Read Time36 Second

चढ़ी धूप है ताप की
त्रस्त हुए है जीव।
चाह करत हैं छांव की,
सकल धरा के जीव।
सज्जन थोड़ा कष्ट कर,
एक पात्र ले नीर।
प्यासे तडफें जीव सुन,
होते बड़े अधीर।।
बूंद बूंद है कीमती,
रखो नीर का ख्याल।
नीर करो बर्बाद मत,
जग होगा बेहाल।
जीवन जलसम राखिए,
जल सा हो गम्भीर।
होगा सारा जग खुशी,
राम,रहीम कबीर।।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम
तिलसहरी, कानपुर
Post Views:
1,001