“लब्ज”

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aashutosh kumar
मै तो लब्ज हूँ
असर छोड जाऊँगा
चंद लम्हों में
वक्त के सिलवटों पर
नाम लिख जाऊँगा।

उलझना है उलझ जाओ सही
रास्तो में मैं ही नजर आऊँगा
मैं तो लब्ज हूँ।

बात खुद्दारी की है
जो मुझमें ही जिन्दा है
इंसा नहीं हम
जो देखते ही बदल जाऊँगा
मैं तो लब्ज हूँ।

चलते-चलते निभाते-निभाते
उसूलो को लब्जो से आईना दिखाते
मैं तो लब्ज हूँ।

दरिया की तरह लोग
सागर समझकर मुझमें समाते
मैं तो लब्ज हूँ।

मै तो अथाह सागर हूँ
मुझमें गुरूर का नमोनिशा कहाँ
मौका परस्ती की फिदरत से वाकिफ हूँ
फिर भी हर सकून में शामिल हूँ
मैं तो लब्ज हूँ
असर छोड जाऊँगा
चंद लम्हों में
वक्त के सिलवटों पर
नाम लिख जाऊँगा।

“आशुतोष”

नाम।                   –  आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम –  आशुतोष
जन्मतिथि             –  30/101973
वर्तमान पता          – 113/77बी  
                              शास्त्रीनगर 
                              पटना  23 बिहार                  
कार्यक्षेत्र               –  जाॅब
शिक्षा                   –  ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन                 – नगण्य
सम्मान।                – नगण्य
अन्य उलब्धि          – कभ्प्यूटर आपरेटर
                                टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य   – सामाजिक जागृति

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