँ (कविता संग्रह)’,’कवि नहीं हूँ मैं(क.सं.)’,’चलो गुनगुनाएं (गीत संग्रह)’ तथा ‘संस्कार के दीप( दोहा संग्रह)’आदि हैं। विभिन्न विधाओं में ७ पुस्तकें प्रकाशन प्रक्रिया में हैं। आपको साहित्य सागर सम्मान २०१६ सहारनपुर तथा रचनाकार सम्मान २०१५ आदि मिले हैं। देहरादून के पंडितवाडी में रहने वाले श्री बंसल की शिक्षा स्नातक है। निजी संस्थान में आप प्रबंधक के रुप में कार्यरत हैं।
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