फसलों का बलिदान है यारों

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mahendr
हम तो एक किसान हैं यारों,
भीतर  लहूलुहान  हैं  यारों।
बखरी  बाहर   खड़ा  ट्रैक्टर ,
कर्जे  का  तूफान  है  यारों।
चार साल प्राकृतिक आपदा,
फसलों का बलिदान है यारों।
राहत चेक के चले सिलसिले,
तहसीलदार धनवान हैं यारों।
फसलों के फिर दाम गिर गए,
मंडी  फिर  सुनसान  हैं यारों।
 फिर फीस नहीं भर पाया मैं,
बेटे  का  इम्तिहान   हैं  यारों।
फाँसी चढ़ा तो मिला मुआवजा,
ये  सरकारी  एहसान  हैं  यारों।
दी  मौत  फिर दिए  करोड़ों,
अब साहब  मेहरबान  हैं  यारों।
कोई नहीं जो दुःख-दर्द बाँट ले,
शरणस्थली  श्मशान है यारों।

                                                                  #एड.महेन्द्र श्रीवास्तव

परिचय : एडवोकेट महेन्द्र श्रीवास्तव दमोह (म.प्र.)में रहते हैं। आपको लेखन के लिए महेश जोशी स्मृति सम्मान सहित साहित्य मेला इलाहाबाद में भी सम्मानित किया गया है। चित्रगुप्त न्यास दमोह द्वारा भी सम्मानित हैं।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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