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प्रेमचन्द अग्रवाल यूको बैंक से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवा निवृत्त हैं,जहाँ ये राजभाषा अधिकारी के रूप में हिन्दी कार्यान्वयन से जुड़े रहे। अम्बाला शहर व अम्बाला छावनी क्षेत्र के महाविद्यालयों और उच्च विद्यालयों में भी हिन्दी सम्बन्धी कार्य करते रहे हैं। इन्होंने हर विषय के प्राध्यापक को हिन्दी के पक्ष में खड़ा करने में सफलता पाई है। आप जिस भी सामाजिक धार्मिक संस्था के साथ जुड़ते हैं,वहां सुनिश्चित करते हैं कि सारी कार्यवाही हिन्दी में ही हो। आपने भाषाई सौहार्द और समन्वय के लिए कर्नाटका रक्षण वैदिके के प्रधान टी. ए. नारायण गौड़ा को एक पत्र लिखा है,जिसमें हिन्दी की बात उठाई हैl आपने पत्र में कहा है कि,हमारे लिए यह प्रसन्नता का विषय है कि आप कन्नड़ भाषा को लेकर चिन्तित हैं और उसको बचाने के लिए प्रयत्नशील हैं। हम स्वयं भी भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार के कार्य में लगे हैं। आजकल हमारा विशेष ध्यान सभी उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय से अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म करने और कम-से-कम एक भारतीय भाषा का विकल्प उपलब्ध करवाने के बारे में है। अभी तक देश के २४ उच्च न्यायालयों में से केवल ४ उच्च न्यायालयों (बिहार,राजस्थान,मध्यप्रदेश और उतरप्रदेश) में ही अंग्रेजी के इलावा हिन्दी में कार्यवाही करने का विकल्प उपलब्ध है। हमारी मांग है कि,अन्य उच्च न्यायालयों में भी भारतीय भाषाओं-जैसे गुजरात उच्च न्यायालय में गुजराती, कर्नाटक उच्च न्यायालय में कन्नड़ इत्यादि में विकल्प उपलब्ध हो,लेकिन हमें ऐसा लग रहा है आपका विरोध हिन्दी से है,न कि अंग्रेजी। पिछले ७० सालों से कर्नाटक उच्च न्यायालय में अंग्रेजी के अलावा आप कन्नड़ भाषा में कार्य नहीं कर सकते,लेकिन आपको अंग्रेजी का थोपना नजर नहीं आता। कर्नाटक उच्च न्यायालय में कन्नड़ में कार्यवाही के लिए आपने क्या प्रयत्न किए?
साहब यह केवल राजनीति है,भाषा प्रेम नहीं। आपको अपनी भाषा दुश्मन नजर आती है और विदेशी भाषा अपनी। कहीं पर यदि अंग्रेजी और कन्नड़ के साथ हिन्दी भी (ध्यान दीजिए केवल हिन्दी नहीं) लिख दी जाती है,तो कन्नड़ खतरे में,लेकिन यदि केवल अंग्रेजी का प्रयोग हो रहा हो तो कन्नड़ दिन दुगनी-रात चौगुनी तरक्की करती है। जितना खतरा भारतीय भाषाओं को अंग्रेजी से है,किसी भारतीय भाषा से नहीं। सभी भारतीय भाषाएं अपनी हैं और सभी में देश की संस्कृति और इतिहास भरा पड़ा है। यदि कोई भी भाषा खतरे में पड़ती है तो भारतीय संस्कृति का उतना हिस्सा खतरे में आ जाता है। हमारा उद्देश्य है कि,भारतीय न्यायालयों में भारतीय भाषाओं में कार्यवाही करने की सुविधा उपलब्ध हो। शिक्षा का माध्यम दसवीं कक्षा तक अनिवार्यतः (सरकारी और गैरसरकारी स्कूलों में) मातृभाषा में हो। सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म हो। हमारा किसी भारतीय भाषा से द्वेष या प्रतियोगिता नहीं है,कारण सभी भाषाएँ हमारी हैं। कोई माँ,कोई मौसी,हमें तो सभी बहनें प्यारी हैं।(साभार-वैश्विक हिन्दी सम्मेलन)
#प्रेमचन्द अग्रवाल
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