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अमनो अमन बेचे कुछ गद्दार बन गए
तलवे चाटते रहें और हिस्सेदार बन गए
ओढ़ रखा है समाजसेवक का लिबास
खलनायक भी नायक के किरदार बन गए
जुबाँ में नहीं उनके गालियों के सिवा कुछ
पास उनके जरूरत से ज्यादा हथियार बन गए
हमने देखा है उजला चेहरा और दिल काला
सरे बाज़ार देखो वो गुनहगार बन गए
हमने लिया है सच लिखने का जिम्मा”सागर”
ऐसे ही थोड़े हम कलमकार बन गए
-किशोर छिपेश्वर”सागर”
बालाघाट
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