तू सुकूँ की दाद दे

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satindar
मेरे अरमानों को रब ने बरक़त बख्शी है,
ए रब बस अब तू सुकूँ की दाद दे।
मेरे जिस्म ने हर गम का लुफ़्त उठाया है,
अब बस इसे दुरुस्तगी की दाद दे।
मैंने घंटों खुद के साथ गुज़ारे हैं,
अब बस तू मुझे महफ़िल की दाद दे।
मैं चला हूँ इतना पैदल,के नाप डाला पूरा शहर,
के अब बस तू इस शहर को थोड़ी जमीं की दाद दे।
न जाने कितने पन्नों को रट मारा,
के अब बस तू इम्तिहाँ की दाद दे।
मेरे साथ सफ़र वाले,जाने कितने आगे निकल गए,
मुझे न सही उनको मंज़िल की दाद दे।
के हर इम्तिहाँ के पहले छुए हैं माँ के पैर,
मुझे न सही इम्तिहानों को दुरुस्तगी की दाद दे।
                                                                                     #सतिंदर सिंह
परिचय : सतिंदर सिंह का जन्म २९ जुलाई १९८५ का है। एम.कॉम. की शिक्षा प्राप्त की है,और शिक्षक हैं। आप उत्तर प्रदेश के ललितपुर में रहते हैं। लिखना आपका शौक है।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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