
न जाने कब से यह परिवर्तन है आया,
मैं तो हमेशा से हूं मेरी माँ की प्रतिछाया।
पहले तो माँ हर बात पर नसीहत देती थी,
अब तो मेरी परम सखा सहेली हो गई।
पहले कहती थी जल्दी उठो, अभ्यास किया करो,
अब कहती है कि
दोपहर में तुम भी थोड़ा आराम किया करो।
सब को समय दो, पर थोड़ा अपने लिए भी तो जियो।
जिस माँ ने हमेशा संस्कारों का पाठ हमें है पढ़ाया,
अब कहती है कि,
अपने बच्चों को दो खुला आसमां,
उड़ने दो उन्हें, पंख दो उन्हें,
मत बनाओ अपना प्रतिबिंब, अपना साया।
कभी-कभी तो लगता है कि माँ ने नया नवेला रूप है पाया,
वो हमारी अध्यापिका से बन गई हमारा हमसाया।
रोज़ नियमित व्यायाम किया करो,
अच्छी पुस्तक पर हो कविता पाठ करो।
देती यही नसीहत, यही हिदायत आज भी,
बेटी तुम हो अपने घर–आँगन का सबसे शुद्ध, सबसे पवित्र तुलसी क्यारा।
मेरी माँ हमारे बच्चों की अब तो दादी–नानी भी हो गई,
अचानक से लगता है कि मेरी सबसे सच्ची, सबसे प्यारी सहेली हो गई।
#ऋचा दिनेश तिवारी
१९ आनंद बाग देवास