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मेरा भारत देश महान है,
देश की ताकत किसान है..
पर भारत के किसानों की
दशा पर मैं अक्सर सोचा करती हूँ,
उनकी पीड़ा को महसूस कर
मन ही मन रोया करती हूँ,
सारे देश के पेट को
जो है भरता
वो ही क्यों
आत्महत्या करके है मरता।
सबकी अपनी मांगें हैं,
सबकी अपनी जरूरत
फिर क्यों नहीं,
किसान की जिन्दगी
हो सकती है खूबसूरत,
गर्मी,ठण्ड और बरसात
सबमें वो मेहनत करता है,
फिर भी अपनी दैनिक
आवश्यकताओं को पूरा
करने को तरसता है।
लाचारी और मज़बूरी
उसके जीवन के अंग हैं,
आँसू और दर्द ही
हमेशा उसके संग हैं,
अपनी फसल का उचित मूल्य
मांगने जब वो सड़क पर आता है,
तब,बेरहम प्रशासन की
गोली से भुंज जाता है।
जनता के चुने नुमाइंदे
फिर दिखावा करते हैं,
दिल में कोई टीस नहीं
बस,घड़ियाली आँसू
बहाया करते हैं..
ऐ सत्ता के महाराजा
तुम इतना जान लेना,
किसानों के अगर दर्द को
न समझे तो
जंगल की ओर चले जाना
लोकतंत्र में अगर तुम
तानाशाही दिखाओगे,
तो एक दिन वो आएगा
जब तुम मिटटी में मिल जाओगे…
सुना तुमने …
तुम,मिटटी में मिल जाओगे …
#अनुभा मुंजारे’अनुपमा’
परिचय : अनुभा मुंजारे बिना किसी लेखन प्रशिक्षण के लम्बे समय से साहित्यिक क्षेत्र में सक्रिय हैं। आपका साहित्यिक उपनाम ‘अनुपमा’,जन्म तारीख २० नवम्बर १९६६ और जन्म स्थान सीहोर(मध्यप्रदेश)है।
शिक्षा में एमए(अर्थशास्त्र)तथा बीएड करने के बाद अभिरुचि साहित्य सृजन, संगीत,समाजसेवा और धार्मिक में बढ़ी ,तो ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों की सैर करना भी काफी पसंद है। महादेव को इष्टदेव मानकर ही आप राजनीति भी करती हैं। आपका निवास मध्यप्रदेश के बालाघाट में डॉ.राममनोहर लोहिया चौक है। समझदारी की उम्र से साहित्य सृजन का शौक रखने वाली अनुभा जी को संगीत से भी गहरा लगाव है। बालाघाट नगर पालिका परिषद् की पहली निर्वाचित महिला अध्यक्ष रह(दस वर्ष तक) चुकी हैं तो इनके पति बालाघाट जिले के प्रतिष्ठित राजनेता के रुप में तीन बार विधायक और एक बार सांसद रहे हैं। शाला तथा महाविद्यालय में अनेक साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेकर विजेता बनी हैं। नगर पालिका अध्यक्ष रहते हुए नगर विकास के अच्छे कार्य कराने पर राज्य शासन से पुरस्कार के रूप में विदेश यात्रा के लिए चयनित हुई थीं। अभी तक २०० से ज्यादा रचनाओं का सृजन किया है,जिनमें से ५० रचनाओं का प्रकाशन विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में हो चुका है। लेखन की किसी भी विधा का ज्ञान नहीं होने पर आप मन के भावों को शब्दों का स्वरुप देने का प्रयास करती हैं।
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Tue Jul 4 , 2017
उन्मुक्त नील गगन में, विचर रहे कुछ परिन्दे। काश,हम भी उड़ पाते, छोटे-छोटे पंख लग जाते करते हम प्रेम चमन से। उन्मुक्त नील गगन में, विचर रहे कुछ परिन्दे। […]