पुस्तक समीक्षा- लहराया हिन्दी का परचम

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हिन्दी के स्वर्णिम भविष्य को समर्पित, हिन्दी प्रेमियों की श्रद्धा और प्रेम का दर्पण है — पुस्तक –
“लहराया हिन्दी का परचम ”

अवनि सृजन समूह की संस्थापक बहन मीना गोदरे अवनि के सम्पादन में प्रकाशित इस साझा संकलन से प्रभावित हुए बिना मैं न रह सकी।

समीक्षा के लिए मेरी चयनित इस पुस्तक में 75 कुशल लेखकों की क़रीब 150 रचनाओं का संकलन है।
इस पुस्तक के आवरण की पीठ पर अंकित महान विद्वानों के विचारों में से मुझे माखन दादा का विचार सबसे अच्छा लगा – “हिन्दी हमारे देश और भाषा की विरासत है।”

सम्पादक के अनुसार –
“देश के स्वर्णिम भविष्य का आधार,
अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम हिन्दी उपहार।

निदेशक – प्रो. बीना शर्मा जी अनुसार,
कश्मीर से कन्याकुमारी-हिन्दी भाषा एक हमारी।

शुभकामनाएँ देते हुए वरिष्ठ साहित्यकार-डॉ सरोजिनी प्रीतम ने लिखा है —
हिन्दी साहित्य का अमृत कलश छलक रहा है,
नए संकल्प से नया नज़रिया युगन तलक रहा है।

डॉ. जय कुमार जलज लिखते हैं – हिन्दी भाषा के मामले में आज हम जिस मुक़ाम पर खड़े हैं, वहाँ से आगे बढ़ने के लिए हमें आत्म मुग्धता से बाहर निकलना होगा।

सभी रचनाओं में पारंगत कवियों ने अपनी मातृभाषा के प्रति आसक्ति के वशीभूत हो कमाल की स्तुति की है, विश्व स्तर पर उपेक्षा की शिकार की शिकायत भी दर्ज की है।
वैसे तो मेरा मन कर रहा है, अंतर्मन के भाव से भरी हर रचना से मैं कोई प्रधान पंक्ति लेकर यहाँ अंकित करूँ, पर संभव नहीं है 150 कविताएँ समेटना, इसलिए कुछेक सद्भावनाएँ लेकर यहाँ प्रस्तुत कर रही।
हिन्दीमयी संसार बना दे, ऐसा एक अभियान ज़रूरी है।

भारत माता की परम चहेती अतुलित है इनकी महिमा,
हिंसा से हल ना निकलेगा व्यक्तिवाद से ऊपर है माँ।

तुलसी, सूर, जायसी, रसखान, कबीर, मीरा,
रहीम नाम हमारी मातृभाषा हिन्दी जपती
एक मात्र नक्षत्रों जैसी जगत में जगमगाती
नीतियों की जननी ज्यों गगन सागर धरती।

भले विविध हों भाषा-भाषी सुख हिन्दी में पाते हैं
“रंग दे बसंती चोला” जैसे गीत हिन्दी में गाते हैं।

उन्नति का है द्वार हिन्दी, क्षमता का विपुल विस्तार हिन्दी
विश्व को नेतृत्व देती, अनेकता में एकता की जान है हिन्दी।

अपवाद भी है – कोसों दूर अभी भी हल है
ढूँढों किन आँखों में छल है?

देवों की वाणी से निकली अमृत की रसधार
रामचरितमानस बनकर जन–मन में छायी बहार।

ऐसे अनंत भाव हैं, जो हमारी हिन्दी के लिए हृदयस्पर्शी हैं।

आभार, सम्पादक बहन की क़लम से अवतरित ही ले रही – पुस्तक “लहराया हिन्दी का परचम” के सभी रचनाकार अभिनंदन के पात्र हैं। मातृभाषा हिन्दी के प्रति आप सब का समर्पण अविस्मरणीय रहेगा।
आभारी हूँ, जो आप सब ने बड़ी ही निष्ठा से रचकर रचनाएँ भेजीं और पुस्तक का मान बढ़ाया।
हमें विश्वास है कि साहित्य शृंखला में यह पुस्तक एक धरोहर के रूप में अपना स्थान बनाकर देश हित में सार्थक योगदान देगी।
इति शुभम।
#मणिमाला शर्मा, इन्दौर

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।