हिन्दी पत्रकारिता पर हिन्दी की कविताएँ

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हिन्दी पत्रकारिता दिवस विशेष

संकलन- डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

हिन्दी भाषा की पत्रकारिता का इतिहास 197 वर्ष पहले अहिन्दीभाषी क्षेत्र कोलकाता से आरम्भ होता है। मंगलवार, 30 मई 1826 के दिन पण्डित जुगलकिशोर शुक्ल ने कलकत्ता से एक हिन्दी अख़बार का आरंभ किया, जिसका नाम ‘उदण्ड मार्तण्ड’ रखा। प्रवेशांक की 500 प्रतियाँ छपाई गईं। बृज और खड़ी बोली के सम्मिश्रण से निकलने वाले उदण्ड मार्तण्ड में हिन्दी की पत्रकारिता का नव प्रवेश किया।
प्रथम हिन्दी समाचार पत्र के प्रकाशक पं. जुगल किशोर मूलतः कानपुर के निवासी थे और वे सिविल एवं राजस्व उच्च न्यायालय कलकत्ता में पहले कार्यवाहक रीडर तथा बाद में वकील बन गए थे। उसी दिन की स्मृतियों को चिर स्थायी बनाने के लिए ‘हिन्दी पत्रकारिता दिवस’ मनाया जाता है।
हिन्दी पत्रकारिता विषय पर हिन्दी के साहित्यकारों ने कविताएँ लिखी हैं, जैसे-

क्या पत्रकारिता होती है?
क्या सत्य की सरिता होती है?

अब गौण हो गई परिभाषा,
साहस निष्ठा की अभिलाषा।

स्तंभ लोकशाही का था,
जनहित का जो हमराही था।

जो लौकिक हित की बात करे,
छल छंदों पर आघात करे।

उसने अब चोला बदल लिया,
इस हाथ लिया उस हाथ दिया।

युग भारत मित्र का बीत गया,
घट सार सुधानिधि रीत गया।

हम पत्रकारिता भूल गये,
सत्ता के झूले झूल गये।

इसके आगे बढ़ना होगा,
लोलुपता से लड़ना होगा।

निष्ठा के दीप जलाकर के,
जनगण अधिनायक गा कर के।

नव भारत इक बुनना होगा,
सच्चाई को चुनना होगा।

हुंकार लगानी होगी अब,
इकरार उठानी होगी अब।

फिर भारतेंदु बन जायें हम,
कुछ गौरीदत्त बनायें हम।

हिन्दी की पत्रकारिता को,
अमृत की नव निहारिका को।

भारत का मुकुट बनाना है,
मौलिक इक अलख जगाना है।

फिर लक्ष्य नये तय करना है,
हिन्दी माँ की जय करना है।

हिन्दी प्रत्याशा बन जाये,
अब राष्ट्र की भाषा बन जाये।

अमित जैन मौलिक जबलपुर, मध्य प्रदेश

मैं ‘ख़बर’ हूँ ‘अवि

मुझे न बाँधना इन काग़ज़ के पन्नो में,
ऊँची दीवारो में, दफ़्तर की मेज़ों में,
साहुकारों की कोठरी में,
ग़रीब की झोंपड़ी में,
रसुखदारों की जेबों में,
भ्रष्टों की चाटुकारीता में,
नेता के कुर्ते में…..
मैं दहकती क़लम से निकली ख़बर हूँ ‘अवि’,

मैं बारूद की स्याही के अरमान हूँ,
मैं हर परेशां इंसान की आवाज़ हूँ,
मैं हर उलझे सवाल का जवाब हूँ,
मैं न्याय के मंदिर की मूरत हूँ,

मैं आदत हूँ आज़ादी की ‘अवि’,
मैं निष्पक्ष और निर्भीक पावक हूँ,
मैं ‘ख़बर’ हूँ ‘अवि’…..

मैं ‘ख़बर’ हूँ ‘अवि’
मेरे साथ तुम न्याय करना….
न कभी बेचना न कोई छेड़छाड़ करना,
मुझे आज़ाद रहने देना,
मुझे निष्पक्ष और निर्भीक ही रहने देना…..
मैं ज़िम्मेदारी हूँ तुम सब की
क्योंकि…..
मैं ‘ख़बर’ हूँ ‘अवि’

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
हिन्दीग्राम
इंदौर

क़लम की ताक़त क्या जानो तुम इसकी तीखी धार है,
लोकतन्त्र में वैचारिकता लाने का हथियार है।
झूठ के काले कौए जब अपना अधिकार जमाते हैं,
सच्चाई के श्वेत कबूतर अपना रूप दिखाते हैं।
स्वाभिमान अचेत पड़ा और आज़ादी थक जाती है,
उत्पीड़ा की चीखें जब बहरे कानों तक जाती हैं।
जनता की आवाज़ दबे न उसकी पहरेदार है,
लोकतन्त्र में वैचारिकता लाने का हथियार है।
डगमग हो पग न्याय पथिक के तथ्य सभी जगते ही नहीं,
टूट रही हैं अटूट पंक्तियाँ सत्यमेव जयते की कहीं।
जनता की आशाएँ सारी शासन लगने लगती हों,
टूटी हुई कुर्सी भी जब सिंहासन दिखने लगती हो।
धन–बल के इस कोलाहल में न्याय का वो दरबार है,
लोकतन्त्र में वैचारिकता लाने का हथियार है।
निष्पक्ष सूर्य के उदयमान को युद्ध कोई भीषण होगा,
साथ न्याय का देने तब कोई तो विभीषण होगा।
उँगलियों में जकड़े रहने में कोई मजबूर नहीं,
स्वाभिमानी क़लम को कोई बंदिशें मंज़ूर नहीं।
राष्ट्र में हो धृतराष्ट्र कहीं तो उसका ये उपचार है,
लोकतन्त्र में वैचारिकता लाने का हथियार है।

नरेंद्रपाल जैन, ऋषभदेव राजस्थान

अख़बार

भोर-सांध्य ढेरों ख़बरें,
लेकर आता अख़बार,
देश-विदेश की ख़बरें,
हाल बता जाता अख़बार।
कहानी-चुटकुले छुट्टी के दिन,
रंग-बिरंगी तस्वीरों के संग,
बच्चों की दुनिया के साथ,
सबको ताज़ा कर जाता अख़बार।
ताज़ा-ताज़ा होने पर,
सबको ख़बरदार करता अख़बार,
बासी होने पर थैली-पुड़िया,
बन घर-घर जाता अख़बार।
पहले पढ़ने की छीना-झपटी में,
फटा-फटा जाता अख़बार,
फटकर भी कबाड़ी को,
आवाज़ लगाता अख़बार।

श्रीमती रश्मिता शर्मा
इन्दौर(मध्य प्रदेश)

पत्रकार

लोकतंत्र के सजग प्रहरी,
कर्त्तव्य पथ को सजा रहे हैं।
जान रख हाथों में अपनी,
जनचेतना को जगा रहे हैं।
अवनि, अंबर दूर न अब,
चाहे दुर्गम राहें हों,
प्रखर चिंतन कर प्रकाशित,
कामना कल्याणकारी, हम निभाये जा रहे हैं,
लोकतंत्र के सजग प्रहरी,
कर्त्तव्य पथ को सजा रहे हैं।

हम बहाते हैं सरिता,
मानव जिज्ञासु भेद की,
बातें नीति, प्रीति, द्रोह,
धर्म, कर्म के रीति की,
कार्य–कौशल सुमन के संदेश लेकर जा रहे हैं,
लोकतंत्र के सजग प्रहरी,
कर्त्तव्य पथ को सजा रहे हैं।

कटार धार पे पग बढ़ाकर,
साहसी विद्रोही बनते,
दिशाकाश ओर चप्पे दर्रे,
चाहे हो षड्यंत्र रहते,
हम उजागर सत्य को,
जग को दिखाने जा रहे हैं,
लोकतंत्र के सजग प्रहरी,
देशहित ही जा रहे हैं।

माधुरी सोनी मधुकुंज
अलीराजपुर (मप्र.)

क़लम की धार

हे पत्रकार! है तुझे नमन,
इस संसार के हस्तों से।
जो कार्य तुम्हारी पूजा है,
तुम रहते सदा उपकारी से।

इस जहां की सारी गतिविधियाँ,
तुम जन-जन तक पहुंचाते हो।
अपनी चौकन्नी नींद से,
तुम सजग प्रहरी से होते हो।

कब, कैसे, कहां कुछ घटित हुआ,
यह त्वरित ही सदा बतलाते हो।
तुम जन-जन के प्रश्नों की तलब,
अपनी क़लम से बुझाते हो।

तुम अपनी क़लम की धार से,
निर्भीकता संग सब लिखते हो।
संग अपनी त्याग-तपस्या से,
हर सच को उजागर करते हो।

है क़लम तुम्हारी रोटी भी,
तुम क़लम से साँसें पाते हो।
जो समाज परिवेश सदा दिखता,
वो दर्पण–सा दिखलाते हो।

सीता गुप्ता, दुर्ग
छत्तीसगढ़

पत्रकारिता

पत्रकारिता का है अद्भुत रूप,
जग में कुछ नहीं इसके अनुरूप।

यह सब भेदों को है करे उजागर,
सबके सामने खोल दे राज भ्रष्टाचार।

कहां संदिग्धता, कहां अश्लीलता,
बताती हमको यह अनूठी पत्रकारिता।

तरह–तरह के राज़ छुपे हैं राजनीति में,
ये राज़ उजागर होते हैं पत्रकारिता में।

पत्रकारिता खोलती सबकी पोल,
वह नहीं करती ढोल में पोल।

दिल्ली हो या हो बिहार,
उत्तर प्रदेश या म.प्र. की हो सरकार।
कितने करता रहे कोई गुप्त अत्याचार,
यह कर देती सबका पर्दाफाश।

किस–किस मद में,
आवंटित हुए फंड कितने।

ख़र्च हुए किस मद में कितने,
और खा गयी सरकार कितने!

पत्रकारिता दिखाये सबका ब्यौरा,
आधा–अधूरा नहीं बल्कि पूरा–पूरा।

अंधे कानून की धज्जियाँ उड़ाकर,
सत्यता को सबके सम्मुख लाकर।

पत्रकारिता अपना दायित्व निभाकर,
सच्ची राह सबको दर्शाकर।

अच्छी ख्याती प्राप्त करती है,
दबे हुए तथ्यों को जाग्रत करती है।

श्रीमती प्रेम मंगल इन्दौर
राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य
मातृभाषा उन्नयन संस्धान, भारत

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।