घटती सांसे, बढ़ता विकास

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विकास ,विकास ,विकास आजकल हम सभी का दिन के प्रत्येक प्रहर में इस शब्द से सामना जरूर होता है। चाहे नेताओं के नारे जैसे “सबका साथ ,सबका विकास” हो या आम आदमी के जुबान से निकलता हुआ विकास का दावानल हो।
हम सभी विकास को पाने की दौड़ में चाहे वह अब अंधी ही क्यों ना हो गई हो दौड़ना चाहते हैं और दौड़ भी रहे हैं ।दिन -रात हर कहीं प्रतिस्पर्धा कभी पड़ोसी से, कभी रिश्तेदारों से, कभी समाज से तो कभी अन्य राष्ट्रों से ।हम सभी अपने अपने जीवन पथ पर एक इंसान ना होकर प्रतिस्पर्धी बनते जा रहे हैं या बन गए हैं ।यह प्रतिस्पर्धा जो हमारे सपनों की महत्वाकांक्षा को धरातल पर साकार करना चाहती हैं। चाहे उसके लिए आधुनिक इंसान को किसी भी हद से गुजर ना पड़े। कितना ही खून- खराबा करना पड़े। कितने ही विध्वंस से धरती की छाती और मानवता को रक्त रंजित क्यों ना करना पड़े।
वर्तमान समय में जब कोरोना महामारी के कारण ना जाने विश्व में कितनी ही जानें जा चुकी हैं और कितनी ही जानें अभी जा सकती हैं । इसने हम सभी को ऑक्सीजन के महत्त्व को बहुत अच्छे से प्रकृति के द्वारा समझाया जा चुका है जिसमें समाज के अमीर वर्ग से लेकर अति गरीब वर्ग भी जानकार बन गया है। विश्व भर में आज सुपर स्पेशलिटी अस्पतालों से लेकर छुटपुट अस्पतालों में भी ऑक्सीजन का अभाव है ।भले ही हमारे वैज्ञानिक और अभिजात्य समाज को मंगल ग्रह और चांद की धरती पर बसने का सपना साकार करना हो लेकिन धरती पर जो इलाज के लिए एवं जीवन के लिए अति आवश्यक है उसको प्राप्त करने के बारे में सोचने और समुचित प्रयास करने की कोशिश भी उचित तरीके से नहीं की जा रही हैं।
इतना ही नहीं दिन प्रतिदिन विकास के नाम पर चाहे उसमें राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण हो, रेल पटरीयो का जाल हो, एयरपोर्ट के लिए ,मल्टीनैशनल्स कंपनियों को स्थापित करने के लिए जगह देना हो, भू माफियाओं के फायदे के लिए वैद्य अवैद्य सीमेंट का जंगल खड़ा करना हो ,बड़े-बड़े बांधों का निर्माण हो या कोई भी मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट आदि के विकास के नाम पर हमारे पूर्वजों के द्वारा हमें संपत्ति की तरह उपहार में दिए गए हरे-भरे जंगलों को काटा जा रहा है या उनमें आग लगाकर वन्यजीवों सहित उनको नष्ट किया जा रहा है और लोगों को वहां से पलायन के लिए मजबूर किया जा रहा है।
मध्य प्रदेश का बुंदेलखंड जो कि सदियों से पानी के अभाव से जूझता आ रहा है और अब तो रेगिस्तान बनने की कगार पर आ चुका है फिर भी यहां पर वनों का दोहन निजी लोगों एवं सरकारों के द्वारा किया जा रहा है और रुक भी नहीं रहा है जिसमें सागौन, शीशम ,नीम ,आम आदि जैसे बहुवर्षीय और सदाबहार वनों को काटा जा रहा है।
अभी हाल ही में मध्य प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान जी एवं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के द्वारा बुंदेलखंड को केन- बेतवा लिंक परियोजना को हरी झंडी दिखाकर भेंट किया गया है जिसके लिए आरक्षित पन्ना नेशनल पार्क के साढ़े सात लाख से अधिक वृक्षों की बलि दी जानी हैं साथ में अभ्यारण में निवासरत अनेकों पशु- पक्षियों को भी जिंदा भूना जाना है। इतना ही नहीं उन जंगलों पर जो हजारों मनुष्यों की जीविका उपार्जन का साधन है एवं वहां पर रहते हैं उसे भी नष्ट किया जाना है। इससे पलायन की समस्या और विकराल रूप में हमारे सामने आएगी।यह कैंसा आत्मनिर्भर विकास का वादा है ?एवं इसके साथ ही एक और अन्य परियोजना जोकि छतरपुर जिले के ही बक्सवाहा नामक स्थान पर “बंदर प्रोजेक्ट” के अंतर्गत जो कि 3.42 करोड़ केरेट के हीरा उत्खनन के लिए आदित्य बिरला ग्रुप को 50 साल के लिए लीज पर दिया गया है जिसमें 2,15,875 वृक्षों को नष्ट किया जाना है साथ ही उन में विचरण करते हजारों पशु पक्षियों ,जीव-जंतुओं को भी नष्ट किया जाना है।
क्या सचमुच हमारी सरकार है इतनी गरीब हो गई है कि रुपयों को तिजोरी में भरने के लिए मानवता का धर्म ही भूल गई है। भूल गई है कि जल ,जंगल और जमीन के नारे के द्वारा ही मध्यप्रदेश में उन्होंने सत्ता प्राप्त की थी ।आज उसी के साथ खिलवाड़ करने पर आतुर हो गई हैं।
ना केवल मध्य प्रदेश बल्कि देश के अधिकांश हिस्सों में अब यही खेल विकास के नाम पर खेला जा रहा है। एक तरफ तो सरकारें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में जलवायु परिवर्तन एवं उसके दुष्परिणामों पर अपनी बात रखती हैं और हमारे चुने हुए जनप्रतिनिधि सम्मानित भी होते हैं फिर देश के अंदर यह दोहरा भरता बर्ताव क्यों किया जा रहा है?
क्या पुरस्कार पाना ही उनका अंतिम लक्ष्य है या अपने देश की जनता एवं प्राकृतिक संसाधनों को बचाना भी उनका उद्देश्य है और प्रयत्न है। या विकास ने इनको इतना अंधा कर दिया है की आने वाले समय में जब हम कृषि उत्पादों या वन उत्पादों को आयात करते नजर आएंगे और अरबों- खरबों डालर को दूसरे देशों को सौंपेते जाएंगे। हम कितना ही रुपया कमाएंगे वह फिर भी कम होगा जब हम मुफ्त की ऑक्सीजन को सिलेंडरों के रूप में विदेशों से आयात करेंगे ।क्या आम जनता इतना सब खरीद पाएगी? हमें ऐसा विकास नहीं चाहिए जो सिर्फ हमें विनाश की ओर ले जाता हो।
एक बात सत्य है की हम कितने ही आधुनिक और डिजिटल हो जाए लेकिन रोटी, पानी, हवा तो प्रकृति से ही लेंगे । ना कि किसी धन्ना सेठों की कंपनियों से ।
हमारी बहुमत प्राप्त सरकारों को आम जनता के एवं स्वयं के अस्तित्व के बारे में सोचना ही पड़ेगा और प्रकृति से क्रूर खिलवाड़ को रोकना ही होगा क्योंकि प्रकृति से किया गया खिलवाड़ वीभत्स रूप में हमारी पीढ़ियों को नष्ट कर देगा। फिर काहे का विकास और काहे का आधुनिकीकरण।

स्मिता जैन

matruadmin

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।