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झुलस के रह गई है हर एक ख्वाहिश मेरी।
गर्म मौसम की इन गर्म हवाओं में।
अजीब वो शख्स भरोसा न कर सका मुझ पर।
कमी ही ढूँढता रहा मेरी वफाओं में।
सबूत माँगने बालों को कुछ नहीं मिलता।
झाँककर देखते नहीं क्यों निगाहों में।
किसको रहना है दुनिया में सदा-सदा के लिए।
निशान तक नहीं बचते हैं इन फिजाओं में।
आज मेरा कल तेरा,यही तो जीवन है।
वक्त रहता नहीं है कैद ‘अमित’ बाँहों में॥
#अमित शुक्ला
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