
( लावणी छंद )
प्यारी पृथ्वी जीवन दात्री,
सब पिण्डों में, अनुपम है।
जल,वायु का मिलन यहाँ पर,
अनुकूलन भी उत्तम है।
सब जीवो को जन्माती है,
माँ के जैसे पालन भी।
मौसम ऋतुएँ वर्षा,जल,का
करती यह संचालन भी।
सागर हित भी जगह बनाती,
द्वीपों में यह बँटती है।
पर्वत नदियाँ ताल तलैया,
सब के संगत लगती है।
मानव ने निज स्वार्थ सँजोये,
देश प्रदेशों बाँट दिया।
पटरी सड़के पुल बाँधो से,
माँ का दामन पाट दिया।
इससे आगे सुख सुविधा मे,
भवन, इमारत पथ भारी।
कचरा गन्द प्रदूषण बाधा,
घिरती यह पृथ्वी प्यारी।
पेड़ वनस्पति जंगल जंगल,
जीव जन्तु जड़ दोहन कर।
प्राकृत की सब छटा बिगाड़े,
मानव ने अन्धे हो कर।
विपुल भार,सहती माँ धरती,
निजतन धारण करती है।
अन,धन,जल,थल,जड़चेतन का,
सब का पालन करती है।
प्यारी पृथ्वी का संरक्षण,
अपनी जिम्मेदारी हो।
विश्व सुमाता पृथ्वी रक्षण,
महती सोच हमारी हो।
माँ वसुधा सी अपनी माता,
यह शृंगार नहीं जाए।
आज नये संकल्प करें मनु,
माँ की क्षमता बढ़ जाए।
नाजायज पृथ्वी उत्पीड़न,
विपदा को आमंत्रण है।
धरती माँ की इज्जत करना,
वरना प्रलय निमंत्रण है।
पृथ्वी संग संतुलन छेड़ो,
कीमत चुकनी है भारी।
इतिहासो के पन्ने पढ़लो,
आपद ने संस्कृति मारी।
प्यारी पृथ्वी प्यारी ही हो,
ऐसी सोच हमारी हो।
सब जीवों से सम्मत रहना,
वसुधा माँ सम प्यारी हो।
माँ काया से,स्वस्थ रहे तो,
मनु में क्या बीमारी हो।
मन से सोच बनाले मानव,
कैसी, क्यों लाचारी हो।
माँ पृथ्वी प्राणों की दाता,
प्राणो से भी प्यारी है।
पृथ्वी प्यारी माँ भी प्यारी,
माँ से पृथ्वी प्यारी है।
मानव तुमको आजीवन ही,
धरती ने माँ सम पाला।
बन,दानव तुमने वसुधा में,
क्यूँ,तीव्र हलाहल डाला।
मानव ने खो दी मानवता,
छुद्र स्वार्थ के फेरों में।
माँ का अस्तित्व बना रहता,
आशंका के घेरों में।
वसुधा का श्रृंगार छिना अब
पेड़ खतम वन कर डाले।
जल, खनिजों का दोहन कर के,
माँ के तन मन कर छाले।
मातु मुकुट से मोती छीने,
पर्वत नंगे जीर्ण किए।
माँ को घायल करता पागल,
उन घावों को कौन सिंए।
मातु नसों में अमरित बहता,
सरिता दूषित क्यूँ कर दी।
मलयागिरि सी हवा धरा पर,
उसे प्रदूषित क्यूँ कर दी ।
मातृशक्ति गौरव अपमाने,
मानव भोले अपराधी।
जिस शक्ति को आर्यावर्त में,
देव शक्ति ने आराधी।
मिला मनुज तन दैव दुर्लभम्,
“वन्य भेड़िये” क्यूँ बनते।
अपनी माँ अरु बहिन बेटियाँ,
उनको भी तुम क्यों छलते।
माँ की सुषमा नष्ट करे नित,
कंकरीट तो मत सींचे।
मातृ शक्ति की पैदाइश तुम,
शुभ्र केश तो मत खींचे।
ताल तलैया सागर,नाड़ी,
नदियों को मत अपमानो।
क्षितिजल,पावकगगन,समीरा,
इनसे मिल जीवन मानो।
चेत अभी तो समय बचा है,
करूँ जगत का आवाहन।
बचा सके तो बचा मानवी,
कर पृथ्वी का आराधन।
शस्य श्यामला इस धरती को,
आओ मिलकर नमन करें।
पेड़ लगाकर उनको सींचे,
वसुधा आँगन चमन करें।
स्वच्छ जलाशय रहे हमारे,
अति दोहन से बचना है।
पर्यावरणन शुद्ध रखें हम,
मुक्त प्रदूषण रखना है।
ओजोन परत में छिद्र बढ़ा,
उसका भी उपचार करें।
कार्बन गैस की बढ़ी मात्रा,
ईंधन कम संचार करे।
प्राणवायु भरपूर मिले यदि,
कदम कदम पर पौधे हो।
पर्यावरण प्रदूषण रोकें,
वे वैज्ञानिक खोजें हो।
तरुवर पालें पूत सरीखा,
सिर के बदले पेड़ बचे।
पेड़ हमे जीवन देते है,
मानव-प्राकृत नेह बचे।
गउ बचे संग पशुधन सारा,
चिड़िया,मोर पपीहे भी।
वन्य वनज,ये जलज जीव ये,
सर्प सरीसृप गोहें भी।
धरा संतुलन बना रहे ये,
कंकरीट वन कम कर दो।
धरती का शृंगार करो सब,
तरु वन वनज अभय वर दो।
पर्यावरण सुरक्षा से हम,
नव जीवन पा सकते हैं।
जीव जगत सबका हित साधें,
नेह गीत गा सकते हैं।
नाम–बाबू लाल शर्मा
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः