दर्द के गीत गुनगुनाने दो

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naresh

 

मुझको थोड़ा-सा मुस्कराने दो,

दर्द के गीत———-

मैं भी जिन्दा हूँ अभी महफिल में

दिल को थोड़ा-सा बहल जाने दो,

दर्द के गीत———-।

 

इक तस्वीर है ठहरी-ठहरी,

मुझको पूरा उसे बनाने दो

दर्द के गीत———–।

 

मैं बेवफा को खुदा कहता हूँ,

उसकी यादों में डूब जाने दो

दर्द के गीत———-।

 

आज हम बात उसकी मानेंगे,

खत उसके आज ही जलाने दो

दर्द के गीत———–।

 

चलो ‘सागर’ जां रूखसत कर दो,

आज रोको ना बस मर जाने दो

दर्द के गीत———–।।

 #डॉ.नरेशकुमार ‘सागर’

परिचय : लेखन के क्षेत्र में बैखोफ शायर के तौर पर डॉ.नरेशकुमार ‘सागर’ अपरिचित नाम नहीं है। स्नातक के साथ ही आपने वी.ए.एम.एस. की पढ़ाई की है और ऑप्टीशियन का व्यवसाय करते हैं। आपका जन्म १९७५ में भटौना (बुलन्द शहर,उ.प्र.)में हुआ है। पत्रकारिता और साहित्य से आपका शुरू से ही नाता है। आगमन साहित्य संस्था सहित फारवर्ड प्रेस(नई दिल्ली),अतिथि संपादक के रूप में कई पत्रिका से जुड़े रहे हैं तो ऑल प्रेस एण्ड राईटर्स एसोसिएशन से भी सम्बन्ध है। क्षेत्रीय व राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ व मंच संचालन ही नहीं करते हैं, बल्कि,अभिनयकार भी हैं। उपलब्धि के रूप में डॉ.आम्बेडकर फैलोशिप से सम्मानित (दिल्ली),मानवमित्र सम्मान से पूर्व राज्यपाल माताप्रसाद द्वारा के साथ ही अमिताभ खण्डेलवाल सहित अन्य पुरस्कारों भी से सम्मानित हैं। आपकी रचनाओं का प्रकाशन-यूएसए के पत्र सहित विविध पत्रिकाओं में भी हुआ है। काव्य संकलन-इस मौसम से उस मौसम तक,गुफ्तगू,शब्द प्रवाह,काव्यशाला,युवा रचनाकार संगम और इक्कीसवीं सदी के श्रेष्ठ रचनाकार आदि हैं।अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में भी लेख,पत्र,कहानियां,गीत-गजल तथा निबन्ध आदि छपते हैं।आपकी अभिरूचि साहित्य लेखन,स्वतंत्र पत्रकारिता,अभिनय,समाजसेवा आदि में है। हापुड़ जिले के ग्राम मुरादपुर(पटना) में आप रहते हैं।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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