आज द्रवित भावों को उन्मुक्त हो,
अविरल कागज़ पर बह जाने दो।
छंदबद्धता की तोड़ सीमाओं को,
कविता में ढल रच जाने दो।
सशक्त जीवन के आधार लगे हिलने,
रोको न इसे, ढह जाने दो।
परिवर्तन का चक्र धड़ाधड़ भागे,
स्वीकारो परिवर्तन व्यर्थ न जाने दो।
नवजीवन अंकुर भविष्य में अकुलाए,
आशाओं को हो सिंचित नव उम्मीद जगाने दो।
ध्वंसावशेष की बानगी बतलाए वह बातें,
धूल से कर अभिषेक, कूट शब्द खुल जाने दो।
मोह बंध से परे जीवन की यह थिरकन,
आत्मसात कर भाव, सत्य सुगम हो जाने दो।
#लिली मित्रा
परिचय : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर करने वाली श्रीमती लिली मित्रा हिन्दी भाषा के प्रति स्वाभाविक आकर्षण रखती हैं। इसी वजह से इन्हें ब्लॉगिंग करने की प्रेरणा मिली है। इनके अनुसार भावनाओं की अभिव्यक्ति साहित्य एवं नृत्य के माध्यम से करने का यह आरंभिक सिलसिला है। इनकी रुचि नृत्य,लेखन बेकिंग और साहित्य पाठन विधा में भी है। कुछ माह पहले ही लेखन शुरू करने वाली श्रीमती मित्रा गृहिणि होकर बस शौक से लिखती हैं ,न कि पेशेवर लेखक हैं।