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आँगन-आँगन उग रहे,भौतिकता के झाड़।
संस्कारों की तुलसियाँ,फेंकी गई उख़ाड़॥
मन में जब पलने लगें,ईर्ष्या द्वेष विकार।
तब निश्चित ही जानिए,नैतिकता की हार॥
जिनका जीवन मंत्र है,कर्म और पुरुषार्थ।
वे जन ही समझे सदा,धर्मों का भावार्थ॥
जिनके मन पैदा हुआ,वैचारिक भटकाव।
डूबी है उनकी सदा,भवसागर में नाव॥
कर्म भूल जब-जब हुई,मानवता पथभ्रष्ट।
आने वाली पीढ़ियाँ,सदा उठाती कष्ट॥
भौतिकता में लिप्त है,नैतिकता को भूल।
सम्बंधों के बाग में,उगे स्वार्थ के शूल॥
धर्म भूल जो भी हुआ,दुष्कर्मों में लिप्त।
उसके जीवन का सफ़र,हुआ बहुत संक्षिप्त॥
धर्म जाति के नाम पर,फैलाते जो द्वेष।
उनके जीवन में सदा,रहते दुख ही शेष॥
बंसल छोड़ो व्यर्थ की,धर्मों की तकरार।
मानव हो तो कीजिए,मानवता से प्यार॥
#सतीश बंसल
परिचय : सतीश बंसल देहरादून (उत्तराखंड) से हैं। आपकी जन्म तिथि २ सितम्बर १९६८ है।प्रकाशित पुस्तकों में ‘गुनगुनाने लगीं खामोशियाँ (कविता संग्रह)’,’कवि नहीं हूँ मैं(क.सं.)’,’चलो गुनगुनाएं (गीत संग्रह)’ तथा ‘संस्कार के दीप( दोहा संग्रह)’आदि हैं। विभिन्न विधाओं में ७ पुस्तकें प्रकाशन प्रक्रिया में हैं। आपको साहित्य सागर सम्मान २०१६ सहारनपुर तथा रचनाकार सम्मान २०१५ आदि मिले हैं। देहरादून के पंडितवाडी में रहने वाले श्री बंसल की शिक्षा स्नातक है। निजी संस्थान में आप प्रबंधक के रुप में कार्यरत हैं।
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