सुनेगी क्या कभी दरकार अपनी,
हमीं से जो बनी सरकार अपनी।
चमन में लौट आई फिर बहारें,
बचाकर जान भागे खार अपनी।
दिखाई है हमें औकात उसने,
करेंगे हद नहीं अब पार अपनी।
खिलाएं क्या,भरण कैसे करें अब,
जो मारे कीमतें भी मार अपनी।
न कोई आरज़ू ही रब से है अब,
बनी नीरस ज़िन्दगी भार अपनी।
समय जो साथ बीते प्यार से ही,
न हो उनमें कभी तकरार अपनी।
मिलें न गीत कोई अब लिखूँ क्या,
कलम कबसे पड़ी बेज़ार अपनी।
#शशिरंजना शर्मा ‘गीत’
परिचय : शशिरंजना शर्मा अपनी लेखनी ‘गीत’ से अभिव्यक्त करती हैंl। १९७० में जन्म होने के बाद आपने एम.ए.(हिन्दी और अंग्रेजी) के साथ ही बी.एड. तथा चाइल्ड साइक्लोजी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। आपका निवास हरियाणा के फरीदाबाद में है और अभिरुचि लेखन के साथ ही अध्यापन एवं संगीत सुनने में है।