साहित्यिक स्नान का एक सरोवर!

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‘सुन-ए-मगरूर तकब्बुर नहीं अच्छा होता क्योंकि हर वक्त मुकद्दर नहीं अच्छा होता’इस पंक्ति के रचनाकार है पंडित प्रेमचंद सन्ड ,जो रुड़की के पहले ज्ञात साहित्यकार माने जाते है।उनके बाद पंडित कीर्ति प्रसाद शुक्ल ने लिखा,’परेशानियां जो न होती जहां में ,किसी से खुदा की इबादत न होती’,रुड़की के केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान में रहे मास्टर अर्जुन लाल की कविताओं, हफ़ीज़ रुडकवी की उर्दू ग़ज़लों, मुख्तार खान की शायरी और विजय प्रताप की कहानियों ने रुड़की की साहित्यिक नीव में मजबूत पत्थर बनने का काम किया।जिनके दम पर हरिकृष्ण शर्मा ‘निराश’,ठाकुर वीर सिंह दर्द,राधेश्याम, सैयद तुफैल अहमद,मित्रांन्द स्नेही,सुरेंद्र भटनागर ‘सहर’,उर्दु छंद के आविष्कारक महेंद्र सिंह त्यागी ‘दीवाना’ ,मोहन लाल ‘अकेला’ ,हरिप्रकाश ‘हरियाणवी’ व रतिराम शास्त्री,जगदीश शरण, कृष्ण लाल प्रेमी, एवं इरशाद सेवक ऐसे कलमकार, कवि व लेखक हुए है जो अब इस दुनिया में नही है।लेकिन उनकी रचनाएं आज भी उन्हें जीवन्त किये हुए है।इनमे से कुछ की रचनाएं इस पुस्तक का अंश भी बनी है।उनके स्वर्णिम इतिहास के साथ रुड़की की इसी साहित्यिक उर्वरा भूमि में उपजे और देश दुनिया मे शीर्षता के पायदान पर खड़े डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ व केंद्रीय शिक्षा मंत्री एवं मूर्धन्य साहित्यकार डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक ‘ की रचनाएं नवप्रकाशित ‘सृजन सरोवर’ में छपना इस सृजन रूपी सरोवर को साहित्यिक गंगा के प्रतिष्ठित कर देता है।जिसमे साहित्यिक स्नान करने से हर पाठक को असीम सुख और संतुष्टि की अनुभूति होगी,ऐसा विश्वास है।
इंजीनियरिंग नगरी रुड़की में वहां के 43 स्थापित स्थानीय कवियों के इस काव्य संग्रह ‘सृजन सरोवर’ को 286 पृष्ठों में समेटकर एक पुस्तक रूपी गुलदस्ता तैयार किया गया है ।जिसमे में पांच – पांच काव्य रचनाए प्रत्येक कवि के परिचय के साथ समाहित की गई हैं। ‘नवसृजन साहित्यिक संस्था रुड़की’ के बैनर तले प्रकाशित इस पुस्तक का संपादन गीतकार सुरेंद्र कुमार सैनी के नेतृत्व में शिक्षाविद सुबोध कुमार पुंडीर ‘सरित्’, नीरज नैथानी, नवीन शरण निश्चल व पंकज त्यागी ‘असीम’ ने विद्वता के साथ किया है। ‘सृजन सरोवर’ के पिटारे में बेचैन कंडियाल, नीरज नैथानी, नरेश राजवंशी, कृष्ण ‘सुकुमार’ अनीस मेरठी , हरि प्रकाश ‘खामोश’, राम शंकर सिंह, सौ सिंह सैनी, सुमंत सिंह आर्य, पंकज त्यागी ‘असीम’ , किसलय क्रांतिकारी, के पी ‘अनमोल’ राजकुमार उपाध्याय, विनीत भारद्वाज, डॉ० मधुराका सक्सेना, डॉ० शालिनी जोशी पंत, अनुराधा शर्मा, अनुपमा गुप्ता, संध्या चतुर्वेदी ,घनश्याम बादल व मेरी कुछ रचनाएं शामिल की गई है।
इन कविताओं में कविता का हर रंग दिखाई देता है । डॉ रमेश पोखरियाल निशंक की ये पंक्तियां ”मिट्टी पानी और हवा, इन तीनों की वृक्ष दवा, वृक्ष कटे तो खेत कटेंगे, हरे भरे खलियान बंटेंगें।ख़ासा प्रभाव डालती है तो डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ की ये पंक्तियां “छल छद्म करेंगे हम जितने, उतना ही मैला मन होगा,बस, सहज सरल जितने होंगे, उतना सुंदर जीवन होगा’ हब सबके लिए प्रेरणा का सबब है।नवसृजन के अध्यक्ष नीरज कुमार नैथानी प्रकृति पर कुछ यूं बयां करते है, “पहाड़ गुस्से में, नदियां बेकाबू, दरकी चट्टानें, ध्वस्त ठिकाने,” कृष्ण सुकुमार की पंक्तियां “खामोशी सैलाब कभी बन जाती है, लहरें पक्की दीवारें ढा जाती हैं ” प्रकृति के क्रोध का संकेत है तो सुबोध पुंडीर ‘सरित्’ की रचना “ऐसे द्वार नहीं जाते हम” हमे जीवन दर्शन का बोध कराती है। सुरेंद्र कुमार सैनी की ग़ज़ल “इस सदी में पंछियों की बात मत करना, चहचहाते घोंसलों की बात मत करना, क्या मिलेगा जख्म उन्हें छेड़कर तुमको, पर्वतों से निर्झरों की बात मत करना” प्रकृति के प्रति सकारात्मक सोच का एक बिम्ब है। अनीस मेरठी के शब्दों में, ” पेड़ लगा ले आंगन में, लेकिन फल की बात न कर, जेहन में अपने ‘घर ‘को रख, ताजमहल की बात न कर” ।उनकी शायरी की ऊंचाइयों का प्रमाण है। इस पुस्तक में
डॉ घनश्याम बादल बाल कविताओ में नज़र आए, “नानी छोड़ो बात पुरानी” ।उनके बाल गीत “टपर -टपर टप टप्पर टूं, अंडा फूटा मुर्गी रोई “टपर -टपर टप टप्पर टूं” हमे बचपन की याद दिलाता है। अलका घनशाला , महावीर , पंकज गर्ग , डॉ मधुराका सक्सेना व डॉ० शालिनी जोशी पंत ,नरेश राजवंशी की रचनाओं ने सुखद एहसास कराया है। सज्जाद झंझट , अनुराधा शर्मा ,डॉ अनिल शर्मा,
डॉ० सम्राट ‘सुधा’ , राम शंकर सिंह के गीत, दिनेश कुमार वर्मा ‘डीके’व अशोक शर्मा आर्य की कविताओं ने कही न कही एक अच्छा संदेश देने का प्रयास किया है। ‘सृजन सरोवर’ को हम एक ऐसा साहित्यिक कुंभ भी कह सकते है जिसमे अमृत ही अमृत है विष ज़रा भी नही।यही इस पुस्तक की विशेषता कही जा सकती है।(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार है,जिनकी 18 पुस्तकें प्रकाशित है)
डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
,रुड़की, उत्तराखंड

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।