खुदगर्ज

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 lalit sinh

ये कैफ़ तेरा कैसा मुझपर भारी है,
या फिर तेरे ही इश़्क की खुमारी है l

एक भी मुक्कमल हुआ अपना सपना,
पूछो नींद से फिर क्यूं उससे की यारी है l

अंदाज ए गुफ्तगूं ऐसे कि,मेरे हाल पर,
जल्द ही इसी तरन्नुम में तुम्हारी बारी है l

बुझा रहे हो आग,दिल की भी बुझा दो,
इस दिल में बस तेरी ही लपटें अब सारी है l

याद तुम्हारी दून बन गई,कश्मीर बन गई,
अब मुझ पर तो तेरी ही हो रही बर्फबारी है l

ज़माना क्यूं न अब `ललित` खुदगर्ज समझे,
सबसे की दुश्मनी और तेरे से जो की यारी है l

                                                                      #ललित सिंह

परिचय :ललित सिंह रायबरेली (उत्तरप्रदेश) में रहते हैं l आप वर्तमान में बीएससी में पढ़ने के साथ ही लेखन भी कर रहे हैंl  आपको श्रृंगार विधा में लिखना अधिक पसंद है l स्थानीय पत्रिकाओं में आपकी कुछ रचना छपी है l 

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