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मिल गई आजादी हमें-
अपना राज करने की,
अपनी जेब भरने की
और मनमानी करने की॥
मिल गई आजादी हमें-
जनता को मूर्ख बनाने की,
जनता को फुसलाने की
नई नीति बनाने की,
झूठ-मूठ में बतियाने की॥
मिल गई आजादी हमें-
सम्पत्तियां हड़पने की,
ख़ामोखा खड़कने की
किसी को भी झिड़कने की,
बात-बात पर अकड़ने की॥
मिल गई आजादी हमें-
बेटी पर अंकुश रखने की,
रस्ते में बेटी तकने की
गन्दी गालियां बकने की,
गुंडागर्दी करने की॥
मिल गई आजादी हमें –
राम-राम जपने की,
पराया माल लपकने की
एक आँख झपकने की,
बगुला बन तपने की॥
मिल गई आजादी हमें-
बलात्कार करने की,
सड़कों पर दंगा करने की
कपड़ों के तले झांकने की,
और तंज कसने की ॥
मिल गई आजादी हमें-
बिना पढ़ाए पास करने की,
बिना किए आस रखने की
फर्जी डिग्री बनवाने की,
बस मुनाफा कमाने की ॥
मिल गई आजादी हमें-
अपनों को रुलाने की,
अपनों को भुलाने की
वरिष्ठों को सताने की,
चक्र से घुमाने की।
शायद यही आजादी है…॥
#सुशीला जोशी
परिचय: नगरीय पब्लिक स्कूल में प्रशासनिक नौकरी करने वाली सुशीला जोशी का जन्म १९४१ में हुआ है। हिन्दी-अंग्रेजी में एमए के साथ ही आपने बीएड भी किया है। आप संगीत प्रभाकर (गायन, तबला, सहित सितार व कथक( प्रयाग संगीत समिति-इलाहाबाद) में भी निपुण हैं। लेखन में आप सभी विधाओं में बचपन से आज तक सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों का प्रकाशन सहित अप्रकाशित साहित्य में १५ पांडुलिपियां तैयार हैं। अन्य पुरस्कारों के साथ आपको उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य संस्थान द्वारा ‘अज्ञेय’ पुरस्कार दिया गया है। आकाशवाणी (दिल्ली)से ध्वन्यात्मक नाटकों में ध्वनि प्रसारण और १९६९ तथा २०१० में नाटक में अभिनय,सितार व कथक की मंच प्रस्तुति दी है। अंग्रेजी स्कूलों में शिक्षण और प्राचार्या भी रही हैं। आप मुज़फ्फरनगर में निवासी हैं|
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Mon Aug 14 , 2017
तुझसे कैसी लगी यह लगन नहीं है चैन। मैं नाचूं नित्य होकर के मगन श्याम रंग में। पनघट पे गागर भरकर छवि निहारुं। बैठी आँगन पहरों इन्तजार मैं नित्य करुं। सदा सुनाना सजा साज को तुम गीत नेह के। कब तक तेरी बाट मैं तकूँ आता है रोना। जुल्मी ,सांवरे […]
आत्मिक आभार मान्यवर ।