एक रावण का अंत

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रमेश आते ही अपनी चाची को गोद में उठा लिया और बोला – ” चाची ! मैं मेडिकल की परीक्षा में अब्बल नंबर से पास हो गया । “ और वह खुशी से फूला नहीं समा रहा था । अपनी चाची को गोद में उठाये झूमने लगा ।
” अरे बेटा ! नीचे तो उतारो , अन्यथा मुझे चक्कर आ जाएगा । “
और वह अपनी चाची को नीचे उतार दिया । चाची उसे गले से लगाते हुए बोली – ” आज रामकिशन का सपना पूरा हो गया । “ और उनकी आंखों से आंसू की बूंदें टपकने लगी ।
वह आश्चर्य से पूछा – ” रामकिशन का सपना ! आखिर रामकिशन कौन है , चाची ? उनसे मेरा संबंध क्या है ? “
उसके प्रश्नों को सुनकर सरला चुप हो गयीं । फिर अपने आंसुओं को पोछते हुए बोली – ” छोड़ों इन बातों को । आज इतनी बड़ी खुशखबरी मिली है । मेरा बेटा डाॅक्टर बनने वाला है । आज तो खुशी मनाने का दिन है , जिस दिन की मैं वर्षों से प्रतीक्षा कर रही थी ; आज वह दिन आ गया । “
रमेश मुस्कुराते हुए बोला – ” चाची ! आपने तो बात को ही बदल दिया । आपने तो मेरे प्रश्नों का उŸार ही नहीं दिया । फिर रामकिशन के नाम सुनते ही तुम्हारी आंखों में आंसू क्यों आ गये ? आखिर तुम रामकिशन के बारे कुछ बताना क्यों नहीं चाहती ? आखिर इसके पीछे क्या कारण है ? “
उसकी बातों को सुनकर सरला मौन धारण कर ली । उनकी समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि जिस राज को वर्षों तक अपने सीने में छिपाये रही , वह राज आज उनके मुंह से कैसे निकल गया ! और वह यह राज रमेश को कैसे बता सकती हैं ! रामकिशन उनका जेठ था और उसने इस राज को राज ही रहने देनी की कसम दे रखी थी । फिर उनके मुंह से रामकिशन का नाम कैसे निकल गया । रमेश का पालन – पोषण तो उन्होंने ही किया । उसे अपने मां – बाप की कमी महसूस नहीं होने दी ।
सरला का मौन और रामकिशन का नाम उसके मन को विचलित कर रहा था। उसे अपने बचपन की छुटपुट बातें याद आने लगी । स्पष्ट तो नहीं , लेकिन कुछ – कुछ तो याद जरूर आ रही थी। जब वह बहुत छोटा था , तो उसके अपने घर थे , मां – बाप थे । उसकी दो बड़ी बहनें थी । लेकिन आज तक उसके मां – बाप और बहनें उससे मिलने क्यों नहीं आये ? उसे अपने मां – बाप और बहनों की याद सताने लगी ।
वह अपनी चाचा को झकझोर कर पूछना चाहता था कि उसके मां – बाप कहां हैं ! उसकी बहनें कहां हैं ! और आज तक उसके परिवार का कोई सदस्य उससे मिलने क्यों नहीं आया ? वह तो बचपन से यही जानता था कि चाची ही उसकी सब कुछ हैं । लेकिन चाची ने रामकिशन का नाम लेकर उसके बचपन की यादें ताजा कर दी ।
वह अपनी चाची को एकटक निहारने लगा और उनकी आंखों से बहते आंसू को पोछते हुए बोला – ” चाची ! तुम्हारी आंखों से बहते आंसू कुछ और ही कहानी बयां कर रही है । इन आंसुओं में न जाने कितना दर्द छुपा है । ऐसा दर्द जो किसी के सामने प्रकट न कर भीतर ही भीतर घुटने पर मजबूर हो । कोई ऐसी तड़प है , जो वर्षों से अपने सीने में छुपाये हुई हो । कोई ऐसा राज है , जो तुम मुझे बताना नहीं चाहती हो । आखिर इन बहते आंसुओं के पीछे का सच क्या है ? मैं यह सब जानना चाहता हूं । “
” ऐसी कोई बात नहीं है , रमेश ! रामकिशन हमारे ही गांव का था और वह तुम्हें डाॅक्टर बना देखना चाहता था । लेकिन ईश्वर ने …..। जहां तक तुम्हारे मां – बाप का सवाल है , तो तुम्हारे जन्म लेने के कुछ दिन बाद ही वे दोनों एक जानलेवा रोग के शिकार हो गये । रामकिशन का नाम तो मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया । इसमें कोई राज की बात कहां है ! तुम इन बेकार की बातों पर ज्यादा ध्यान मत दो । आज तो खुशी मनाने का दिन है । और ये आंसू तो खुशी के आंसू हैं । इन आंसुओं में तुम्हें दर्द कैसे नजर आने लगा । मैं आज तक तुमसे कोई बात छुपायी थोडे ही हूं । तू तो मेरे सपनों का राजकुमार है । तेरे अलावा अब मेरा है ही कौन ? तू ही तो मेरे बुढ़ापे का सहारा है । “ चाची उसके बालों पर हाथ फेरते हुए बोली ।
लेकिन उसके मन में संदेह के बीज उग आये थे । वह सोचने लगा – ” कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है । कोई ऐसा राज है , जो चाची मुझे बताना नहीं चाहती । तभी तो रामकिशन के नाम से ही उनकी आंखों में आंसुओं की बूंदें टपकने लगी । मेरे मां – बाप और बहनों के बारे में कुछ बताने भी से कतरा रही हैं । मेरी बहनें कहां हैं ? इस पर मौन धारण कर लेती हैं । इन बातों के पीछे कोई न कोई राज जरूर छिपा है । मैं इस राज को जानकर ही रहूंगा । “
” लेकिन चाची ! मेरा तो भरा – पूरा परिवार था , लेकिन तुम कह रही हो कि मेरे जन्म लेने के बाद ही वे दोनों गुजर गये । मुझे पूरा तो नहीं , लेकिन कुछ – कुछ याद जरूर है कि मेरी दो बहनें भी थी , जिनके बारे में तुम कुछ नहीं बोलती । लेकिन वे सब आज तक मुझसे मिलने क्यों नहीं आये ? आखिर मेरा परिवार कहां है ? बचपन की कुछ – कुछ स्मृतियां मेरी आंखों के आगे जरूर उभर आती है । यह बात सही है कि मां – बाप का फर्ज तो निभाया आपने ही । कभी मां – बाप की कमी महसूस नहीं होने दी । लेकिन न जाने क्यों ? आज रामकिशन के नाम सुनते ही अपने बचपन की स्मृतियां उभर आयी और अपने परिवार की याद सताने लगी । बताओ न चाची ! मेरे परिवार के बाकी सदस्य कहां और किस हाल में हैं । “ वह नितांत उदास स्वर में बोला ।
” जो बीत गया , उसे याद करने से क्या फायदा ? तू इतना जान ले , मेरे अलावा तेरा इस दुनिया में कोई नहीं है । तू उस सच को क्यों जानना चाहता है , जो तुम्हें दुखों के समंदर में डुबो देगा ? उस भयावह और दुखांत सच को क्यों जानने को बेताब हो , जो तुम्हें आंसुओं के समंदर में डुबो देगा ? बीते हुए पलों को भूल जा और अपनी नई जिंदगी की शुरूआत कर । वैसे भी मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं जानती । बचपन में तुम्हें सौंपकर तुम्हारे मां – बाप न जाने कहां चले गये मुझे पता नहीं ? बाकी बातों से तुम्हें कोई लेना – देना नहीं है । “ चाची जानती थी कि उस भयावह और दुखांत सच को जानकर शायद उसके जीवन की दिशा ही न बदल जाए । उसका जीवन संकट में पड़ जाएगा । रामकिशन का आखिर चिराग भी कहीं बुझ न जाए । और फिर रामकिशन ने भी तो सच न बताने की सौगंध दे रखी है ।
” चाची ! तूने ही तो मुझे नया जीवन दिया है । तूने कभी मां – बाप की कमी महसूस नहीं होने दी , लेकिन आज तूने रामकिशन का नाम लेकर मेरी यादें ताजा कर दी । मैं अपने परिवार को ढूंढ़कर ही रहूंगा । आखिर वह कौन – सा भयावह और दुखांत अतीत है । मैं जानकर ही रहूंगा । “ रमेश बोला ।
” तू क्यों इन बेकार की बातों में पड़कर अपनी जिंदगी में तूफान लाना चाहता है । मेरा अब इस दुनिया में तेरे सिवा है ही कौन ! तू ही तो मेरे बुढ़ापे का सहारा है । अब बस मेरी एक ही इच्छा है कि तू किसी अच्छी लड़की से शादी कर अपना घर बसा लें । ताकि मैं शांति से मर सकूं । तू मेरी यह इच्छा पूरी कर दी । “
लेकिन वह अपनी चाची की बातों का कोई उत्तर नहीं दिया । वह तो अब अपने परिवार का अतीत जानना चाहता था । उसने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि वह अपने परिवार के अतीत का सच जानकर ही रहेगा ।
वह अपने अतीत की तलाश में जी – जान से जुट गया । घर का कोना – कोना छान मारने लगा । लेकिन उसे अपने परिवार संबंधित कोई भी जानकारी नहीं मिल पा रही थी । इसी खोज के दौरान उसकी निगाह एक पुरानी संदूक पर टिक गयी । उसने संदूक को खोला । कपड़ों के बीच एक पुरानी तस्वीर मिली । जिसमें एक परिवार के पांच लोग थे । पति – पत्नी एक बच्चे को गोद में लिए थे , तो उनके बगल में दो बच्चियां खड़ी थी । तस्वीर के नीचे बाढ़ लिखा था । तस्वीर देखते ही उसे कुछ – कुछ याद आने लगा कि यही तो उसके मां – बाप हैं । बगल में खड़ी दो बच्चियां उसकी बहनें थी । गोद में तो वह स्वयं था । उसने तस्वीर को अपने सीने से लगा लिया और सोचने लगा – ” चाची ! मुझसे यह सब क्यों छिपा रही थी ? जब भी मैं अपने परिवार के बारे में पूछता था , तो वह मौन कर लेती थी । आखिर उनके मौन में कौन – सा राज छिपा है । वह कौन – सा भयावह और दुखांत अतीत है ! अब मैं डाॅक्टर की नौकरी नहीं करूंगा और अपने परिवार की खोज करूंगा । आखिर मेरा पूरा परिवार कहां है और किस परिस्थिति में हैं ? यह जानना ही अब मेरा मकसद है । “
वह डाॅक्टर की नौकरी छोड़ अपने परिवार की तलाश में बाढ़ चला आया । अब उसके सामने यह समस्या आ गयी कि इस अनजान शहर में अपने परिवार की खोज करें तो कैसे ? इतने बड़े शहर में आखिर उसका घर है कहां ? लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी । उसने इस समस्या का समाधान निकाल लिया । वह पुरानी तस्वीर लोगों को दिखाकर अपने घर का पता जानने का प्रयास करने लगा । लेकिन कोई भी उस तस्वीर को देखकर कुछ बता पाने में असमर्थ था । वह तस्वीर लेकर यूं ही लोगों से पूछता फिर रहा था । लेकिन कोई भी व्यक्ति उसके घर का पता नहीं बता पा रहा था । तभी अचानक एक दिन एक वृद्ध व्यक्ति उस तस्वीर को देखते ही पहचान गया और बोला – ” यह तो रामकिशन और उसका परिवार है । “
यह सुनते ही उसका चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा । वह उŸोजित स्वर में बोला – ” ये लोग कहां रहते हैं ? मुझे उनसे मिलना है । “
” तू कौन है और इनसे क्यों मिलना चाहते हो ? “ वह वृद्ध व्यक्ति बोला ।
” यही तो जानना चाहता हूं कि आखिर इनसे मेरा क्या रिश्ता है ? मैं अपने परिवार की खोज में आया हूं । “ रमेश बोला ।
” तुम कहां से आये हो ? तुम्हारा पालन – पोषण किसने किया ? फिर यह तस्वीर तुम्हें कहां मिली ? “ वृद्ध व्यक्ति ने प्रश्न किया ।
” मैं दिल्ली से आया हूं । डाॅक्टर की नौकरी छोड़कर अपने परिवार की खोज में । मेरा पालन – पोषण मेरी चाची ने किया । लेकिन जब भी मैं उनसे अपने परिवार के बारे में पूछता , तो वह मौन धारण कर लेती । यह सच है कि उन्होंने कभी मां – बाप की कमी महसूस नहीं होने दी । लेकिन इस बीच मेरे परिवार का कोई सदस्य मुझसे मिलने नहीं आया । मेरे बार – बार पूछने पर वह केवल इतना ही कहती – उस अतीत को भूल जाने में ही भलाई है । इस अतीत के पीछे एक भयावह और दुखांत सच छिपा हुआ है । मैं यह सब जानना चाहता था , लेकिन वह कुछ बताने से कतराती थी । मैं अपने अतीत को जानने को उत्सुक था । इसी उत्सुकता ने मुझे अपने परिवार की खोज करने पर विवश कर दिया । इसी खोज के दौरान एक पुरानी संदूक में कपड़ों के बीच यह तस्वीर मिल गयी और मैं अपने परिवार की खोज में यहां चला आया । “ रमेश एक ही सांस में बोल गया ।
वह वृद्ध व्यक्ति उसे एकटक निहारने लगा और पूछा – ” कहीं तुम्हारी चाची का नाम सरला तो नहीं ? “
” हां , हां , मेरी चाची का नाम सरला ही है । उन्होंने ही मुझे पाल – पोसकर बड़ा किया है । आप मेरी चाची को कैसे जानते हैं ? “ रमेश व्यग्र होकर बोला ।
” मैं सब समझ गया । तुम रामकिशन के बेटे हो । इस तस्वीर में गोद में स्वयं तुम हो । ये तुम्हारे माता – पिता और बहनें हैं । लेकिन अब यहां क्या करने आये हो ? सब कुछ तो खत्म हो गया । यहां से फौरन वापस लौट जाओ । क्यों उस अतीत को जानना चाहते हो , जिसमें तुम्हें सिवाय दर्द के अलावा कुछ नहीं मिलेगा ? “ यह कहते – कहते उस वृद्ध व्यक्ति की आंखों में आंसू आ गये ।
” आप क्या कहना चाहते हैं , मैं कुछ समझ नहीं पाया ? मैं तो अपने परिवार की खोज करने आया हूं । मेरा परिवार कहां है ? और आप किस दर्द की बात कर रहे हैं । “ रमेश बोला ।
” अब कुछ शेष नहीं बचा । सब कुछ खत्म हो गया । सबके सब काल के गाल में समा गये । अब तुम्हीं उस परिवार के एक निशानी बचे हो । क्यों तुम भी मौत के मुंह में समा जाना चाहते हो ? उसे जैसे पता चलेगा कि रामकिशन का बेटा आया है , तो वह तुम्हें भी मौत की नींद सुला देगा । तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम वापस लौट जाओ और कभी इस ओर मुड़कर नहीं देखना । वरना वह रावण तुम्हारा भी अंत कर देगा । “ वृद्ध कांपते स्वर में बोला ।
” सब कुछ खत्म हो गया ! किसने मेरे पूरे परिवार को मौत की नींद सुला दिया । आखिर मेरे परिवार ने उसका क्या बिगाड़ा था ? मुझे क्यों मारना चाहता है ? आखिर वह कौन है ? जिसे आप रावण कह रहे हैं ? “ रमेश आंसू बहाते हुए बोला ।
” बेटा ! इस रावण का नाम माणिक चंद है । इस शहर का कुख्यात अपराधी । उसके नाम से ही लोगों की रूहें कांप जाती है । माणिक ने ही तुम्हारे पूरे परिवार को बेरहमी से मौत की नींद सुला दिया । केवल तुम्हारे परिवार को ही नहीं , बल्कि इस शहर के न जाने कितने परिवार को मौत के घाट उतार दिया । कितनी औरतों की मांगें सूनी कर दी । कितने बच्चों को अनाथ कर दिया । न जाने कितनों का बुढ़ापे का सहारा छीन लिया । कितने इंसानों को टुकड़े – टुकड़े में काटकर जानवरों को खिला दिया । मेरे पूरे परिवार को भी उसने बड़ी बेदर्दी से मौत के घाट उतार दिया । एक बेटी बची थी । वह भी उससे बदला लेने की कसम खाकर घर से निकल गयी । फिर वापस लौटकर नहीं आयी । मैं उसी की खोज में भटक रहा हूं । “ वृद्ध आंसू टपकाते हुए बोला ।
यह सुनते ही उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया । उसकी आंखों से आंसुओं की मोटी – मोटी धारा बह निकली । वह अनायास चीख पड़ा – ” ऐसा नहीं हो सकता । बाबा ! कह दो यह सब झूठ है । “ और वह अपना सिर पकड़कर जमीन पर बैठ गया । ।
वृद्ध उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोला – ” बेटा ! यही सच है । यही वह भयावह अतीत है , जो तुम्हारी चाची तुम्हें बताना नहीं चाहती थी । उस माणिक की निगाहों से बचाकर तुम्हें दूर लेकर चली गयी । जहां उस रावण की कुदृष्टि न पड़े । अब क्यों मौत के मुंह में जाना चाहते हो ? यहां से चला जाओ । यहां तो चप्पे – चप्पे पर मौत का जाल बिछा है । उसके खिलाफ कोई बोलना तो दूर उसके सामने कोई सिर नहीं उठा सकता । सब उसके गुलाम बने हैं । वह अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह है । तुम अपनी चाची के पास वापस चले जाओ और बीती बातों को भूलकर अपने नये जीवन की शुरूआत करों । “
वह अपने आप को संयमित करते हुए बोला – ” बाबा ! अब मैं यहां से नहीं जाऊंगा । आप मुझे पूरी कहानी विस्तार से बताइये कि माणिक चंद ने मेरे परिवार और लोगों को इतनी बेरहमी से क्यों मारा ? उसके नाम से लोग क्यों कांपते हैं ? मेरा घर इस शहर में कहां है ? वह मुझे क्यों मारना चाहता है ? मैं अपने घर का दर्शन करना चाहता हूं । मुझे वहां ले चलिए । “
” ठीक है । मैं तुम्हें उस रावण की कहानी सुनाऊंगा । चलो उसी घर की दहलीज पर । “ और वृद्ध उसे साथ लेकर चल पड़ा उसकी मंजिल की ओर । काफी रात हो चली थी । शहर में मानो गहरा सन्नाटा छाया हुआ था । उस अंधेरी रात में पूरा सड़क वीरान पड़ा था और केवल कुŸाों के भौंकने की आवाज आ रही थी । कुŸो और जानवरों की आवाज से सारा वातावरण भयावह प्रतीत हो रहा था । दोनों रात की गहन नीरवता को चीरते हुए बढ़े जा रहे थे । शहर की अट्टालिकाओं के बीच एक स्थान पर वृद्ध रूक गया और बोला – ” वो सामने देखा । अट्टालिकाओं के बीच वह खंडहरनुमा मकान ही तुम्हारा घर है । यही तुम्हारा जन्म हुआ था । इसी घर में तुम्हारा परिवार रहता था । कभी यहां की गलियों में बच्चों की किलकारियां गंूजा करती थी । देर रात तक लोगों का जमघट लगा रहता था और लोग अपना दुख – सुख आपस में बांटा करते थे । यहां का पूरा माहौल एकदम खुशनुमा और शांत था । लोग सुखी जीवन व्यतीत कर रहे थे । “ यह कहते – कहते वृद्ध की आंखों में आंसू आ गये ।
” फिर क्या हुआ ? “ वह बोला ।
” तभी इस शहर में विकास की बयार बहने लगी । बाहरी लोगों का इस शहर में आने का सिलसिला शुरू हो गया । जमीन की कीमतें आसमान छूने लगी । बाहर से आये लोग यहां की जमीन मुंहमांगी कीमत पर खरीदने को तैयार थे , लेकिन यहां के लोग अपनी धरती मां को बेचना नहीं चाहते थे । उन्हें हरियाली और शांति पसंद थी । अमन – चैन की जिंदगी पसंद थी । वे कोलाहल से दूर रहना चाहते थे । इसी बीच यह पूरा इलाका एक रावण की निगाहों में चढ़ गया । वह दौलत और शौहरत का भूखा था । उस कलियुगी रावण का नाम था – माणिक चंद । वह गरीब और बेबस लोगों को डरा – धमकाकर उनकी बेशकीमती जमीन अपने नाम करवाने लगा । वह उनकी जमीन पर ऊंची – ऊंची अट्टालिकाओं का निर्माण कर मुंहमांगी कीमत पर बेचने लगा । उसके रूपयों की भूख मिट ही नहीं रही थी । वह और रूपये कमाना चाहता था , इसलिए वह और जमीन अपने कब्जे में लेना चाहता था । वह जबरदस्ती लोगों को जमीन अपने नाम करने पर विवश करने लगा । जो लोग अपनी जमीन देने में आना – कानी करते , उसके साथ माणिक क्रूरता की सारी हदें पार कर देता । इस प्रकार उसका आतंक बढ़ता ही जा रहा था । उसके हाथ खून से रंगने लगे । वह बेगुनाहों का खून बहाने लगा । कानून की निगाहों से बचने के लिए लोगों की लाशों का नाम – निशान ही मिटा देता । उसने कानून को खरीद लिया था। पुलिस उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती थी और शिकायत करने गये लोगों को भगा देती । यही नहीं वह इलाके की बहू – बेटियों की इज्जत के साथ खेलने लगा । उसे जो लड़की पसंद आ जाती । उसे वह सरेआम उठाकर ले जाता । “ वृद्ध उदास स्वर में बोला ।
” तो क्या इसी जमीन के चक्कर में मेरा पूरा परिवार उसकी हैवानियत का शिकार हो गया ? “ वह उŸोजित स्वर में बोला ।
” हां , तुम्हारा परिवार उसके मार्ग का बाधक बन गया था । रामकिशन किसी भी कीमत पर अपनी जमीन उसके नाम नहीं करना चाहता था। रामकिशन की जमीन के कारण ही उसका माॅल बनाने का सपना साकार नहीं हो रहा था । इस खंडहरनुमा मकान के आसपास जो जमीन बची है , वो उन बेबस और लाचार गरीबों की जमीन है । जिसे उसने जबरदस्ती अपने नाम करवा लिया । केवल एक यही मकान है , जो तुम्हारे नाम है । यही मकान उसके सपने में बाधक बना हुआ है और तुम्हें खोज रहा है , ताकि तुमसे यह मकान भी अपने नाम करवा सके । उसके माॅल बनाने का सपना पूरा हो जाए । “

” मुझे वो दिन अच्छी तरह याद है , जब माणिक तुम्हारे इस मकान पर कब्जा करने आया था । उस समय रामकिशन घर पर नहीं था । लेकिन तुम्हारे लखन चाचा ने उसका विरोध किया । लखन और माणिक में तू – तू मैं – मैं होने लगी । परिवार के लोग इस शोर गुल को सुनकर घर से बाहर निकल आये और लखन को समझाने लगे । इसी बीच माणिक का भतिजा रणजीत तुम्हारी बहन मधु के साथ छेड़खानी करने लगा । यह देखकर लखन माणिक के भतिजे रणजीत पर शेर की तरह हमला कर दिया । लेकिन वह अकेला कब तक उसका मुकाबला करता । उसके आदमियों ने उसे पकड़ लिया और वहीं पर उसे टुकड़े – टुकड़े में काटकर कुŸाों को खिला दिया । साथ ही तुम्हारी दोनों बहनों मधु और रागिनी को जबरदस्ती उठाकर ले जाने लगा । एक तरफ तुम्हारे चाचा की हत्या और दूसरी ओर तुम्हारी बहनों की इज्जत दांव पर लगी थी । यह देखकर पत्थर की बुत बनी तुम्हारी मां और चाची ने माणिक के पैरों पर गिर कर काफी आरजू – मिन्नत की । लेकिन उस पत्थर दिल इंसान का दिल नहीं पिघला । उनके बहते आंसुओं पर भी तरस नहीं आया । जाते – जाते यह भी धमकी दे दिया कि यदि किसी ने इस लखन की मौत पर आंसू बहाया ,तो उसे भी कुŸो की मौत मारूंगा और न इस लखन का कोई क्रिया – कर्म करेगा । इस प्रकार तुम्हारे चाचा की मृत्यु पर न तो किसी ने आंसू बहाया न उनका अंतिम संस्कार हो पाया । “ वृद्ध नितांत उदास स्वर में बोला ।
” फिर मेरी बहनों को क्या हुआ ? “ वह बोला ।
” रामकिशन जब घर आया , तो देखा घर में मातम पसरा है । हर कोई पत्थर की बुत बना था । कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं था । तुम्हारी मां बदहवास – सी रोये जा रही थी । रामकिशन तुम्हारी मां को झकझोरकर कहा कि यह घर में मताम क्यों पसरा है ? कोई कुछ बोलता क्यों नहीं ?
तुम्हारी मां बस इतना ही बोल पाया कि सब कुछ खत्म हो गया ।
” आखिर क्या हुआ ? “ कोई कुछ बोलता क्यों नहीं ?
जब तुम्हारी चाची ने सारी घटना की जानकारी दी तो रामकिशन बदहवास – सा रोने लगा । उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि अपने भाई की हत्या का मातम मनाये या अपनी बच्चियां की इज्जत कैसे बचायें ? गुस्से से उसका तन – बदन जलने लगा । वह क्रोध से कांप गया । उसकी आंखों में बदले की ज्वाला धधकने लगी । वह पुलिस थाने गया , लेकिन जहां दौलत और सŸाा को बोलबाला हो । गरीब की बात को सुनता कौन है ! उसकी पहुंच के आगे रामकिशन हार गया । रामकिशन के पास माणिक के खिलाफ न कोई सबूत था और न गवाह । पुलिस माणिक के खिलाफ केस दर्ज करने से साफ इंकार कर दिया । वह थका – हारा घर लौैट रहा था कि सुनसान सड़क के फुटपाथ पर उसने दो लाशें देखी ं । वह उसके करीब गया । दोनों लाशें अर्धनग्न अवस्था में थी । उसके साथ पापियों ने जबरदस्ती की थी । उसने गौर से उन दोनों का चेहरा देखा । पर यह क्या ? वे दोनों और कोई नहीं मधु और रागिनी थी । यह देखकर रामकिशन की आंखों के आगे अंधेरा छा गया । वह बदहवास – सा जमीन पर गिर पड़ा और फूट – फूट कर रोने लगा । उसकी भयावह चीख चारों दिशाओं में गूंज गयी । वह फौरन थाने गया और अपनी बच्चियों के अपहरण , बलात्कार और हत्या का केस दर्ज करने का गुहार लगाने लगा । पुलिस ने कहा कि वह पहले उनकी लाश के पास ले चले । वही पर केस दर्ज किया जाएगा । रामकिशन पुलिस के साथ उस स्थान पर आया , जहां उसकी बच्चियों की लाश फेंकी गयी थी । लेकिन यह क्या ? वहां तो लाश का कोई नामों – निशान तक नहीं था । माणिक ने उन लाशों को ठिकाने लगा दिया था । पुलिस रामकिशन पर ही आरोप लगाने लगी कि वह माणिक को वेबजह षड्यंत्र कर फंसाने की साजिश रच रहा है । यदि उसने ज्यादा पुलिस को परेशान किया तो पुलिस उसे साजिश रचने के आरोप में जेल भेज देगा। रामकिशन समझ गया कि कानून तो गरीबों के लिए है । बड़ों के लिए कोई कानून कोई नहीं है । पुलिस तो माणिक की अंगुलियों पर नाचती है । कानून उसे सजा नहीं दे सकता । अब वह स्वयं माणिक को सजा देगा । रामकिशन उसी समय निश्चय कर लिया कि वह माणिक की हत्या कर देगा । वह उसी समय माणिक के ठिकाने पर गया और बोला – ” माणिक मेरे परिवार ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था , जो मेरे परिवार पर इतना जुल्म किया । किस बात की सजा दी मेरे परिवार को । तू कहता , तो मैं हंसते – हंसते अपनी सारी जमीन तुम्हारे नाम कर देता । लेकिन अब नहीं ! अब किसी कीमत पर तेरे सपने को पूरा नहीं होने दूंगा । मैं उस मकान को ऐसे के नाम कर दिया है कि तू वहां तक पहंुच भी नहीं पायेगा । आज मैं तेरे हर एक पाप की सजा दूंगा । आज मैं तेरा अंत करके ही रहूंगा । अब तो मेरे जीवन में रहा ही क्या ? अब मेरी एक ही इच्छा है कि मैं तुम्हारी हत्या कर अपने परिवार पर हुए एक -एक जुल्म का हिसाब लूं । तैयार हो जाए मरने के लिए । “ और वह फुर्ती से माणिक की गर्दन को दबोच लिया ।
दोनों के बीच काफी समय तक गुत्थम – गुत्थी होता रहा । आखिर रामकिशन अकेले उसका कितना मुकाबला करता । माणिक रामकिशन को उठाकर जमीन पर पटक दिया और लात – घंूसों से उसकी पिटाई करने लगा । उसके आदमी भी रामकिशन को बेताहाशा पीट रहे थे । अंतिम सांसें गिन रहे रामकिशन पर माणिक पेट्रोल डालकर जिंदा जला दिया । तेरी मां इस सदमें को बर्दाश्त न कर पायी और वह पागल हो गयी । उसकी मौत काफी बुरे तरीके से हुई । इधर सरला ने रात के अंधेरे में तुम्हें लेकर इस शहर दूर न जाने कहां चली गयी ? यही वह भयावह और दुखांत सच है । “
यह सुनकर वह फूट – फूटकर रोने लगा । वह एक अज्ञात पीड़ा से तड़पने लगा । उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया ।
तभी उस वृद्ध ने उसे सांत्वना देते हुए बोला – ” जो होना था , सो हो गया । अब तुम वापस लौट जाओ और अपनी नई जिंदगी की शुरूआत करो । बीती बातों को भूलने में ही भलाई है । “
वह आक्रोशित स्वर में बोला – ” नहीं बाबा ! अब मैं यहां से लौटकर तभी जाऊंगा , जब इस रावण का अंत कर दूंगा । इस रावण राज का अंत करके ही रहूंगा। लोगों पर हुए हर जुल्म का हिसाब लूंगा , उस माणिक से । एक – एक आंसुओं का हिसाब चुकाना होगा उसे । उसके एक – एक गुनाह की सजा दूंगा । अब मेरा एक ही मकसद है और वह है बदला ! बदला ! “
वृद्ध बोला – ” इससे जो भी बदला लेने का प्रयास किया , वह जिंदा जला दिया गया या फिर जिंदा खूंखार जानवरों के हवाले कर दिया गया । न जाने कितने लोग इससे बदला लेने के चक्कर में बेमौत मारे गये । इसकी पहंुच बहुत दूर तक है । पैसा और राजनीतिक पहुंच के कारण कोई इसका बाल भी बांका नहीं कर सकता । हाय ! मेरी बेटी हेली भी तो इससे बदला लेने गयी है । न जाने वह जिंदा भी है या …… “ और वह अपनी बेटी की तस्वीर उसके आगे कर दी ।
” आप चिंता न करे । मैं आपकी बेटी हेली की खोज करूंगा । मैं इस रावण का अंत आमने – सामने की लड़ाई में नहीं कर सकता । इस रावण का अंत छल से करूंगा । इसकी लंका का सर्वनाश अपनी बुद्धि से करूंगा । लेकिन आप यह बात किसी को मत बताना । इस रहस्य को रहस्य ही रहने देना । “
और वह चल पड़ा रावण की लंका की ओर । लेकिन उस रावण की लंका में प्रवेश करना इतना आसान थोड़े ही था । वह उसकी लंका में प्रवेश करने के लिए सोच – विचार करने लगा । वह फूंक – फूंक कर कदम रखना चहता था , ताकि उस पर किसी को शक न हो । वह पहले तो उसके सही ठिकाने का पता लगाया । फिर अपना हुलिया बदला । गरीब , बेबस और अनपढ़ मजदूर का रूप धारण कर काम की खोज में उसकी लंका में गया । वह उसकी शान और शौकत को देखकर दंग रह गया । माणिक अपने हथियार बंद आदमियों से घिरा था । यह बंगला नहीं एक अभेद किला था , जहां कोई परिंदा पर नहीं मार सकता था । यह देखकर वह उदास और निराश हो गया कि वह अकेला कैसे इस रावण का अंत कर पाएगा ? यहां तो चप्पे – चप्पे पर मौत का जाल बिछा है । वह बदला लेने की बात भूल निराश मन वापस लौटने लगा । तभी उसे अपना परिवार याद आया , जो हैवानियत का शिकार हो गया । फिर उसने मन ही मन निश्चय कर लिया कि चाहे जो हो जाए वह बदला लिए बिना वापस नहीं लौटेगा। चाहे माणिक मरे या वह स्वयं । वह पीछे मुड़कर नहीं देखेगा ।
वह जैसे ही माणिक के अभेद किले में घुसने का प्रयास किया , उसके हथियारबंद आदमियों ने उसे गेट पर रोक दिया और बोला – ” अबे साले ! भीतर कहां घुसा जा रहा है । बिना इजाजत भीतर घुसने की तेरी हिम्मत कैसे हुई ? “
वह गिड़गिड़ाते हुए बोला – ” गरीब आदमी हूं । बाल – बच्चेदार हूं । काम की खोज में आया था । शायद यहां कोई काम मिल जाए ? “
” यहां तेरे जैसे आदमी के लिए कोई काम नहीं है । जा कहीं और काम ढूंढ़ । “ गेट पर तैनात गार्ड ने कहा ।
फिर भी वह वहीं ठिठका खड़ा रहा । उसे यंू ही खड़ा देखकर एक गार्ड ने कहा – ” अबे ! खड़ा – खड़ा मेरा मुंह क्या देख रहा है ? चल फुट यहां से । वरना मार – मारकर कचूमर निकाल दूंगा । “
तभी दूसरा गार्ड बोला – ” तू कौन है और कहां से आया है ? कहीं तू हमारे मालिक के दुश्मन का भेदिया तो नहीं । चल कहीं और काम ढूंढ़ । “
वह गिड़गिड़ाते हुए बोला – ” भला गरीब और बेबस इंसान किसी का भेदिया कैसे हो सकता है ! मैं तो एक गरीब और असहाय आदमी हूं । मेरे बच्चे भूख से बिलख रहे हैं । मुझ पर दया करो । मेरी सहायता करो । मैं कोई भी काम करने को तैयार हूं । “
” अबे ! चल हट यहां से । “ गार्ड उसे धक्के देकर बाहर ही निकालने वाले थे कि अचानक माणिक अपने आदमियों के साथ उस ओर आ गया । शोर सुनकर गार्ड से बोला – ” क्यों शोर – शराबा कर रहे हो ? और यह आदमी है कौन ? “
गार्ड सिर झुकाकर बोला – ” जी ! यह आदमी बिना इजाजत भीतर घुसा जा रहा था । यह कौन है ? मैं नहीं जानता । जब मैंने इसे भीतर जाने से रोका ,तो इसने कहा कि काम की तलाश में आया है । “
तभी रमेश माणिक के पैरों में गिर गया और बोला – ” माई – बाप ! गरीब आदमी हूं । काम की खोज आया था । बच्चे भूख से बिलाबिला रहे हैं । कोई काम दे दो साहब ! मुझ पर दया करो । एक गरीब और असहाय के भोजन की व्यवस्था कर दो । भगवान आपका भला करेगा । “ और उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी ।
यह देखकर माणिक को उस पर दया आ गयी । वह अपने भतिजे रणजीत से बोला – ” इसे काम पर रख लो । “
रणजीत बोला – ” तू पढ़ा – लिखा है या अंगूठा छाप । “
” अंगूठा छाप हूं , माई – बाप । “
रणजीत मैनेजर से बोला – ” इसे ले जाओ और गोदाम के काम में लगा दो । “
और वह गेट के भीतर प्रवेश कर गया । क्या आलीशान बंगला था माणिक का ? मानो वह स्वर्ग लोक में आ गया हो । चारों ओर फूलों की बगियां और बगियों के बीच पानी का तालाब । सुरा – सुंदरियों से घिरा माणिक जीवन का आनंद उठा रहा था । यह देखकर रमेश मन ही मन सोचने लगा – ” माणिक ! अब तेरे सुख के दिन जल्द ही खत्म होने वाले हैं । जीवन का जितना आनंद उठाना हो उठा लें । अब तेरे जीवन की उल्टी गिनती शुरू हो गयी है । मैं तुझे कुŸो की मौत मारूंगा । अपने परिवार पर हुए एक – एक जुल्म का हिसाब लूंगा । एक – एक आंसू का हिसाब लूंगा । तुझे खून के आंसू रोलाऊंगा । “
उसे उस बंगले के नीचे बने एक गुप्त तहखान में ले जाया गया । जहां काफी सारे मजदूर काम कर रहे थे । उसे भी काम पर लगा दिया गया । वह काम करते हुए वहां की हर गतिविधि पर पैनी निगाह डाले हुए था । कार्टून में सामान भरकर एक खुफिया रास्ते से बाहर निकाला जाता था। लेकिन उन कार्टूनों में क्या भरा होता था ? और कहां भेजा जाता था ? यह सब जानना इतना आसान नहीं था । माणिक के आदमी हमेशा चहल – कदमी करते रहते थे । वह कई बार यह जानने का प्रयास किया कि उन कार्टूनों में आखिर क्या भेजा जाता है ? लेकिन उसका प्रयास हर बार विफल हो जाता । यहां तक कि वहां काम करने वाले मजदूर भी कुछ बोलने से कतराते । वे सब गूंगे – बहरे की तरह काम करते । दिन – रात काम होता रहता ।
ऐसे ही एक दिन रात्रि की गहन नीरवता में वह सुराग की तलाश में इधर – उधर चहल – कदमी कर रहा था कि कोई छाया अंधेरे को चीरते हुए उस खुफिया रास्ते की ओर बढ़ रही थी । वह उस छाया का पीछा करने लगा । वह खुफिया रास्ता एक बियावान जंगल की ओर निकलता था। वह उस छाया का पीछा करते हुए जंगल में घुस गया । तभी वह छाया कहीं अदृश्य हो गयी । लेकिन वह भी कहां हार मानने वाला था। वह उस बियावान जंगल में उस छाया की खोज में इधर – उधर भटकने लगा । तभी उसे एक खंडहरनुमा हवेली दिखायी पड़ी । वह उस हेवली की ओर बढ़ने लगा । एकदम सुनसान और वीरान हवेली में वह दबे पांव घुस गया ।
हवेली के भीतर घुसते ही उसे अजीब – सी गंध आने लगी । मानो वहां लाशों का ढेर लगा हो । वह उस बदबू से बेचैन होने लगा । उसकी हिम्मत जवाब देने लगी । फिर भी वह साहस कर आगे बढ़ने लगा । लेकिन उसे घने अंधकार कुछ नजर नहीं आ रहा था । न जाने वह छाया कहां गायब हो गयी थी । तभी हवेली के एक कमरे में उसे मद्धिम रोशनी दिखायी पड़ी । वह उस कमरे की ओर बढ़ा । उस कमरे में ढेर – सारे जंगल – झाड़ उगे थे । वह झाड़ी के पीछे छिप गया और भीतर का दृश्य देखकर कांप गया । उस कमरे में कई लाशें पड़ी थी । वह छाया भी एक लाश को ठिकाने लगाने आयी थी । वह उस छाया का चेहरा स्पष्ट रूप से देखना चाहता था । लेकिन उस मद्धिम रोशनी में उसका चेहरा स्पष्ट नजर नहीं आ रहा था , क्योंकि उसे अपने चेहरे को नकाब से ढंक लिया था। वह उस छाया को अपनी गिरफ्त में लेना चाहता था। वह जैसे उसे अपनी गिरफ्त में लेने के लिए झाड़ी से बाहर निकला । वह छाया बिजली की गति से अदृश्य हो गयी । वह उस छाया का पीछा छोड़ कमरे का मुआयना करने लगा । यह क्या ? यहां तो कई क्षत – विक्षत लाशें पड़ी थी । जिसे जंगली जानवरों ने नोच खाया था । अभी जो लाश फेंकी गयी थी , मात्र वही सही अवस्था में थी । उसकी समझ यह बात नहीं आ रही थी कि इन लाशों को यहां लाकर कौन ठिकाने लगाता है और क्यों ? आखिर वह नकाब पोश कौन था ? फिर एकाएक वह नकाबपोश जंगल में कहां अदृश्य हो गया ? उसने निश्चय कर लिया थी कि इस सच का पता लगाकर ही रहेगा ।
वह रोज रात को खुफिया दरवाजे के रास्ते पर छिपकर उस नकाबपोश का इंतजार करने लगा । लेकिन अब वह नकाबपोश नजर नहीं आ रहा था ।
अचानक एक रात वह नकाबपोश फिर खुफिया रास्ते की ओर बढ़ा । वह चैंकना हो गया । उसे लगा कि वह आज इस सच का पता लगा ही लेगा । जैसे ही वह नकाबपोश खुफिया रास्ते से बाहर निकला । वह बिजली की गति से उस नकाबपोश को अपनी गिरफ्त में ले लिया । तभी एक लाश उसकी कंधे से दूर जा गिरी । नकाबपोश उसकी गिरफ्त से छूटने का प्रयास करने लगा । लेकिन उसने नकाबपोश को इस प्रकार अपनी गिरफ्त में ले लिया था कि वह चाह कर भी छूट नहीं पा रहा था । उसने उस नकाबपोश को जोर से जमीन पर पटक दिया । उसने उसके चेहरे से नकाब को हटा दिया । नकाब के हटते ही वह उसे देखकर दंग रह गया । यह नकाबपोश और कोई नहीं उस वृद्ध की बेटी थी । वह अपलक नेत्रों से उसे देखते रह गया । वह भी उसे एकटक देखने लगी । वह उसकी खूबसूरती पर फिदा हो गया । उसके गुलाब की पंखुरियों के समान होंठ , तीखे – नैन नक्श और उसका गोरा चेहरा । जिस पर पसीने की बूंदें साफ झलक रही थी , जो उसकी खूबसूरती चारचांद लगा रही थी । तभी वह लड़की फुर्ती से उठी और अपनी कमर से कटार निकाल उसकी ओर लपकी । और उसकी गर्दन पर कटार रखते हुए बोली – ” अब जब तुम इस राज को जान ही गये हो , तो ऊपर जाने के लिए तैयार हो जाओ । “
तभी वह उसे एक जोर का झटका दिया और वह दूर जा गिरी । वह फौरन कटार को दूर फेंकते हुए उसे अपनी गिरफ्त में लेते हुए बोला – ” तो तुम ही लोगों की हत्या कर उस सुनसान हवेली में फेंक आती हो । “
” हां , मैं ही यह सब खेल – खेल रही हूं । अब तुम भी मरने के लिए तैयार हो जाए । क्योंकि तुम इस राज को जान गये हो ? “ वह उसकी गिरफ्त से छूटने का प्रयास करते हुए बोली ।
रमेश बोला – ” तुम अकेले इस रावण का मुकाबला नहीं कर सकती । जिस दिन वह जान गया कि तुम ही उसके आदमियों की हत्या कर रही हो , तो उस दिन वह तुम्हें मार डालेगा । तुम्हारी खोज में तुम्हारे पिता दर – दर की ठोकरें खा रहे हैं और तुम अकेली इस रावण का अंत करने चली हो । इस प्रकार तुम अकेली इस रावण का अंत नहीं कर सकती । “
पिता शब्द सुनते ही वह एकदम शांत हो गयी और बोली – ” तुम मेरे पिता को कैसे जानते हो ? “
वह उसे अपनी गिरफ्त से आजाद करते हुए बोला – ” मैं भी अपने परिवार की खोज में आया था । इसी खोज के दौरान मेरी मुलाकात उनसे हुई । उन्होंने ही तुम्हारी तस्वीर दिखाई थी । जो तुम्हारा मकसद है । वही मकसद मेरा भी है । मेरे पूरे परिवार को इस रावण ने मार डाला । मैं अपने परिवार पर हुए एक – एक जुल्म का हिसाब चुकाने आया हूं । आखिर ये कौन लोग हैं , जो इन्हें अपना शिकार बना रही हो । “
” ये कोई भले इंसान नहीं , बल्कि इसी रावण के कुŸो हैं । ये इंसान नहीं , नरपिशाच हैं । माणिक ने मेरे मां – भाई को क्रूरता से मार डाला । उसी समय मैंने माणिक से बदला लेने का निश्चय कर लिया । उस हवेली में जो लाशें पड़ी थी , वह केवल मेरे द्वारा मारे गये लोगों की नहीं थी बल्कि माणिक के हाथों मारे गये बेगुनाह लोगों की भी लाशें हैं । वह लोगों की हत्या कर उनकी लाशों को जंगली जानवरों के हवाले कर देता है या टुकड़ों में काटकर मछलियों को खिला देता है । इस प्रकार हत्या कर उनके साबूत को ही मिटा देता है । उसने न जाने कितनी बहू – बेटियों की इज्जत लूटी और जिसने भी उसके खिलाफ मुंह खोलने की हिम्मत की उसकी हत्या कर जानवरों को खिला दिया । लाशों को ठिकाने लगाने का यही उसका सुरक्षित स्थान था । मैं उसी स्थान की खोज में लगी थी और काफी प्रयास के बाद उस स्थान का पता लगा ही लिया । मैं भी उसके आदिमयों की हत्या कर वहीं ठिकाने लगाने लगी , ताकि इतनी सारी लाशों के बीच उसके आदमियों को भी जंगली जानवार नोच – नोचकर खा जाए । और उनका भी कुछ अता – पता न चल पाए । ऐसा करने से मुझ पर किसी को शक भी नहीं होगा । “ वह उदास स्वर में बोली ।
” मेरा भी तो यही मकसद है कि इस रावण राज का अंत हो । इसकी लंका को तहस – नहस किया जाय । मैं इसे कुŸो की मौत मारूंगा । बोलो , इस काम में तुम मेरा साथ दोगी । हम दोनों मिलकर इस रावण के आतंक को मिटा देंगे । “ वह बोला ।
” इस रावण का अंत करना इतना आसान नहीं है , जितना तुम समझ रहे हो । न जाने कितने राम इसको मारने आये , लेकिन कलियुग का यह रावण उन पर ही भारी पड़ गया । वे सबके सब जिंदा जंगली जानवरों के शिकार हो गये । उनका क्रिया – कर्म तक नहीं हो सका । न जाने कितनी युवतियों की अस्मत इस लंका में लूटी गयी , लेकिन इसका हिसाब लेने वाला कोई राम नहीं आया ; क्योंकि यह कोई साबूत नहीं छोड़ता । इसकी पहुंच दूर तक है । यह कानून को अपने जेब में लेकर घूमता है । प्रशासन से लेकर सत्ता के गलियारे तक इसकी तूती बोलती है । फिर भी एक न एक दिन इसका अंत होना तय है । तुम क्यों अपनी जान गंवाना चाहते हो ? मेरा तो सब कुछ लुट गया । मैं मर भी गयी तो कोई आंसू बहाने वाला नहीं है । बस ! एक बाबा बचे हैं । मैं चाहकर भी उनके पास नहीं जा सकती । जो एक बार यहां आ गया । वह जिंदा वापस लौटकर नहीं जाता । तुम वापस लौट जाओ । मैं तुम्हें यहां से बाहर निकाल दूंगी । “ और उसकी आंखों से आंसू की बूंदें टपकने लगी ।
वह उसके बहते आंसुओं को पोछते हुए बोला – ” मेरा भी अब इस दुनिया है कौन ? बस ! एक चाची बची हैं । मैं डाॅक्टर बनना चाहता था और मेरा वह सपना भी पूरा हो गया । लेकिन अतीत के भयावह सच ने मेरी जिंदगी की दिशा ही बदल दी । मेरा अब एक ही मकसद है । वह है इस रावण का खात्मा । मैं अब इस काम को पूरा करके ही रहूंगा , चाहे जो हो जाए । इंसान जब चाहे ले , तो बड़े – बड़े पहाड़ को चीर कर रास्ता बना देता है । फिर यह तो एक इंसान है । जब हम दोनों मिल जाएंगे , तो आसानी से इसकी लंका को ही नहीं अपितु इस रावण का भी अंत कर देंगे । “ और वह अपने दोनों हाथों को फैला दिया और वह मुस्कुराते हुए उसकी बांहों में समा गयी ।
वह उसकी खूबसूरती का दीवाना हो गया था। अब वह अपने मकसद को भूलकर उसकी खूबसूरती में खोया रहने लगा । एक दिन उसने पूछा – ” हमारी दोस्ती को इतने दिन हो गये , लेकिन तुमने अपना नाम नहीं बताया । “
वह मुस्कुराकर बोली – ” हेली । “
” और तुम्हारा । “
” रमेश । “
धीरे – धीरे यह दोस्ती प्यार में बदल गयी । वे दोनों अपने मकसद को भूलकर जंगल की ओर निकल जाते और घंटों एक – दूसरे की बांहों में समाये खो जाते ।
वह उसकी जुल्फों को संवारते हुए कहता – ” हेली ! मैं तुम्हारी खूबसूरती का इतना दीवाना हो गया हूं कि तुम्हें एक पल भी नहीं देखता हूं , तो बेचैन हो जाता हूं। तुम्हारे ये गुलाब की पंखुरियों के समान होंठ और ये मोती जैसे दांत । जब तुम हंसती हो , तो ऐसा प्रतीत होता है मानो मोती झर रहे हों । तुम्हारे ये तीखे – नैन नक्श मुझे मदहोश कर देते हैं । मैं तुम्हारी बांहों में समा जाना चाहता हूं । “ और वह शरमाकर उसकी बांहों में समा गयी ।
एक दिन रमेश उसके बालों पर हाथ फेरते हुए कहा – ” हेली ! मैं तुमसे शादी करना चाहता हंू। क्या तुम मुझसे शादी करोगी । “
इतना सुनते ही हेली की आंखों में आंसू आ गये और बोली – ” मैं भी तुम्हें बहुत चाहती हूं । पर मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती । माणिक ने मुझे अपवित्र कर दिया है । माणिक न जाने कितने बार मेरी अस्मत को लुटा । माणिक ही क्या उसके आदमियों ने भी ……? मैं तुम्हारे योग्य नहीं हूं । मैं तुम्हें धोखे में नहीं रखना चाहती । समाज मुझ पर उंगलियां उठाएगा । मैं मूर्ख कहां प्यार – व्यार के चक्कर में फंस गयी । हमारा उद्देश्य क्या था ? हम इस प्यार के चक्कर में अपने उद्देश्य को ही भूल गये । तुम इस प्यार को बीती बातें समझकर भूल जाओ और अपने उद्देश्य की ओर बढ़ो । “
” समाज चाहे तुम्हें जो कहे । मैं इन बातों को जानने के बाद भी तुम्हें अपनाने को तैयार हूं । तुम आज भी मेरे लिए गंगा की तरह पवित्र हो । बीती बातों को भूलकर अब अपने नये जीवन की शुरूआत करो । मैं तुमसे बेपनाह प्यार करता हूं और मैं अपने उद्देश्य को भूला नहीं हूं । प्यार करने में क्या बुराई है ? जीवन के सफर में कई ठहराव आएगे , लेकिन मैं अपने उद्देश्य को नहीं भूलूंगा । प्यार के बिना तो यह जीवन ही नीरस है । वैसे भी तो हम दोनों का जीवन नीरस ही है । शेष बचे जीवन को क्यों न खुशियों से भर दें । आओ , अपने जीवन में आये इस निराशा भरे पल को प्यार के रंगीन ख्वाबों में बदल दें और दूगने उत्साह से इस रावण के विनाश का खाका तैयार करें । “ और वे दोनों एक – दूसरे की बांहों में समा गये ।
एक दिन रमेश ने पूछा – ” हेली ! तुम तो इस माणिक की लंका में काफी समय से हो । तुम तो उसकी कमजोरियों को जानती ही होगी ! आखिर उसकी कमजोरी क्या है ? और इस गोदाम में ऐसा कौन – सा सामान तैयार होता है , जो गुपचुप तरीके से बाहर भेजा जाता है । मेरी समझ में यह बात नहीं आ रही है कि उन कार्टूनों क्या भरकर भेजा जाता है ? इसका सारा काम कौन संभालता है ? इसके मुख्य – मुख्य आदिमयों का सफाया करना होगा , तभी हम इस रावण का आसानी से अंत कर पाएंगे । “
हेली बोली – ” मैं भी कई बार माणिक को मारने का प्रयास कर चुकी हूं । वह बहुत शातिर और चालाक है । वह दिन – रात नशे में धुत रहता है । उसे रोज एक नई लड़की चाहिए । लड़की ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी है । जिस रात उसकी बांहों में कोई नई लड़की नहीं आती , वह बेचैन हो जाता है । इस रावण की लंका में हर रात एक अबला की अस्मत लुटी जाती है । इस गोदाम में जितने भी कार्टूनों में सामान भरा जाता है , उनमें अवैध हथियार , मादक पदार्थ और बारूद भरा होता है । और न जाने क्या – क्या भरा जाता है , मैं नहीं जानती ? यहां पूरा का पूरा कारोबार गैर कानूनी तरीके से होता है । यही कारण है कि जो यहां एक बार आ गया , वह जिंदा वापस नहीं जाता । इन मजदूरों को तो इसने बंधुआ मजदूर बना रखा है । सारा दिन काम करने के बावजूद इन्हें इनका पूरा मेहनताना नहीं मिलता । ये माणिक के खिलाफ आवाज बुलंद नहीं कर सकते । ये मजदूर एक गुलाम की तरह काम करते रहते हैं । जो मजदूर पैसे की मांग करता है , उसे मौत के घाट उतार दिया जाता है । वैसे तो इसका सारा काम रणजीत देखता है । इसके अलावा इसके बहुत – से आदमी भी काम की निगरानी करते हैं । इसे कमजोर करने के लिए पहले माणिक के आदमियों को चुन – चुनकर मारना होगा । उसके बाद इसकी लंका को नष्ट करना होगा । तभी हम इस रावण पर विजय प्राप्त कर सकते हैं । “
रमेश सारी बात समझ गया । उसने हेली से कहा – ” आज से हम दोनों मिलकर इसके आदमियों का सफाया करेंगे । उसके बाद इस गोदाम को जला देंगे । तभी यह कमजोर होगा । लेकिन क्यों न पहले इसके गैर कानूनी कामों की जानकारी पुलिस को दे दे। “
हेली बोली – ” पुलिस तो इसके आगे – पीछे घूमती है । पुलिस इसके हर गलत काम में इसका साथ देती है । इस रावण ने न जाने कितने लोगों की हत्या की , न जाने कितनी बहू – बेटियों की इज्जत लूटी । और आज भी अपने हाथ को खून से रंग रहा है । कहां है कानून ! कानून को तो उसने खरीद लिया है । कानून तो उसके सामने घुटना टेक दिया है । इसके खिलाफ आज तक कोई केस थाने में दर्ज है । नहीं ! इसके खिलाफ जो भी थाने में केस दर्ज कराने गया , उसे मार – पीटकर भगा दिया गया । कानून का रखवाला ही इसका जी – हुजूरी करता है । इसके हर गलत काम में साथ देता है । वह उनके लिए पार्टियां देता है , जहां शराब और शबाब का दौर रातभर चलता है। इसी पार्टी में अबलाओं की इज्जत की धज्जियां उड़ती हैं। तुम किस पुलिस की बात कर रहे , उसे पुलिस की जो उसकी हर गतिविधियों को जानते हुए भी अपनी आंखें बंद किये हुए है । “
” लेकिन हर कानून का रखवाला इसकी गुलामी नहीं कर सकता । हर कोई अपने ईमान को नहीं बेच सकता । हर किसी को पैसों के बल पर खरीदा नहीं जा सकता । एक बार प्रयास करने में क्या हर्ज है ? एक बार मैं अवश्य पुलिस के बड़े अधिकारी से मिलूंगा और इसके गैरकानूनी कामों की जानकारी दूंगा । “ रमेश बोला ।
” जरूर मिलना , लेकिन यहां से निकालना इतना आसान थोड़े ही है । यहां से निकलने वाला आज तक कोई जिंदा नहीं बचा है । इसलिए अभी अपने काम को अंजाम देने की बात सोचो । आज से इसकी ताकत को कमजोर के लिए हमें अपनी कमर कसनी होगी । मैं अपनी मनमोहक अदाओं से वासना के भूखे भेड़ियों को यहां तक लाऊंगी और फिर हम दोनों मिलकर आसानी से उसका काम तमाम कर देंगे । “ हेली मुस्कुराकर बोली ।
हेली और रमेश माणिक के आदमियों का शिकार करने लगे । खूबसूरती के दीवाने और वासना के भूखे भेड़िये आसानी से हेली के मोहजाल में फंस जाते । और दोनों मिलकर उसका काम – तमाम कर देते । एक – एक कर माणिक के काफी आदमी गायब हो रहे थे । माणिक की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि आखिर उसके आदमी गोदाम में जाने के बाद कहां गायब हो जाते हैं । आखिर उन्हें जमीन निगल जाता है या आसमान । आखिर इसके पीछे क्या रहस्य था ? यह बात माणिक की समझ से परे थी ।
माणिक को चिंतित देखकर रंजीत बोला – ” आखिर हमारे आदमी गोदाम में जाने के बाद कहां गायब हो जाते हैं ? यह रहस्य तो गहराता ही जा रहा है ? ”
” यही बात तो मेरी भी समझ में नहीं आ रही है । आखिर हमारे आदमियों को कौन गायब कर रहा है ? कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है । “ माणिक चिंतित स्वर में बोला ।
” आपका कहना बिल्कुल सही है । आखिर हमारे आदमियों को कौन गायब कर सकता है ? यह बात मेरी समझ से भी परे है। आखिर यह सब कौन कर रहा है ? “ रंजीत बोला ।
तभी माणिक का बेटा जयप्रकाश बोला – ” हमारे जितने भी आदमी गायब हुए हैं । वे सबके सब उसी गुप्त तहखाने में जाने के बाद । उस तहखाने में कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है । जरूर हमारा कोई शत्रु का आदमी वहां घुसा आया है । जो यह सब कर रहा है। इधर कुछ दिनों पहले कोई नया आदमी तो काम करने नहीं आया । “
सैकिया बोला – ” बाॅस ! मुझे तो उस आदमी पर शक है , जो उस दिन काम खोजने आया था और आपने उसे काम पर रख लिया था। मुझे तो वह बड़ा रहस्यमय प्रवृति का लग रहा था । दूसरी वह हेली । वह जब से गोदाम में काम पर लगी है , हमारे आदमियों के गायब होने का सिलसिला शुरू हो गया । मुझे तो उन दोनों पर पूरा शक है कि यही दोनों इस काम को अंजाम दे रहे हैं । “
माणिक सैकिया की बातों से सहमत होते हुए बोला – ” रंजीत और जयप्रकाश आज से तुम दोनों उनकी गतिविधियों पर कड़ी निगाह रखो । जल्द से जल्द पता लगाकर बताओ कि इन सबके पीछे आखिर किसका शातिर दिमाग काम कर रहा है । वह कौन है , जो जल में रहकर मगर से बैर कर रहा है । “
रंजीत बोला – ” आप चिंता न करें । आज रात ही दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा । वे दोनों मेरी निगाहों से बच नहीं पाएगे । “
काम समाप्त कर सारे मजदूर रात को आराम से सो रहे थे । गोदाम में सन्नाटा छाया हुआ था। हेली और रमेश अपने अगले शिकार की खोज में लगे थे । तभी तहखाने का गेट खुला और रंजीत और जयप्रकाश गोदाम के भीतर प्रवेश किये । वे दोनों सतर्क हो गये ।
उन दोनों को देखकर रमेश बोला – ” हेली ! ये दोनों कौन हंै ! “
हेली बोली – ” ये दोनों कमीना इंसान हंै । वो जोे नीला शर्ट पहने है , वह माणिक का भतिजा रंजीत है । लाल शर्ट वाला माणिक का बेटा जयप्रकाश है । एक नंबर का ऐय्याश । जब सौ हरामी मरा था , तो एक हरामी यह जयप्रकाश पैदा हुआ था। यह भोली – भाली लड़कियों को बहला – फुसलाकर लाता है और उसे अपनी हवस का शिकार बनाता है । उसके बाद अपने आदमियों के हवाले कर देता है । जहां उसके जिस्म को तार – तार कर दिया जाता है । यह न जाने कितनी युवतियों की इज्जत पर हाथ डाल चुका है और उनकी हत्या से अपना हाथ रंग चुका है । आज इन कमीनों को नहीं छोड़ूगी । तुम तहखाने के बाहर जाकर झाड़ी में छिप जाओ । मैं इसे अपनी खूबसूरती के जाल में फंसाकर उस ओर लेकर आती हूं । इन कमीनों से आज हर एक अबला के बहे आंसुओं का गिनकर – गिनकर हिसाब लूंगी । “
रमेश उन दोनों को देखकर बोला – ” हेली ! इन दोनों का यहां आने के पीछे कोई न कोई कारण जरूर है । ये जरूर अपने आदमियों की खोज में यहां आये हैं या फिर इनको हम दोनों पर शक हो गया है । मेरी मानो तो आज इन्हें मारने का इरादा छोड़ दो । इनका यहां आना इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है । “
हेली आवेशित स्वर में बोली – ” चाहे जो हो जाए । आज मैं इन कमीनों को नहीं छोड़ूगी । इन कमीनों ने मेरी जैसी न जाने कितनी मासूमों की इज्जत को तार – तार किया है । आज वह दिन आ गया है कि औरतों की इज्जत से खेलने वाले इस नरपिशाच से हिसाब लिया जाए । इन कमीनों ने मेरे शरीर को भी नोचा था। मैं क्या न जाने कितनी अबलाओं ने इनके आगे दया की भीख मांगी थी , लेकिन इन पापियों को उन पर जरा भी तरस नहीं आया ? उनकी इज्जत सारे आम नीलाम कर दिया । आज इन पापियों को उनके किये की सजा देकर ही रहूंगी । तुम फौरन यहां से जाओ और तहखाने के द्वार के पास मेरी प्रतीक्षा करो । मैं इन पापियों को लेकर वहां आती हूं । “
” लेकिन हेली ! आज न जाने क्यों मुझे बहुत डर लग रहा है ? इन कमीनों के इरादे नेक नहीं लगते । यदि तुम्हें कुछ हो गया , तो मैं जीते जी मर जाऊंगा । “ रमेश बोला ।
हेली मुस्कुराकर बोली – ” तुम मेरी चिंता मत करो । मुझे कुछ नहीं होगा । यदि आज कुछ होगा तो इन पापियों का अंत । जब हमारा मकसद एक ही है , तो हमारे रास्ते में यह प्यार कैसे बाधक बन गया ! तुम अपने मकसद को कुंद न होने दो । हम दोनों का एक ही मकसद है । वह है इस रावण राज का अंत । अब आगे कुछ मत कहना । अब तुम यहां से जाओ । “
” तुमने ठीक कहा । मैं इस प्यार के चक्कर में अपने मकसद को भूल गया था । मुझे भी तो अपने परिवार पर हुए हर जुल्म का हिसाब लेना है । मैं तुम्हारे साथ हूं । आज चाहे जो हो जाए । इन पापियों का अंत करके ही रहूंगा । मैं तुम्हारे साथ हूं । तुम इन कमीनों को वहां लेकर आओ । मैं तहखाने के द्वार पर मिलता हूं । “ रमेश उत्साहित स्वर में बोला ।
और सजी – संवरी हेली अपने मकसद को अंजाम देने के लिए उन दोनों की ओर बढ़ चली । उन दोनों की निगाह हेली से जा टकराई । हेली की खूबसूरती देखते ही बन रही थी । वे दोनों हेली को एकटक निहारने लगे और हेली अपनी मनमोहक अदाओं से उन्हें अपनी ओर आकर्षित कर रही थी । वे दोनों अपने मकसद को भूल हेली की खूबसूरती पर फिदा हो गये । रंजीत हेली को देखकर सोचने लगा – ” क्या यह वही हेली है , जिसे मैंने अपनी हवस का शिकार बनाया था । उस समय तो यह इतनी खूबसूरत नहीं थी । आज तो साक्षात सौंदर्य की देवी प्रतीत हो रही है । आज तो मैं इसे अपनी बांहों में भरकर ही रहूंगा । इसकी खूबसूरती का रसास्वादन करके ही रहूंगा । मैं भी कितना मूर्ख था , जो इस सौंदर्य की देवी पर ध्यान ही नहीं दे रहा था । इसे तो मेरी बांहों में होना चाहिए । “ वही जयप्रकाश मंत्रमुग्ध एकटक हेली को निहार रहा था।
और वे दोनों हेली के करीब गये । जयप्रकाश बोला – ” हेली ! तुम इतनी रात को यहां क्या कर रही हो ? तुम्हारी जैसी खूबसूरत युवती को इस प्रकार अकेले घूमना अच्छी बात नहीं । तुम तो महलों की रानी हो । इस गोदाम में तुम्हारा क्या काम ? तुम्हें तो मेरे दिल में होना चाहिए । चलो जिंदगी का आनंद उठाते हैं । मैं तुम्हें देखकर अपना सुध – बुध खो बैठा । मेरा तो मन मचल रहा है । “
हेली मुस्कुराकर बोली – ” आज मुझ पर इतना प्यार क्यों आ रहा है ? तुम्हारी रातें तो जो ही रंगीन होती है । रोज कपड़े की तरह लड़कियों बदलते हो । मुझमें अब बचा ही क्या ? सबने तो मुझे गन्ने की तरह चूस कर फुटपाथ पर फेंक दिया । अब मुझ पर मरता ही कौन ? तुम जैसा कोई मुझ पर मरता , तो क्या यूं ही अकेली भटकती ? “
रंजीत बोला – ” हम आज भी तुम पर मरते हैं । हम दोनों तो तुम्हारी खूबसूरती के दीवाने हैं । चलो जंगल की ओर चलते हैं । वहीं जिंदगी का आनंद उठायेंगे । “ और वे दोनों उसे अपने साथ ले जंगल की ओर चल पड़े ।
तहखाने से बाहर निकल जंगल में प्रवेश करते ही वे दोनों हेली के साथ जबरदस्ती करने लगे । तभी झाड़ी में छिपे रमेश अचानक अपनी कमर से कटार निकाल दोनों के पैरों पर भरपूर वार किया । वे जख्मी हो जमीन पर गिर पड़े । और वे दोनों उस पर टूट पड़े । हेली भी अपनी कमर से कटार निकाल उनके पैरों पर बेताहाशा वार करने लगी और बोली – ” आज मैं तुम दोनों से इतना प्यार करूंगी कि जीवन में कभी किसी ने तुमसे इतना प्यार नहीं किया होगा । आज तुम्हारी इस खूबसूरती की भूख मिटाऊंगी । तूने अपनी हवस की भूख मिटाने के लिए न जाने कितनी बहू – बेटियों की इज्जत को तार – तार किया । तू तो औरत को अबला समझता है न । आज वही अबला तेरे पापों का हिसाब लेगी । हर एक के बहे आंसुओं का हिसाब लूंगी । न जाने कितनी बहू – बेटियों को तूने खून के आंसू रूलाया है । उनका हिसाब कौन देगा ? आज खूबसूरती का वह रसास्वादन कराऊंगी , जो तुमने अपने जीवन में कभी नहीं किया होगा । मैं तुम्हें तड़पा – तड़पाकर मारूंगी । “
वे दोनों अचानक हुए इस हमले को समझ न पाए । लेकिन हेली की बातों को सुनकर उन दोनों का शक यकीन में बदल गया । वे दोनों उठने का प्रयास करने लगे , लेकिन उनके पांव तो कट चुके थे । वे दोनों अब अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पा रहे थे। वे दोनों घायल शेर की तरह दहाड़ने लगे और फिर रंजीत बोला – ” मुझे तो पहले से शक था कि ये सारा खेल तुम ही खेल रही हो । फिर दूसरा यह कौन आदमी है जो तुम्हारे इस खेल में शामिल हो गया । तुम दोनों की मौत आज निश्चित है । उस दिन तो तुम बच गयी थी , लेकिन आज नहीं बच पाओगी । इस कैद खाने से तुम दोनों जिंदा वापस नहीं लौट पाओगे । मैं अभी अपने आदमियों को बुलाता हूं । वे तुम दोनों को टुकड़े – टुकड़े कर जानवरों को खिला देंगे । “ और जयप्रकाश अपने मोबाइल निकल कुछ मैसेज करने लगा , तभी रमेश एक झटके में कटार के भरपूर वार से उसके हाथ को शरीर से अलग कर दिया और वह दर्द से चीख उठा । उसके शरीर से हाथ के अलग होते ही मोबाइल दूर जा गिरा और रमेश ने मोबाइल उठाकर दूर जंगल में फेंक दिया ।
रमेश उŸोजित स्वर में बोला – ” मैं कौन हूं , यह अभी जानने का समय नहीं आया है । लेकिन इतना तो तय है कि तेरे इस रावण राज का अंत समय जरूर आ गया है । मुझे भी तो अपना पुराना हिसाब चुकाना है । अपने परिवार पर हुए एक – एक जुल्म का हिसाब लूंगा। तेरी इस लंका को जला डालूंगा । “
तभी हेली बोली – ” कमीने ! तू अब कभी अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाएगा । मैं तुझे खड़ा होने लायक छोड़ी ही कहां ! तू मुझे क्या टुकड़े – टुकड़े कर जानवरों को खिलाएगा ? आज मैं तुझे टुकड़े – टुुकड़े कर कुŸाों को खिलाऊंगी । आज तुझे पता चलेगा कि इंसान को टुकड़े – टुकड़े काटने पर कितना दर्द होता है । आज मैं देखती हूं कि तुम्हें कौन बचाने आता है । “ और वे दोनों बेताहाशा पीटने लगे । वे दोनों चीखने – चिल्लाने लगे ।
वे दोनों अपने जीवन की भीख मांगने लगे । हेली शेरनी की तरह दहाड़ते हुए बोली – ” तुझे जितना चीखना – चिल्लाना है , चिल्लाओ । आज तुम्हारी चीख सुनने वाला कोई नहीं है । आज अपनी जिंदगी को बचाने के लिए दया की भीख मांग रहे हो । याद करो उन दिनों को जब लोग तुमसे अपने जीवन की भीख मांगते थे और तुम दया की भीख देने के बदले उनको जिल्लत की मौत देते थे । आज वही जिल्लत की मौत तुम्हें मिलेगी । मैं तुम दोनों पर दया जरूर दिखाऊंगी । बता पहले तेरे किस अंग को काटूं । “
वे दोनों हेली के आगे अपने जीवन की भीख मांगने लगे । हेली मुस्कुरा कर बोली – ” रमेश ! इन पापियों के हाथ को ही पहले काटो । इन हाथों से पापियों न जाने कितनी बहू – बेटियों की इज्जत को तार – तार किया और इन हाथों से कितने इंसानों को जिंदा काटकर जानवरों को खिला दिया । इन्हें भी वैसे ही मौत मिलनी चाहिए । “ हेली और रमेश उन दोनों के शरीर के प्रत्येक अंग को धीरे – धीरे टुकड़ों में परिवर्तित करने लगे । वे दोनों चीखते – चिल्लाते रहे , लेकिन उनकी चीख सुनने वाला कोई नहीं था । अंत में हेली ने कटार के एक वार से ही रंजीत के सिर को उसके धड़ से अलग कर दिया , वही रमेश जयप्रकाश का सिर उसके धड़ से अलग कर दिया । सिर के धड़ से अलग होते ही खून का फौव्वारा फूट पड़ा जिससे हेली का सारा शरीर नहा उठा । फिर दोनों ने उनके शरीर के टुकड़ों को एकत्र कर जंगली जानवरों के ठिकाने पर छोड़ आये ।
इधर माणिक के आदमी रंजीत और जयप्रकाश को खोजते हुए उस ओर बढ़े । लेकिन उन दोनों का कहीं अता – पता नहीं था। एक स्थान पर ढेर सारे खून को देखकर वे किसी अनहोनी की आशंका से कांप उठे । तभी रमेश और हेली उन लाशों को ठिकाने लगाकर उधर ही आ रहे थे कि माणिक के आदमियों की निगाह उन दोनों पर टिक गयी । हेली खून से नहायी थी , तो रमेश का कपड़ा खून से सना हुआ था । उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि इन दोनों ने रंजीत और जयप्रकाश को मौत के घाट उतार दिया है । माणिक के आदमी उन दोनों को पकड़ने के लिए आगे बढ़े । माणिक के आदमी को चकमा देकर वे दोनों एक झाड़ी में जाकर छुप गये और हेली रमेश से बोली – ” रमेश तुम यहां से भागकर जंगल में छिप जाओ । मैं इन्हे संभालती हूं । “
” लेकिन हेली ! मैं तुम्हें इन जानवरों के बीच छोड़कर नहीं जा सकता । “ रमेश बोला ।
हेली रमेश को समझाते हुए बोली – ” तुम मेरी चिंता मत करो । ये मेरा अब कुछ नहीं बिगाड़ सकते , क्योंकि तुम्हारा प्यार मेरे साथ है । तुम्हें इन लोगों की निगाहों से बचना है , तभी तुम इसकी लंका को तहस – नहस कर लोगों को इस रावण राज से मुक्ति दिला पाओगे । अभी दिल से नहीं दिमाग से काम लेने का समय है । अभी कुछ ज्यादा मत सोचो और यहां से भाग जाओ । “ इतना कहकर हेली दूसरी ओर भागी ।
रात के अंधेरे में माणिक के आदमियों को कुछ स्पष्ट नजर नहीं आया और वे भी उस ओर भागे । काफी भाग – दौड़ के बाद हेली उनकी पकड़ में आ ही गयी । माणिक के आदमियों ने हेली को चारों ओर से घेर लिया और उसे बुरी तरह पीटने लगे । तुरंत इस बात की खबर माणिक को दी गयी । माणिक भी फौरन वहां पहुंच गया और बोला – ” सैकिया ! रंजीत और जयप्रकाश कहां हैं ? “
सैकिया सिर झुकाकर बोला – ” बाॅस ! इन दोनों ने रंजीत और जयप्रकाश को मार डाला । “
” क्या ? इन दोनों ने मेरे रंजीत और जयप्रकाश को ……. । “ और मानो माणिक का नशा फट गया हो । माणिक पागलों की भांति रोने लगा । वह गुस्से से कांपते हुए बोला – ” तो तू ही वह शातिर दिमाग थी , जो मेरे ही घर में रहकर मौत का खेल – खेल रही थी । लेकिन , यह तो एक ही है । वह दूसरा कहां गया ? “ और वह पागलों की तरह हेली को पीटने लगा ।
सैकिया सिर झुकाकर बोला – ” वह जंगल में भाग गया । “
” वह भागकर जाएगा कहां ! इस जंगल से वह बाहर कैसे निकल पाएगा , क्योंकि उसकी माशूका तो अब मेरे कब्जे में है । वह अभी जंगल से बाहर नहीं निकल सकता । पहले इस हुस्न की रानी की खातिरदारी तो कर दूं । “
और माणिक फिर उसे बुरी तरह पीटते हुए बोला – ” बता तेरा आशिक कहां गया ? जिसके साथ मिलकर मेरे दोनों शेरों को मार डाला । बता उन दोनों की लाशों को कहां छिपा रखी है ? वरना मैं तुझे ऐसी मौत दूंगा कि यमराज भी तुझे ले जाने से घबरायेगा । “
यह सुनकर हेली ठहाके मारकर हंसने लगी और बोली – ” कैसा होता है अपनों के खोने का दर्द , तुझे आज पता चल गया न ? तूने न जाने कितने लोगों की हत्या कर उनकी लाशों को जंगली जानवरों को खिला दिया । न जाने कितनी बहू – बेटियों की आबरू लुटी और उनकी हत्या कर लाशों को गायब करवा दिया । उन लोगों को अपनों के खोने का कितना दर्द होता होगा ? कभी तूने एहसास किया । नहीं ! तू क्या किसी के दर्द का एहसास करेगा । तू तो निर्दयी है । तू तो शैतान से भी गया गुजरा है । तू तो नरपिशाच है । भला नरपिशाच को भी किसी पर दया आती है । मैं उन दोनों को वही मौत दी हूं , जो तू दूसरे लोगों को दिया करता था । आज अपनांे के खोने पर आंसू बहा रहा है , पर तूने तो लोगों के रोने पर ही पाबंदी लगा दी और उनका अंतिम संस्कार तक नहीं होने दिया । आज मैं उनके टुकड़े – टुकड़े कर तुम्हारे पाले हुए जंगली जानवरों को खिला दी । उन पापियों का नामों – निशान मिटा दिया । तू उनका भी अंतिम संस्कार नहीं कर पाएगा । जा और ढूंढ़ उन हड्डियों के ढेर में अपने बेटे और भतिजे की हड्डियों को । आज मैं तुझे भी उन दोनों के पास पहुंचा दूंगी और तेरी इस लंका का सर्वनाश भी निश्चित है । जिसे तू ढूंढ़ रहा है । वह इतनी आसानी से तुम्हारे हाथ नहीं आयेगा । वह ही तेरी इस लंका का सर्वनाश करेगा । “
इतना सुनते ही माणिक पागलों की भांति हेली की गर्दन को धर लिया और बोला – ” आज देखता हूं , कौन किसका अंत करता है । तुझे तो मैं ऐसी मौत दूंगा कि मौत की भी रूह कांप जाएगी । बुला अपने प्रेमी को कहां छुपा रखा है उसे ? वरना मैं तुम्हारी वो हश्र करूंगा , जिसकी तुने उसकी कल्पना भी नहीं की होगी । “
और माणिक चीख – चीखकर कहने लगा – ” अबे साले ! कहां जाकर छिपा है । हिम्मत है तो सामने आ । आज तेरी इस माशूका को ऐसी मौत दूंगा कि इसकी मौत भी इसे साथ ले जाने कतराएगी । कहां छुपा बैठा है ? सामने आ । “
तभी रमेश शेर की तरह दहाड़ते हुए जंगल से बाहर निकल आया और बोला – ” आज मैं तुझे कुŸो की मौत मारूंगा । मैं तुझे ऐसी मौत दूंगा कि मौत को भी तुम पर तरस आएगी । तुझे तड़पा – तड़पाकर मारूंगा । मुझे अपना पिछला हिसाब भी तो तुम से चुकाना है । अपने परिवार पर हुए एक – एक जुल्म का हिसाब लूंगा । न जाने कितने बेगुनाहों का खून बहाया है तूने। उसका हिसाब कौन चुकाएगा । न जाने कितनों को खून के आंसू रूलाया है , उसका भी तो हिसाब अभी चुकाना बाकी है । आज तेरी आर्थिक और शारीरिक दोनों भूख को सदा – सदा के लिए मिटा दूंगा । आज तेरे हर पाप का हिसाब होगा । “ तभी माणिक के आदमियों ने उसके ऊपर पिस्तौल तान दी और उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया ।
माणिक उसके करीब जाकर बोला – ” तू तो बड़ा शातिर निकला । आया था काम की खोज में और मेरे ही आदमियों का काम – तमाम करने लगा । आखिर तू है कौन ? जरा मैं भी तो जानूं ? “ और माणिक उसके ऊपर लात – घूंसों की बौछार कर दी ।
वह उŸोजित स्वर में बोला – ” तू रामकिशन को तो अच्छी तरह जानता होगा । “
रामकिशन का नाम सुनते माणिक चैंका और बोला – ” तो तू उसी रामकिशन का …. है , जो मुझसे बदला लेने आया है । तू इतने दिनों से कहां था ? मैं तुम्हें कहां – कहां नहीं ढूंढा ? तेरे कारण मेरे माॅल बनाने का सपना अभी तक अधूरा है । अब तू आ गया है , तो मेरे माॅल बनाने का सपना जरूर पूरा हो जाएगा । तेरे जैसे न जाने कितने मुझसे बदला लेने आये । लेकिन उन सब का क्या हश्र हुआ ? तुम्हें शायद पता नहीं होगा । मैं तुम्हें बताता हंू कि उनका क्या हश्र हुआ ? वे सबके सब जंगली जानवरों के भोजन बन गये । अब तू भी उनका भोजन बनेगा । “
” हां , मैं उसी रामकिशन का बेटा हूं , जिसके पूरे परिवार को तूने बड़ी बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया । आज उसी रामकिशन का बेटा अपने परिवार पर हुए हर जुल्म का हिसाब लेने आया है । आज तेरे हर पाप का हिसाब होगा । किसका क्या हश्र होगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा ? लेकिन इतना तय है कि आज तेरा अंत होकर ही रहेगा । मैं तूझे जिंदा ही तेरे पाले हुए जंगली जानवरों के हवाले करूंगा ताकि वो तुम्हें जब नोंच – नोंचकर खायेगे , तो तुझे एहसास होगा कि जंगली जानवरों द्वारा किसी इंसान को नोंच – नोंचकर खाने का क्या दर्द होता है ? आज तेरे इस रावण राज अंत तय है । “ रमेश कसमसाते हुए बोला ।
यह सुनकर माणिक ठहाके मारकर हंसने लगा और बोला – ” तू और तेरी यह माशूका मुझे मौत की नींद सुलायेगी । मैं तेरे जैसे कितनों को मौत की नींद सुला चुका हूं । तू भी अपने परिवार वालों की तरह कुŸो की मौत मरेगा । तेरी लाश को तो मैं जानवरों के खाने लायक भी नहीं छोडू़ंगा । तुझे तो मैं जीते – जला दूंगा । अहा ! तेरी यह प्रेमिका आज तो गजब ढा रही है । आज तेरे सामने फिर इसके खिलते सौंदर्य का रसास्वादन करूंगा । “ और माणिक हेली के गालों पर अपना हाथ फेरने लगा ।
यह देखकर रमेश का खून खौल गया । वह चीखकर बोला – ”कमीने ! हेली को अपने गंदे हाथों से मत छू । वरना हाथ काटकर रख दूंगा । एक बार मुझे छोड़कर देख लें । “
माणिक मुस्कुराकर बोला – ” इस हेली के केवल गोरे गालों को छूने पर तुझे इतना गुस्सा आ गया , जबकि मैंने और मेरे आदमियों ने इसके साथ कई बार अपनी रातें रंगीन की है । उस समय तुझे कितना गुस्सा आता । अब मैं तेरी आंखों के सामने ही इसके सौंदर्य का रसास्वादन करूंगा । देखता हूं कि तू मेरा क्या बिगाड़ता है ? अभी तुझे आजाद करवाता हूं । “ इतना कहकर माणिक अपने आदमियों से पिस्तौल अपने हाथ में लेकर दनादन रमेश के दोनों पैरों में गोलियां दाग दी ।
यह देखकर हेली रोने – गिड़गिड़ाने लगी – ” मुझे जो करना है करो , लेकिन रमेश को छोड़ दो । मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूं । “
” अब खेल में मजा आएगा । मैं तेरे आशिक को इतनी से आसानी से थोड़े मारूंगा । मैं उसे तेरे सामने ही तड़पा – तड़पाकर मारूंगा । ये गोलियां तो मैंने उसके पांव में मारी है , ताकि जमीन पर लेटा अपनी आंखों से तुम्हारी इज्जत को उतरते हुए देखे । “ इतना कहकर उसने अपने आदमियों को रमेश को छोड़ देने को कहा । उनके छोड़ते ही रमेश धड़ाम से जमीन पर गिर गया ।
माणिक अब हेली की ओर बढ़ने लगा । हेली आंसू बहते हुए पीछे की ओर बढ़ने लगी । माणिक मुस्कुराकर बोला – ” भागकर कहां जाओगी ? अब भागने से कोई फायदा नहीं । आओ और मेरे साथ जीवन का आनंद उठाओ । उसके बाद मैं तुम दोनों को सही जगह पहुंचा दूंगा । आओ मेरी बांहों में समा जाओ । जरा अपने आशिक को भी तो दिखाओ कि जीवन का आनंद क्या होता है ? मुझसे टक्कर लेने का क्या परिणाम होता है ? “
माणिक जैसे ही हेली को अपनी बांहों में समेटने का प्रयास किया । हेली ने उसे जोरदार धक्का दिया और वह जमीन पर दूर जा गिरा । हेली बिजली की गति से अपनी कमर से कटार निकाल उसके सीने पर चढ़ गयी और कटार उसकी गर्दन पर रख दी । फिर मुस्कुराकर बोली – ” आज मैं तुझे दिखाऊंगी कि जीवन का आनंद क्या होता है ? चल अपने आदमियों कह कि वह अपना हथियार एक ओर रख दें । वरना मैं तेरे सिर को धड़ से अलग कर दूंगी । “
माणिक ने अपने आदमियों को हथियार एक ओर रखने कहा। उनके हथियार रखते ही हेली माणिक को रमेश की ओर ले जाने लगी और बोली – ” रमेश ! इन हथियारों उठा लो । आज इसकी लंका का सर्वनाश कर दो । “
रमेश में न जाने कहां से इतनी ताकत आ गयी कि वह अपने पैरों पर खड़े होकर उनके हथियारों को अपने कब्जे में ले लिया । तभी सैकिया ने चालाकी से अपनी कमर से पिस्तौल निकालकर हेली पर गोली चलाने ही वाला था कि रमेश ने उस पर गोली चला दी । सैकिया वहीं पर ढेर हो गया । इसके बाद उसके आदमियों ने भी गोली चलानी शुरू कर दी । माणिक हेली के चुंगल से छूट गया ।
रमेश भी कहां पीछे रहने वाला था ! उसने भी गोली चलाते हुए जंगल की ओर भागा । वह एक पेड़ की ओट में छिपकर गोली चलाने लगा । तभी हेली भी हथियार के साथ उसके करीब आ गयी । और दोनों ओर से ताबड़ तोड़ गोलियां चलने लगी । लाशों का अंबार लग गया । गोलियों की तड़तड़ाहट से गोदाम में सो रहे मजदूरों की नींद खुल गयी । सभी मजदूर बाहर की ओर भागे । किसी ने पुलिस को खबर कर दी ।
जब गोलियों की तड़तड़ाहट बंद हुई , तो रमेश और हेली पेड़ के ओट से बाहर निकल देखा , तो माणिक के सारे आदमी मारे जा चुके थे । लाशों का ढेर लगा था , लेकिन माणिक का कहीं अता – पता नहीं था। वे दोनों माणिक को ढं़ूढ़ने लगे । तभी फिर गोली चली । यह गोली माणिक ने चलायी थी । लेकिन वह गोली रमेश और हेली को न लग उसके गोदाम में रखे बारूद में जा लगी । बारूद में चिंगारी लगते ही एक भीषण विस्फोट के साथ उसका बंगला और वह गोदाम धू – धूकर जलने लगा । यह देखकर माणिक जंगल की ओर भागने लगा । वे दोनों उस ओर भागे और अंतत: उसे पकड़ ही लिए ।
माणिक उनकी गिरफ्त में आते ही गिड़गिड़ाने लगा – ” मुझे माफ कर दो । मुझसे गलती हो गयी । दौलत की भूख ने मुझे अंधा कर दिया था । आज इस दौलत का नशा उतर गया । इसी दौलत की भूख ने मुझे इस दलदल में धकेल दिया । सारी दौलत तो मिट्टी में मिल गयी । मुझसे बहुत बड़ा गुनाह हो गया । मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है । मुझे छोड़ दो । मुझे जाने दो । मुझ पर तरस खाओ । मैं तुम दोनों के आगे हाथ जोड़ता हूं । “ और वह उन दोनों के पैरों में गिर गया ।
हेली उसे अपने पैरों से जोर से धक्का मारी और वह एक ओर जमीन पर गिर गया । और उन दोनों ने उस पर लात – घूसों की बरसात कर दी । हेली उसके सीने पर अपने पैरों को रखते हुए बोली – ” आज जब तेरी मौत सामने खड़ी है , तो दया की भीख मांग रहा है । तू ने किस पर दया दिखाया । मौत को सामने देख तुम्हारी दौलत का नशा उतर गया । इंसान की बर्बादी का दो ही कारण है आर्थिक और शारीरिक भूख । यही दो भूख इंसान की जिंदगी को तबाह कर देती है । तू तो दौलत और खूबसूरती का दिवाना था । अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए न जाने कितने लोगों की हत्या की , तो अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए कितनी बहू – बेटियों की इज्जत पर हाथ डाला । उस समय भी वे अपनी इज्जत और जान बचाने के लिए तुमसे दया की भीख मांगती थी । लेकिन तू उनकी इज्जत को सरेआम नीलाम कर देता था । गलत का परिणाम गलत ही होता है। हर गुनाहगार को उसके किये कि सजा एक न एक दिन जरूर मिलती है । हर पापी का एक न एक दिन अंत होता ही है । आज तेरा भी अंत होगा । मैंने कहा था न कि आज तुम्हें जीवन के वास्तविक आनंद से परिचित करवाऊंगी । जीवन का आनंद क्या होता है ? तुम स्वयं अपनी आंखों से देख लेना । आज के बाद तेरी सारी भूख मिट जाएगी । तेरे किये हर पाप का हिसाब लूंगी । अपने परिवार को खोने का क्या दर्द होता है ? तू क्या जानेगा ? आज हर वो अबला के बहे आंसू का हिसाब लूंगी । तू तो औरत का अबला समझता था न । आज वही अबला तेरा क्या हश्र करेगी ? तूने उसकी कल्पना भी नहीं की होगी । जब यही अबला दुर्गा और काली का रूप धारण कर लेती है ,तो बड़े – बड़े पापी का अंत कर देती है । आज वही अबला तेरे इस रावण राज का अंत करेगी । “ और हेली अपने कटार से उसके पैरों व हाथों पर बेताहाशा वार करने लगी । वही रमेश अपने पैरों से उसके सीने पर मार रहा था ।
तभी रमेश हेली के हाथ को पकड़ लिया और बोला – ” हेली ! इसे इतनी आसान मौत मत दो । इसके दोनों हाथ और पैर काटकर जिंदा भूखे जंगली जानवरों के हवाले कर दो । “
यह सुनते ही वह रमेश का पैर पकड़ लिया और बोला – ” यदि तुम्हें मौत ही देनी है , तो मुझे गोली मार दो ; लेकिन उन भूखे जंगली जानवरों के बीच मुझे मत छोड़ो । मुझ पर कुछ तो दया दिखाओ । मैं तुम्हारे पांव पड़ता हूं। मुझे ऐसी जिल्लत की मौत मत दो । “
और हेली ने अपने कटार से उसके दोनों हाथों को एक झटके में अलग कर दिया , तो रमेश उसके दोनों पैरों को उसके शरीर से अलग करते हुए बोला – ” पापी ! आज तुझे भी जिंदा उन भूखे जंगली जानवरों के हवाले करूंगा , जहां तूने न जाने कितने लोगों को जीते – जी उनका आहार बना दिया । तूझे भी तो पता चले कि भूखे जानवर इंसानों को कैसे नोंच – नोंचकर खाते हैं ? और उनके नोंचने पर इंसान को कितना दर्द होता है । तुझे यह एहसास तो होना ही चाहिए । तेरे कुकर्माें की यही सजा है । हर गलत काम का एक दिन यही हश्र होता है । आज तेरे नामों – निशान को मिटा दूंगा । “ और एक चीख के साथ उसके दोनों पैर अलग गये ।
रमेश उसके शरीर को अपने कंधे पर उठा लिया , तो हेली उसके दोनों हाथ – पांव को उठा जंगल की ओर चल पड़े और उसे उस खंडहर में छोड़ आये , जहां उसके पाले जंगली जानवरों का वास था । वे भूखे जंगली जानवर उस पर टूट पड़े । वह उन भूखे जंगली जानवरों का शिकार हो गया , जहां उसने कई बेगुनाहों को जिंदा उनके हवाले कर दिया था । वे आज उसे ही नोंच – नोंचकर खाने वाले थे । उनके नोंचते ही वह चीखने – चिल्लाने लगा , लेकिन उसकी चीख सुनने वाला कोई नहीं था । और इस रावण का अंत हो गया ।
जब तक पुलिस आती , तब तक इस रावण की लंका का सर्वनाश हो चुका था । पुलिस माणिक के आदमियों की लाशों को एंबुलेंस में डाल रही थी , तो लोगों को इस रावण राज से मुक्ति दिला दिया था हेली और रमेश ने ।
हेली और रमेश इस कलियुगी रावण का अंत कर अपने नये जीवन की शुरूआत करने जा रहे थे । वे लोगों की निगाहों से दूर चले जा रहे थे ।
पुष्पेश कुमार पुष्प
बाढ़ (बिहार)

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।