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हे पावन से दीप,
धरा का तम हर दो।
जग के कण-कण में,
सुंदर आभा भर दो॥
राग-द्वेष का नाम,
मिटे मानव मन से।
निर्मल बुद्धि का जन,
जन को वर दो॥
ज्ञान की सरिता,
बहे फिर विश्व में।
मरूभूमि के आंगन में,
सागर कर दो॥
गीत गूँजे सदा,
हर्ष उल्लास के।
वाणी में तुम
कोकिल स्वर दो ॥
#सुदामा दुबे
परिचय : सुदामा दुबे की शिक्षा एमए(राजनीति शास्त्र)है।आप सहायक अध्यापक हैं और सीहोर(म.प्र)जिले के बाबरी (तहसील रेहटी)में निवास है। आप बतौर कवि काव्य पाठ भी करते हैं।
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