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‘मैं कौन हूं ?’,
प्रश्न पर मौन हूं।
मौन रहकर भी
वाचाल हूं मन से।
मां-बाप बापू से
पूछा था प्रश्न यही,
‘आप हमारी बिटिया हैं’
मिला था जवाब।
पति से दुहराया प्रश्न
‘अरे पगली! धर्मपत्नी हो
मेरी,और कौन।’
नियुक्ति-पत्र मिला
देखने में आया,
प्रोबेशनर आफिसर हूं।
ऐसे ही कई-कई उत्तर
मिलते रहे मुझे,
परन्तु इतनी सारी
भूमिकाओं में से,
अपने प्रश्न का कोई
संतोषजनक उत्तर
नहीं मिला।
‘क्या में देह हूं ?’,
पर इसका तो एक
लोक नाम है।
यही नाम किसी
अन्य देह का भी तो
हो सकता है,
क्या वह भी मैं हूं ?
‘क्या मैं मन हूं ?’,
जो विचारों के
संजाल में दिन-रात
भटकता फिरता है।
मैंने प्रश्नोत्तर के
प्रयास छोड़ दिए,
मैं तटस्थ हो चुका हूं।
जो हुआ,क्यो़ं याद करुं,
जो होगा,क्यों विचारुं ?
जो हो रहा है
यह तो मेरे चाहने-न चाहने
दोनों स्थितियों में होता है,
अत: इस पर भी मेरी
कोई प्रतिक्रिया नहीं,
मेरे ना चाहने पर भी
हुआ,हो रहा,और होगा।
फिर एक बार प्रश्न उठा,
अर्जुन-सा कुरूक्षेत्र में
अपेक्षित उत्तर था खड़ा,
मुस्कराते कृष्ण-सा।
ब्रम्हांड को गतिशील बनाती
महाशक्ति का लघुतम अंश हूं,
जिसे कोई भी शक्ति,
नष्ट नहीं कर सकती।
मैं वे सभी कार्य करती हूं,
जो महाशक्ति करती है
सृष्टि,पालन और विनाश।
#डॉ.चंद्रा सायता
परिचय: मध्यप्रदेश के जिला इंदौर से ही डॉ.चंद्रा सायता का रिश्ता है। करीब ७० वर्षीय डॉ.सायता का जन्मस्थान-सख्खर(वर्तमान पाकिस्तान) है। तत्कालिक राज्य सिंध की चंद्रा जी की शिक्षा एम.ए.(समाजशास्त्र,हिन्दी साहित्य,अंग्रेजी साहित्य) और पी-एचडी. सहित एलएलबी भी है। आप केन्द्र सरकार में अधिकारी रहकर
जुलाई २००७ में सेवानिवृत्त हुई हैं। वर्तमान में अपना व्यक्तिगत कार्य है। लेखन से आपका गहरा जुड़ाव है और कविता,लघुकथा,व्यंग्य, आलेख आदि लिखती हैं। हिन्दी में ३ काव्य संग्रह, सिंधी में ३,हिन्दी में २ लघुकथा संग्रह का प्रकाशन एवं १ का सिंधी अनुवाद भी आपके नाम है। ऐसे ही संकलन ७ हैं। सम्मान के तौर पर भारतीय अनुवाद परिषद से, पी-एचडी. शोध पर तथा कई साहित्यिक संस्थाओं से भी पुरस्कृत हुई हैं। २०१७ में मुरादाबाद (उ.प्र.) से स्मृति सम्मान भी प्राप्त किया है। अन्य उपलब्धि में नृत्य कत्थक (स्नातक), संगीत(३ वर्ष की परीक्षा उत्तीर्ण),सेवा में रहते हुए अपने कार्य के अतिरिक्त प्रचार-प्रसार कार्य तथा महिला शोषण प्रतिरोधक समिति की प्रमुख भी वर्षों तक रही हैं। अब तक करीब ३ हजार सभा का संचालन करने के लिए प्रशस्ति -पत्र तथा सम्मान पा चुकी हैं। लेखन कार्य का उद्देश्य मूलतः खुद को लेखन का बुखार होना है।
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Tue Oct 31 , 2017
राष्ट्रभक्ति निज शक्ति मन में पसार करें, कोटि-कोटि जन का उद्धार होना चाहिए। राम नहीं दिखें अब रावण हैं चहुँ ओर, दुष्ट जन का अब संहार होना चाहिए। प्राण प्रण से जुटे जो देश सेवा राह पर, उन्हें सत्कार औ उपहार होना चाहिए। शर्मसार मानव है,बेलगाम दानव है, दानवी चलन […]