प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत

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छायावाद की अब तक छाया
सबने अच्छे से दोहराया।
१.
वाद भले हों अलग–अलग
छाया का न अन्त,
प्रकृति के सुकुमार कवि
सुमित्रानंदन पंत।
आँखों के सम्मुख है काया। छायावाद की…..
२.
दिनकर, महादेवी, जयशंकर
एक हैं सूर्य निराला,
प्रेमचंद ने कम ही दिन में
कितना कुछ लिख डाला।
पढ़ा सभी ने सबको भाया।
छायावाद की….
३.
वीणा, पल्लव, चिदंबरा
ग्राम्या, युगवाणी,
तारापथ में बूढ़ा चाँद
पढें सभी प्राणी।
एक एक तारा है मुस्काया।
छायावाद की….
४.
कला, संस्कृति अनुपम है
भरा पड़ा साहित्य,
नित्य ही चर्चा करता है
चंदा से आदित्य।
लय सुरताल में सबने गाया।
छायावाद की….

प्रदीप नवीन

इंदौर, मध्य प्रदेश

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