बोलियों में कबीर के पदों के गायकों को उच्चारण पर ध्यान देना आवश्यक- श्री पटेल

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‘लोक गायन में कबीर’ विमोचित

इन्दौर। कबीर जन विकास समूह द्वारा रविवार को श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति इंदौर में सुरेश पटेल की हाल ही में प्रकाशित पुस्तक ‘लोक गायन में कबीर’ पर गहन चर्चा हुई। संजय पटेल संस्कृति कर्मी, प्रकाशकान्त एवं डॉ पद्मा सिंह, पूर्व रीडर हिंदी अध्ययन शाला देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर ने पुस्तक में सम्मिलित बुंदेली, भोजपुरी, अवधी, निमाड़ी, मालवी, छत्तीसगढ़ी के लोक में प्रचलित एवं लुप्त होते पदों को बहुत सुंदर प्रयास बताया। संजय पटेल ने बुंदेली में लिखी कृतज्ञता एवं संकलित पदों को बहुत गायकों एवं समाज के लिए अर्थवान बताया। उन्होंने कहा इतनी बोलियों का संग्रह गायकों को अन्य बोलियों को गाने के लिए प्रेरित करेगा। उन्होंने कहा कि गायन की लोक परंपरा में शब्दों के उच्चारण पर ध्यान नहीं दिया जाता उस पर गायकों की कार्यशाला जरूरी है। उन्होंने कबीर का पद मन न रंगाये रंगाये जोगी कपड़ा …..स्वयं गाकर उदाहरण पेश किया। डॉ प्रकाश कांत ने कबीर गायन की पूरी परंपरा को कबीर के विचार की यात्रा कहा उन्होंने कहा कि 600 साल पहले जन्में कबीर मानवीय गरिमा के लिए धर्मसत्ता एवं राजसत्ता एवं मोर्चा लेते हैं और सहजता से अपनी वाणियों से आम जनो को समझाते है, सहज होना सबसे कठिन है। उनकी उस यात्रा को लोक ने समझा और अपने जीवन प्रमाण से उसे पुष्ठ किया। आज सारी दुनिया में अनेक प्रकार से कबीर की वाणी को व्यक्त किया जा रहा है पर यह देखना जरूरी है कि उनके विचारों को कार्यों में कहाँ बदला जा रहा है, यह जरूरी है अपने विविध कार्यक्रमो के जरिये कबीर जन विकास समूह पिछले 30 वर्षों से यह कर रहा है यह महत्वपूर्ण है।डॉ पद्मा सिंह ने विस्तार से पुस्तक के बारे में बात की और कहा कि सुरेश पटेल ने अपनी लंबी भूमिका में बुंदेली बोली में पुस्तक की रचना प्रक्रिया में सहयोगियों को कृतज्ञता ज्ञापित की हैं। साथ ही कबीर पंथ में कबीर, साहित्य में कबीर, विदेशी अखवारों में कबीर और लोक में कबीर की जीवंत उपस्थिति के बारे में बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी दी है। साथ ही जमीनी कामों के बारे में वर्तमान में कहां क्या हो रहा है वह भी लिखा है। उन्होंने इसे कबीर के विलंबित पढ़े आंदोलन का नया आगाज बताया है। लोक ने अपने प्रतीकों और विम्बो कबीर के विचार को अपनी बोली भाषा में ढाला उनके शब्दार्थ और अर्थ लिखे जो सभी के लिए बहुत उपयोगी हैं। सचमुच ये श्रम सुरेश जी का अकारथ नहीं जाएगा।सुरेश पटेल ने पुस्तक की रचना प्रक्रिया के बारे में बताया कि कबीर कि 20 वर्ष पहले इन वाणियों का संग्रह गायकों से सुनकर किया गया थाऔर कोरोना काल में इन्हें लिपिबद्ध किया गया। इन पदों में से अनेक पद लुप्त हो गए हैं कबीर की धरोहर आगे की पीढ़ियों तक जाए इसलिए यह छोटा सा प्रयास है। उन्होंने कहा भले ही कबीर को उपेक्षित किया जाए पर जब तक गायकों के कंठ में स्वास है कबीर जिंदा रहेंगे। अध्यक्षीय संबोधन में डॉ सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी ने कहा कि कबीर ने बताया कि यह जीवन किसी भी पल जाने वाला है इसलिए जो भी बन सके अच्छे काम कर लीजिए हर व्यक्ति सोचता है कि दूसरे की मृत्यु होगी मैं अमर रहूंगा बार बार कबीर ने नश्वरता की बात कही।कार्यक्रम का प्रारंभ गीता पराग एवं उनके साथियों ने कबीर के पद ,मेरा सद्गुरु है रंगरेज चुनरिया मोरी रंग डारी से किया, उनकी सुंदर प्रस्तुति से श्रोता कबीरी रंग में रंग गए। स्वागत भाषण डॉ चारुशीला मौर्य ने दिया । अतिथियो का स्वागत के. आर. ओसवाल, शशिकांत व्यास ने किया आभार राजेन्द्र बंधु ने व्यक्त किया।
कार्यक्रम का संचालन छोटेलाल भारती ने किया।

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