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दर्द तेरी वेदना का चीखता-सा एक स्वर हूँ।
बंद द्वारे पर खटकती अनमनी-सी साँकलें हूँ॥
उत्तरों से हूँ उपेक्षित प्रश्नबन्दी की हदें हूँ।
ढूंढ पाना बहुत मुश्किल मैं जुगनूओं का शहर हूँ॥
हूँ हवा का एक झौंका मरुथली प्यासी नदी हूँ।
खेत-खलिहानों को पढ़ता गढ़ रहा आधी सदी हूँ॥
मंदिरों से लौट आया जा रहा अपनों के घर हूँ।
बरगदी छाया में पनपे कब कहाँ लघु पेड़ पौधे।
ले चला आशा का रिश्ता पर निराशा पंथ रौंदे।
सागर नदी से क्या शिकायत सूखता बम्बा नहर हूँ॥
फूस की थी झोपड़ी,था सोट से सम्बंध अपना।
अब ककहरा गिन रहा हूँ खोट से लड़ना झगड़ना।
यों अमावस की निशा से जूझता पहला पहर हूँ।
गांव की पगडंडियां था मेढ़ पर रमता-सा जोगी।
कर्म भूमि खेत मेरा मौसमी फसलें थी चोखी।
नव्यता की जिद से लड़ता मूल-सा पावन समर हूँ॥
#गयाप्रसाद मौर्य ‘रजत’
परिचय : गयाप्रसाद मौर्य ‘रजत’ का निवास आगरा में शास्त्रीपुरम रोड सिकंदरा पर है। १९७२ में जन्म लेने के बाद प्रारम्भिक शिक्षा के पश्चात एमए(अंग्रेजी) तथा बीएड किया है।आप साहित्यिक यात्रा में १९९० से हैं। शीघ्र ही -स्पंदन अंतर्मन मन के तथा
चलो सच कह ही देता हूँ,आदि का प्रकाशन होने वाला है। मंचीय यात्रा में सैकड़ों राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय कवि सम्मेलनों में सहभागिता कर ली है। साथ ही आकाशवाणी(आगरा) और राजधानी चैनल देहलीब्रज माधुरी में काव्य गोष्ठी में सहभागिता भी की है।आपकी
सम्प्रति मथुरा स्थित महाविद्यालय में अंग्रेजी में प्रवक्ता की है।
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Hardik abhar sir