
नदियाँ, नहरें, पोखर सब,
अक्षय संसाधन जल के हैं।
अमृत का है रूप धरा पर,
जल सारे जीवों का जीवन है।
जल संसाधन हम सबकी,
हरपल प्यास बुझाते हैं।
धरती माता के आँचल को,
सदा हरा भरा बनाते हैं।
बिजली का हो उत्पादन ,
या हो मछली का पालन ।
बड़ी भूमिका निभाते हैं,
ये सारे जल के संसाधन।
करनी हो सिंचाई कृषि की,
या करना हो मनोरंजन।
काम आते हम सबके सदा,
ये सारे जल के संसाधन।
तालाब और नदियाँ, नाले,
होते सतही जल संसाधन।
भूमि के अंदर से जो निकले,
वो भूमिगत होता संसाधन।
कभी ना सम्भव हो पाएगा,
बिन जल के जीवित रहना।
तड़प तड़प मर जाएंगे हम,
चाहे लाख जतन करते रहना।
करो कल्पना ज़रा बैठ कर,
जल बिन कैसा होगा जीवन?
होगा रूप धरा का क्या फिर?
कैसा होगा दैनिक जीवन।?
आओ हमसब संकल्प उठाएं,
जल संसाधन बचाएँगे।
करेंगे ना दूषित हम जल को
ना जल को व्यर्थ बहाएंगे।
स्वरचित
सपना (स. अ.)
प्रा.वि.-उजीतीपुर
वि.ख.-भाग्यनगर
जनपद-औरैया