प्रेम

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keshav
हे प्रियतमा!
मैं कैसे कहूँ,
कुछ कहूँ
या चुप रहूँ।
 
मैं चाहता हूँ कि,
मैं कृष्ण बनूँ
तुम राधा बनो,
मैं राम बनूँ
तुम सीता बनो,
मैं रांझा बनूँ,
तुम हीर बनो…
लेकिन!
उलझन में हूँ,
कि, कहीं!
तुम्हें खो न दूँ,
क्योंकि?
कृष्ण का प्यार,
राम का प्यार
रांझा का प्यार,
अधर में लटक गया,
रास्ते से भटक गया।
 
कृष्ण ने,
रुक्मिणी को
राम ने, 
अपनी जनता को
रांझा ने,
अपनी मौत को
गले लगा लिया।
 
मैं ये नहीं कहता
कि,उन्होंने गलत किया,
उन्होंने धर्म पालन किया
और सर्व समभाव,
समाज को बनाया।
 
मैं भी चाहता हूँ,
कि,समभाव बना रहे
लेकिन मैं ये भी
चाहता हूँ कि,
आप मेरे सामने बैठी रहो,
और मैं केवल देखता रहूँ।
 
मैं आपको
खोना नहीं चाहता हूँ,
आपको अब
गम देना नहीं चाहता हूँ।
 
मैं जीवन के अंतिम क्षण में भी,
सिर्फ आपको देखना चाहता हूँ
वो भी मुस्कुराते हुए,
और खिलखिलाते हुए।
कुछ गुनगुनाते हुए,
नजरें भी चुराते हुएll

                                                                 #केशव कुमार मिश्रा

परिचय: युवा कवि केशव के रुप में केशव कुमार मिश्रा बिहार के सिंगिया गोठ(जिला मधुबनी)में रहते हैं। आपका दरभंगा में अस्थाई निवास है। आप पेशे से अधिवक्ता हैं।

matruadmin

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