
बचपन की यादों को
कभी भूला ही नहीं।
जवानी के किस्सों को
दिलमें सजाकर रखे हूँ।
कितना खुश और प्रसन्न
उस जमाने में रहता था।
जब न कोई चिंता
न कोई दयित्व था।
बस मौज मस्ती का
वो भी एक दौर था।।
पड़ लिख कर जब
नौकरी करने लगा ।
यश आराम और
ख्यासे पूरी करने लगा।
सारा वेतन पार्टी सर
सपटा में उड़ने लगा।
और मौज मस्ती से
दिन बिताते लगे।
देखकर मेरे हालचाल
माँ बाप चिंतित हो गए।
फिर माँबाप ने अपनी
अंतिम जिम्मेदारी निभा दी।
और एक पड़ी लिखी
लड़की से शादी करवा दी।
सच कह रहा हूँ जबसे
गले में घंटी बंधी गई है।
सारी आजादी मानो
हमसे छीन गई है।
आटे दाल का भाव
मालूम पड़ गया है।
तभी महीने के 15 दिन
खाली बटूआ रहता है।
पत्नी की इच्छओं को
पूरा करते करते।
खुदको ही यारो
मैं अब भूल गया हूँ।।
ऊपर से चिक चिक
रोज उसकी सुनकर।
खुदके दुख दर्द आदि
कहे नहीं पाता हूँ।
हारा थका रोज आके
खा पीकर सो जाता हूँ।
फिर उठकर सुबह से
यही क्रम दौहराता हूँ।
और अपनी गृहस्थ जीवन
की कहनी खुद कहता हूँ।
और फिर भी स्नेह प्यार से
उसी के संग रहता हूँ।।
अभी हाल ही में अपनी
जिम्मेदारियों से मुक्त हुआ हूँ।
सोच रहा हूँ मैं अब क्यों न
समय पूर्व सेवानिवृत्त हो जाये।
और जीवन का आनन्द
क्यों न पत्नी के संग उठाये।
जो नहीं कर पाया उसके लिए
अब किया जाए।
निवृत्त होकर मात्र
छह माह ही हुए है।
और देखने को कुछ अलग
ही नजारा दिख रहा है।
घर में 24 घंटे रहता हूँ
तो सच्चाई समझ रहा हूँ।
और सोच रहा हूँ की कैसे
वो अकेले दिन गुजरती थी।
हम तो छह महीने में ही
घर में ऊब गये है।
और उसने कितने वर्ष
अकेले ही बिताता दिये है।
और हम अपने सेवानिवृत्ति के
फैसले को गलत समझ रहे है।
और उसके त्याग तपस्य
के बारे में क्यों मौन हूँ।।
इतना सब करने पर भी
मुँह से कुछ नहीं बोलती।
और हम छह महीने में
ही रोने लगे है।
हाँ रोज रोज के भाषण
सुन सुनकर थकसा गया हूँ।
पर इस में भी
उसका क्या कसूर है।
क्योंकि अकेले रहने की
उसकी आदत जो है।
अब हम बिना कामधाम के
घर में बैठे रहते है तो
शायद उसे यह खलता है।
पर सच कहे तो इसमें भी
उसका प्यार झलाकता है।।
सोचता हूँ कि कैसे लोग
दो तीन पत्नियों के साथ।
अपना जीवन बिताते है
और खुशी के गीत गाते है।
पर हम एक ही नहीं
संभाल जाती है।
आजकल अपनी कहानी
कुछ और ही कह रही है।
एक ही पत्नी के साथ
जिंदगी की नाव चल रही है।
और खटीमिठी यादों के सहारे
जिंदगी अच्छे से कट रही है।।
पत्नी की सेवा करके कुछ
तो फल अब उसे लौटा दे।
और जीवन साथी होने का
धर्म अब निभा दे।
उसका दुखदर्द को समझकर
उसका साथ देकर मिटा दे।
और जीवन साथी होने का
फर्ज ईमानदारी निभा दे।।
जय जिनेंद् देव
संजय जैन मुंबई