उड़ने की चाह हो

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ranu dhanoriya
हौंसले बुलंद रखो,गर दरिया की चाह हो,
कांटे हट जाएंगे,गर कलियों की चाह हो।
रोक सकता है कारवां,तो रोककर देखे,
खुद ही झुक जाएगा,गर झुकाने की चाह हो।
सफर में राहें भले कितनी भी कठिन हों,
खुद ही कदम चूमेगी,गर मंजिल की चाह हो।
ख्वाहिश पूरी न होती,गर जीवन की चाह हो,
मरना मुश्किल होता है,गर अपनों की चाह हो।
खत्म नहीं होता सिलसिला ये सदियों का,
तूफां भी लौट जाएगा,गर भिड़ने की चाह हो।
दिल में चाहत का एहसास होना जरूरी है,
प्यार तो हो जाएगा,गर मर मिटने की चाह हो।
वो जज्बा होना चाहिए,गर बढ़ने की चाह हो,
लगन होना चाहिए,गर कुछ करने की चाह हो।
अंधेरी रागिनी होगी,न कोई फासला होगा,
सवेरा आएगा फिर से,गर ढलने की चाह हो।
मुंह उठा के आसमां की तरफ क्या देखें ‘रानू’,
पंख खुद खुल जाएंगे,गर उड़ने की चाह हो॥
                                                      #रानू धनौरिया
परिचय : रानू धनौरिया की पहचान युवा कवियित्री की बन रही है। १९९७ में जन्मीं रानू का जन्मस्थान-नरसिंहपुर (राज्य-मध्यप्रदेश)है। इसी शहर-नरसिंहपुर में रहने वाली रानू ने जी.एन.एम. और बी.ए. की शिक्षा प्राप्त की है। आपका कार्यक्षेत्र-नरसिंहपुर है तो सामाजिक क्षेत्र में राष्ट्रीय सेवा योजना से जुड़ी हुई है। आपका लेखन वीर और ओज रस में हिन्दी में ही जारी है। आपकॊ नवोदित कवियित्री का सम्मान मिला है। लेखन का उद्देश्य- साहित्य में रुचि है।

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