कर्नाटक में हिंदी के बिगड़ते हालात

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suresh pattar
      देश के छोटे से छोटे गाँव से लेकर बड़े से बड़े मुम्बई,दिल्ली,बेंगलूरु, कोलकोत्ता,अहमदाबाद,शिलांग,श्रीनगर जैसे शहरों में हिंदी को जान सकते हैं, समझ सकते हैं,हिंदी में भावनाओं का आदान-प्रदान कर सकते हैं। अपवाद के रूप में तमिलनाडु और केरल के राज्य आते हैं। देश की जन-जन की भाषा रही है हिंदी, इसमें कोई संदेह नहीं है। इसी कारण से उत्तर भारत के बहुत सारे लोग दक्षिण भारत के अहिंदीतर प्रदेश में भी सफलतापूर्वक उद्योग करते हैं। लोग छोटी-से-छोटी चाय की दुकान से लेकर बड़े-बड़े महलों में भी कारोबार चलाते हैं। शान से सबसे मिलजुलकर खुशी से जीवन निर्वाह करते हैं।
दक्षिण भारत के कर्नाटक के जो लोग हिंदी समझते हैं,वे भी गोवा,महाराष्ट्र, हैदराबाद जैसे राज्यों में बसे हैं और आम जनता के साथ मिलजुलकर आराम से जीवन बिता रहे हैं।
दिक्कत का सामने करने वाले तमिलनाडु और केरल के वे लोग हैं,जो हिंदी की जानकारी नहीं रखते हैं। वे देश के हर छोटे-बड़े शहर में आम जनता के साथ नहीं दिखाई देते,मिलजुलकर रहने में असमर्थ रहे हैं। इसका मूल कारण है भाषा की समस्या। इस हिंदी भाषा अज्ञान के कारण देश की भावना को समझने में वे असमर्थ रहे हैं। ये हिंदी से अपरिचित लोग अंग्रेजी को द्वितीय भाषा के रुप में स्कूल में पढ़ते हैं। जो पढ़े-लिखे हैं,वे लोग बडी-बड़ी कंपनियों में काम करते हैं। अपने-आप को महान मेधावी समझते हैं। अन्य अंग्रेजी से अपरिचित लोग भी इन्हें महान मेधावी समझते हैं। उसके पीछे कारण हो सकता है कि,
बड़ी कम्पनी से मिलने वाला मोटा-मोटा वेतन और विदेशी यात्रा की सुविधा।
विदेश की बड़ी कंपनियाँ या देश की बड़ी कंपनियाँ जो विदेश में कारोबार चलाती है,वे अंग्रेजी जानकारों से मात्र अधिक मतलब रखते हैं। इसके कारणों में एक ओर शासकीय व्यवस्था,न्यायिक व्यवस्था में अंग्रेजी का बोलबाला और विदेशों में कारोबार विस्तार करने में मदद हैं। इन्ही कारणों  से ये लोग भारत की आम जनता की भावना नहीं समझ पाते हैं। ये कम्पनी अपने व्यापार मात्र से मतलब रखती हैं। ऐसी कंपनियाँ जल्द ही देश-विदेश में कारोबार फैलाकर बड़ा नाम कमाते हैं या जल्द बंद हो जाती हैं।जो कंपनी विदेश में प्रसिद्ध हो जाती है, वो कंपनियाँ इसी ख्याति को आम जनता पर थोप-थोपकर व्यापार करती हैं। उत्पादक और उत्पादन की सही जानकारी देने की बजाए कंपनी के नाम को बेचते हैं। लोग आवश्यक उत्पाद को खरीदने की बजाए फैशन के लिए कंपनी की प्रसिद्धि खरीदकर उसका नाम रोशन करते हैं और खुद अंधेरे में रहते हैं। इसी कारण से अंग्रेजी के जानकार चंद लोग आगे बढ़ रहे हैं। बहुत सारे लोगों की प्रगति सत्तर साल के बाद भी वहीं की वहीं है।
इससे स्पष्ट है कि,जो अंग्रेजी जानते हैं, वे ज्यादातर अमीर हैं या आजकल अमीर हो सकते हैं। उनमें से अधिकतर लोगों को देश की आम जनता की भावना से कोई मतलब नहीं है। दूसरी ओर विदेशियों का भारत में अंग्रेजी शिक्षा से व्यापार क्षेत्र बढ़ जाता है।
 स्पष्ट है कि,अंग्रेजी से देश की चंद जनता को और  विदेशियों को बहुत लाभ है। इससे देश को बहुत बड़ी हानि आज तक हुई है,और हो भी रही है।
देश और देश की भावनाओं को नजर अंदाज करते हुए राजनीतिक दल भाषा के नाम पर अपना खेल,खेल रहे हैं। हम हम अगर राजनीतिक चंगुल में फंसते चले गए तो आगामी दिनों में भारत की हालत ऐसी होगी कि,कर्नाटक एक स्वतंत्र देश के रूप में काम करने लगेगा। तमिलनाडु,केरला,आंध्रप्रदेश,आसाम, मिजोरम और सभी राज्य अलग-अलग अपनी प्रांतीय भाषा में स्वतंत्र देश के रूप में काम करने लगेंगें। हर कोई राज्य अपने-अपने प्रांत की जनता की भावना मात्र को महत्व देने लगेगा। पूरा भारत भाषा के नाम पर विघटित होकर मानसिक रूप से अलग हो जाएगा। तब भारत के अपने भाई राज्य के साथ संबंध स्थापित करने के लिए अंग्रेजी का सहारा लेना पड़ेगा, जैसे आज हम विदेश में व्यवहार करने के लिए अंग्रेजी की शरण में जाते हैं। तब विदेशियों को भारत को तोडने में देर नहीं लगेगी,क्योंकि उतने में सब भातृत्व की भावनाएं मर चुकी होती हैं। आगे की कल्पना में स्वतंत्रता पूर्व के भारत की स्थिति को याद कीजिए।
     अब हम तमिलनाडु और केरल में जाते हैं, तो ऐसी भावना आती है कि,क्या हम भारत में है या किसी विदेश में। आज तक ऐसी स्थिति कर्नाटक में नहीं आई है,लेकिन इसके शिलान्यास का काम चल रहा है। कहने का मतलब यही है कि, कर्नाटक में सीबीएसई शिक्षा पद्धति लागू करने के नाम से द्विभाषा सूत्र को थोपा जा रहा है। इससे कर्नाटक में हिंदी का अवसान शुरू होगा।अगर द्विभाषा सूत्र लागू हो गया तो मान लीजिए कि अखंड भारत की कल्पना से कर्नाटकवालों के भी दो कदम पीछे हटने का कार्य शुरु हो जाता है। आज नहीं तो कल,इसका दुष्परिणाम दिखाई देगा।
इस परिणाम से बचने के लिए समस्त भारतवासियों से निवेदन है कि,हिंदी को बढ़ावा देने का महत्वपूर्ण कार्य होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में हिंदी का उपयोग अनिवार्य करना चाहिए, क्योंकि भारत की जन-जन की भाषा हिंदी है। हम इस भाषा के बिना अपनी भावना को ठीक तरह प्रकट नहीं कर पाएंगें। विदेशी कंपनियों को हिंदी में व्यवहार करना अनिवार्य करना चाहिए,ताकि जनता की इच्छानुसार उत्पादन करें। अगर नहीं मानते हैं ऐसी कम्पनियों कॊ भगा दीजिए। भारत में बहुत सारे मेधावी युवा हैं,उस कार्य कॊ संभाल लेंगे।
देश की सुरक्षा और प्रगति के लिए हिंदी अनिवार्य है,लेकिन इसके प्रति आज जो कुछ भी प्रांतीय भाषा और अंग्रेजी को बढ़ावा देने का आतुर मनोभाव से हो रहा है, यह देश के लिए खतरा हैे।
मेरा उद्देश्य किसी भी प्रांतीय भाषा या किसी भाषा के प्रति द्वेष-भावना प्रकट करना नहीं है,मकसद सिर्फ देश के हित के लिए भारत को एक सूत्र में बांधने की क्षमतावाली हिंदी भाषा का महत्व बताना है। इसके लिए देशभर में हिंदी पढ़ाना अनिवार्य बना दिया जाए,क्योंकि इससे l राष्ट्रीय एकता बनाकर रख सकते हैं। देश को एक सूत्र में बांधने की क्षमता हिंदी मात्र में है। अनुरोध है कि,देश का हर व्यक्ति गौर करे,देश की एकता के लिए हिंदी के प्रचार-प्रसार कार्य में अपनों को जोड़िए,यही देश की सबसे बड़ी सेवा है।
                                                              #सुरेश जी पत्तार ‘सौरभ’
परिचय : सुरेश जी पत्तार ‘सौरभ’ बागलकोट (कर्नाटक) में रहते हैं। शिक्षा एमए,बीएड,एम.फिल. के साथ ही पी .एचडी.भी है। आप मूलतः हिन्दी के अध्यापक हैं और कविता-कहानी लिखना शौक है। नागार्जुन के काव्य में शोषित वर्ग सहित कई पत्रिकाओं में आलेख,कविताएँ,कहानी प्रकाशित हैं।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।