मन आंगन में मने दीवाली

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तेरे-मेरे इस
बंधन की,
एक वंदनवार
बनाई है…
अंतरमन के
द्वारे पर इसकी,
लड़ी सजाई है।

अपनी प्रीत के
हर रंग से मैंने,
अनुपम रंगोली
बनाई है…
निरख चटख रंगों
की छटा हर्षित,
मन अरुणाई है।

नयनों के दीप
जलाकर मैंने,

दीप कतार
लगाई है…
तेरे नयनों की
प्रज्जवलित बाती,
हर दीपशिखा
लरजाई है।

हरित वसन पर
जड़ित बूटियां,
स्वर्णिम आभा
बिखराई है…
धारण कर मैं
लगूँ सुहागन,
अनुभूति बहुत
सुखदाई है।

मन आंगन में
मने दीवाली,
पावन पर्व बेला
मधुमायी है…
साथ चलो तुम
पग-पग पर,
अभिलाषा ऐसी
जाई है।

                                                             #लिली मित्रा

परिचय : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर करने वाली श्रीमती लिली मित्रा हिन्दी भाषा के प्रति स्वाभाविक आकर्षण रखती हैं। इसी वजह से इन्हें ब्लॉगिंग करने की प्रेरणा मिली है। इनके अनुसार भावनाओं की अभिव्यक्ति साहित्य एवं नृत्य के माध्यम से करने का यह आरंभिक सिलसिला है। इनकी रुचि नृत्य,लेखन बेकिंग और साहित्य पाठन विधा में भी है। कुछ माह पहले ही लेखन शुरू करने वाली श्रीमती मित्रा गृहिणि होकर बस शौक से लिखती हैं ,न कि पेशेवर लेखक हैं। 

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